Saturday, April 24, 2010

ये है नक्सलियों का असली चेहरा

- कुंदन पाण्डेय
पुलिस एवं केन्द्रीय सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार, नक्सलवाद जो कि जन आन्दोलन के रुप में प्रारम्भ हुआ था, आज संगठित अवैध वसूली (लेवी) पर आधारित 1500 करोड़ रुपए का (रेड़ कॉरीड़ोर) साम्राज्य बन गया है। आप को यह जानकर आश्चर्य होगा कि नक्सली अपनी आय की गणना के आधार पर विस्तृत वार्षिक बजट भी बनाते हैं। उपरोक्त तथ्य वर्ष 2008 में पुलिस द्वारा जब्त नक्सलियों के दस्तावेजों एवं सीडी से ज्ञात हुआ कि नक्सली अपनी आय की गणना के आधार पर विस्तृत बजट भी बनाते हैं।
नक्सल प्रभावित राज्यों व क्षेत्रों में कार्य करने वाले व्यापारियों, ठेकेदारों एवं क्षेत्रीय लघु-उद्यमियों से नक्सली भारी मात्रा में अवैध वसूली करते हैं। साथ ही साथ राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कुछ बड़े औद्यौगिक समूहों से भी ये बड़े पैमाने पर धन की वसूली करते हैं।
नक्सलियों द्वारा जारी कुछ विशिष्ट प्रकार के कार्ड भी सुरक्षा बलों ने प्राप्त किए है जो ठीकेदारों, व्यापारियों, पेट्रोल-पंप मालिकों, जमींदारों को देकर उनसे निश्चित मात्रा में वसूली की जाती है। जैसे सड़क-निर्माँण के ठेकों में 10% तथा पूलों के निर्माण में 5% तक वसूली किए जाने का पता चला है। इसके अतिरिक्त नक्सली आवश्यकता पड़ने पर अपने क्षेत्र के उद्योगों, खानों आदि से रसीद आधारित जबरन चंदा वसूली पहले से ही सूची बनाकर करते हैं।
इसके अतिरिक्त अपहरण-फिरौती से नक्सली किसी उद्योग की तरह काली कमाई करते हैं।जंगलों की लकड़ी का अवैध-व्यापार तो नक्सली निस्कंटक रूप से करते हैं क्योंकि जंगलों में नक्सलियों का एकछत्र राज्य है। वहाँ सुरक्षाबलों के जवानों के अतिरिक्त शायद ही सरकारी मुलाजिम जाता हो। इसके अतिरिक्त गाँजा आदि मादक पदार्थों के व्यापार से भी नक्सली काफी आय प्राप्त करते हैं। सबसे गंभीर तथ्य यह है कि नक्सलियों के इस आंदोलन में आपराधिक तत्वों के सक्रियता से जुड़ते जाने से यह आंदोलन अधिकाधिक आपराधिक होता जा रहा है। इसके कारण आदिवासियों, भूमिहीन किसानों, शोषितों, दलितों व वंचितों का इस आंदोलन में जरा भी विश्वास नहीं रहा। वे केवल बंदूक और गोली के भय से जरूर मूकदर्शक बनकर इसका समर्थन करते हैं।
सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार, इस आय का अधिकांश भाग नक्सली नेताओं के विलासितापूर्ण जीवन पर खर्च होता है। दोहरे मापदंड का एक उत्कृष्टतम उदाहरण देखिए, एक ओर तो नक्सली गरीबों और भूमिहीनों, वंचितों व शोषितों के बच्चों को अपने कैडर में जबरन भर्ती करते हैं वहीं दूसरी ओर उनके अपने बच्चे अच्छे पब्लिक स्कूलों में पढ़ते हैं।

1 comment:

  1. kya baat hai kundan bhai naxalbaad ko mita ke he rukeyega kya? chaliye acha hai sarkar nahi to kam se kam aap he sahe.

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