Monday, April 26, 2010

सच का सामना

- पंकज कुमार साव,द्वितीय सेमेस्टर
मैं की-बोर्ड की क़सम खाकर कहता हूँ कि जो भी कहूँगा, सच कहूँगा और सच के सिवा कुछ नहीं कहूँगा। अब आप सोच रहे होंगे कि कौन-सी ऐसी बात है जिसकी प्रमाणिकता के लिए क़सम खाने की जरूरत आन पड़ी। आमतौर पर लोग अपने बारे में सच बोलने से परहेज करते हैं। अपनी बुराइयों को छिपा लेते हैं और अच्छाइयों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं। यहाँ तक कि कई लोग अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते। आपकी तारीफ पूछो तो बस अपनी तारीफ ही बताएंगे और शुरू हो जाएंगे। उनके दादा स्वतंत्रता सेनानी थे। पिताजी अपने जमाने के ग्रेजुएट फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं। एक दूर के रिश्तेदार मंत्री भी निकल आएंगे साब। अब का करिएगा। किसी का मुँह तो बंद कर सकते नहीं। छेड़ा आपने है तो झेलेगा कौन? अब बात काटना भी मुश्किल। कहीं सच में किसी बाहुबली विधायक के रिश्तेदार निकले तो आपकी खैर नहीं।
बात यहीं खत्म नहीं होगी। उन्होने चाय के लिए पूछ लिया तो आप भी गदगद। एक बड़े पहुँच वाले से मित्रता का मौका भला कौन छोड़े। हाँ, अब तक चुपचाप सुनना सीख ही जाएंगे। गप सुनते-सुनते(करते-करते नहीं) देर रात को घर की याद आ जाएगी और उनका मोबाइल नंबर लेना नहीं भूलेंगे। आगे काम आएगा। क्या पता कब रात को हेलमेट-चेकिंग में,ट्रीपल राइडिंग में पुलीस से पंगा हो जाए। अब आप हेलमेट घर में छोडना भी सीख जाएंगे, मंत्री जी के आदमी जो हैं।
इसी तरह ये मिलने-जुलने,फोन करने का खेल चलता रहेगा। धीरे-धीरे आप भी अपनी बोरिंग पढ़ाई छोड़ रैलियों, प्रदर्शनों में अपनी सक्रिय भागीदारी लेंगे। नेताजी से अब निजी परिचय भी हो गया। अब कुछ कमाई-धमाई भी हो। कुछ ठेका-पट्टा के लिए दौड़-धूप किए तो पुराने ठीकेदार के पेट पर लात पड़ने लगी। हो गई दुश्मनी। एक बार मार-पीट का सर्टिफिकेट भी ले लिए थाने से। अब तो अपना राज है। गली से गुजरे तो हर कोई नमस्कार-प्रणाम के बिना बात न करे। अब हाथ में खुजली कि एकाध को टपकाए बिना खत्म ही न हो। आखिर कृष्ण-जनमस्थल-दर्शन के लिए इसके सिवा उपाय ही क्या है।
चलो भइया ठीकेदारी हो गई। जेल-यात्रा भी हो गई। अब जीवन का अंतिम लक्ष्य बचा। वही जो पहले नहीं था लेकिन पिछले कुछ सालों में पहली पसंद बन गया। मंत्रीजी के आगे-पीछे रहके जो सत्ता-सुख के लिए लार टपकता, वह कब पूरा होगा। अब तो इतना बता दिए तो समझ ही गए होंगे। नहीं समझे तो मुश्किल है जिंदगी। अब भी मौका है, किसी बड़े भाई साहब से दोस्ती गाँठिए। ओके बाय!बेस्ट ऑफ लक।

1 comment:

  1. pankaj babu apni shahaj evam saafgoi k liye jaane jaate hai
    is lekhni me bhi apka jalwa barkarar hai...

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