Monday, April 12, 2010

ऐसा क्यों ?

जन्म दिया था आतंकवाद को।

आज लड़ रहे हो स्वयं आतंकवाद से।।

पहले तो दुश्मन थे हम तुम्हारे।

आज तुम स्वयं के दुश्मन बन चुके हो।।

पाला था जिनको अपने लिए तुमने।

आज वे ही तुम्हें जला रहे हैं।।

रक्त रंजित तो हम हुए थे पहले।

आज स्वयं का रक्त बहा रहे हो।।

खून बहा तो तुम खुश थे पहले…..।

आज अपनों का ही खून बहा रहे हो।।

ऐ दूसरे के खून पर हँसने वालों।

आज क्यों तुम खुद खून के आँसू बहा रहे हो।।

जब साथ माँगा था हमने तेरा।

तो उनके सुर में गा रहे थे।।

आज जब खुद पे हुई है खून की बारिश।

तो मेरा हाथ क्यों मांग रहे हो ?
- शेख मुहम्मद मुदस्सर

1 comment:

  1. the poem deals with the inner conscience of a person.
    keep going seikh
    well attempt

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