Monday, April 26, 2010

भ्रष्टाचार ही मूल समस्या

- नूपुर सक्सेना, एमए- मासकाम- सेकेंड सेमेस्टर

भारत को शिक्षित करने का सपना पूरा करने के लिए मनमोहन सिंह सरकार द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून 1 अप्रैल 2010 से लागू किया गया। निश्चित रूप से भारत में साक्षरता बढ़ाने के लिए, सरकार की ओर से एक अच्छा प्रयास है जो न सिर्फ अशिक्षित को शिक्षित करेगा बल्कि हजारों बच्चों को एक उज्जवल भविष्य भी देगा। गरीबी , बेरोजगारी, नक्सलवाद जो अभी देश के लिए चुनौतियाँ बनकर खड़ी हुई हैं, इन समस्याओं से भी निजात दिला सकता है। इस अधिनियम के तहत जिस शिक्षक -छात्र अनुपात को निर्धारित किया गया है उसका पालन मध्यप्रदेश सहित देश के किसी भी प्रांत मे होना अत्यंत दुष्कर है। स्कूल शिक्षा विभाग के एक आधिकारिक सर्वेक्षण के अनुसार मध्यप्रदेश के साढ़े 14 हजार शासकीय स्कूल एक-एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। एक अन्य आधिकारिक सूचना के मुताबिक राज्य के 14 हजार 593 शासकीय प्राथमिक स्कूलों में केवल एक-एक शिक्षक ही पदस्थ हैं। इन शिक्षकों पर पहली कक्षा से पाँचवी कक्षा तक के सभी बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ स्कूल शिक्षा विभाग की विभिन्न योजनाओं के संचालन व निगरानी करने का भी दायित्व होता है।
इसके लिए सिर्फ बातें बनाने और कानून लागू करने से कुछ हासिल नहीं होगा। अगर देष को एक सफल व विकसित देश की तस्वीर में बदलना है तो केन्द्र सरकार के साथ-साथ जरूरी है कि राज्य सरकारें भी इस अधिकार से पल्ला झाड़ने की बजाय इसे बोझ न मानकर अपना पूर्ण सहयोग दें ताकि योजनाओं को धरातल पर उतारा जा सके।
अब बात यहां सिर्फ शिक्षा तक ही सीमित नहीं रह गई है, अब बात देश के गौरव व सम्मान तक आ पहुंची है। आखिर क्यों हर बार भारत की व्यवस्था को ढ़ीला व कमजोर बताया जाता है, क्यों उसे हर बार शीशे में उतारने को कहा जाता है। शायद इसका जवाब है ‘भ्रष्टाचार‘ जो हर जगह अपना कब्जा जमा कर बैठा है और पल-पल अपनी जीत की खुषी मनाता रहता है । घमण्ड से कहता है “यहां मेरा साम्राज्य है, सब मेरे इशारे पर नाचते हैं।
आए दिन नए कानून बनने की जैसे प्रथा सी हो गई है। ऐसा लगता है कि दस्तावेजों में ही कैद होकर रहने और लालफीताशाही का शिकार बनने के लिए ही नए-नए अधिकार(कानूनन) देने की होड़ मची हुई है। अगर कामयाबी हासिल करनी है तो शीशे जैसे अरमां लेकर राहों से गुजरना छोड़ना होगा। खामियाँ गिनाने और मुँह मोड़ने की बजाय चुनौतियों को स्वीकारते हुए उनका डटकर सामना करना होगा।

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