माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ,भोपाल के जनसंचार विभाग के छात्रों द्वारा संचालित ब्लॉग ..ब्लाग पर व्यक्त विचार लेखकों के हैं। ब्लाग संचालकों की सहमति जरूरी नहीं। हम विचार स्वातंत्र्य का सम्मान करते हैं।
Thursday, April 15, 2010
गलती से मैं लेट हो गया
-साकेत नारायण
मुझे पता है में लेट हो चुका हूं कानू भैया को श्रद्धांजलि देने में। लेकिन आप समझ सकते है कि इस व्यस्त जिंदगी में खुद के लिए समय नहीं मिलता है और फिर दूसरों, वो भी कानू भैया जैसे महान व्यक्ति के लिए तो समय निकालने के लिए एक सुनियोजित योजना बनानी पड़ती है। किसी ने बहुत खूब कहा है कि इस तेज रफ्तार जिंदगी में अपनी जगह पर खड़े रहने के लिए भी दौड़ना पड़ता है। बस इसी वजह से मैं लेट हो गया।
कानू भैया एक महान व्यक्ति थे। परंतु मुझे ये समझ में नहीं आता की हमें किसी भी महान व्यक्ति की महानता का पता उसके मरने के बाद ही क्यों चलता है। कानू भैया अगर महान थे तो वो 23 मार्च 2010 से पहले भी महान जरुर रहे होगें। एक व्यक्ति जिसने नक्सलवाद जैसा विद्रोह करवा दिया वो आम नहीं हो सकता। अगर कानू भैया आजादी से पहले आए होते तो हमारा भारत शायद 1947 से पहले ही आजाद हो चुका होता। लेकीन ये मनुष्य की विडंबना है कि उसे समय से पहले और भाग्य से ज्यदा कुछ नहीं मिलता।
कानू भैया महान थे इसमें कोई दो राय नहीं परंतु वर्तमान में नक्सलवाद को देख कर अपने इस विचार पर एक बार संसय होता है। लेकिन इस संसय का ये कतई अर्थ नहीं है कि कानू भैया महान नहीं थे। आज कल के बच्चे जब बड़े हो जाते है तो वो अपने पिताजी के कहे में कहाँ रहते है। बस ऐसा ही कुछ नक्सलवाद के पिता कहे जाने वाले कानू भैया के साथ भी हुआ। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, अकसर ही महान लोग अपने बच्चों को अपनी महानता नहीं सिखा पाते और हमारे कानू भैया भी तो एक महान व्यक्ति ही थे।
मैंने शुरु में ही कहा था मैं लेट हो चुका हूं तो आप ये सोच रहे होगे की मुझे ये याद कैसे आया की में लेट हो चुका हूं। बस 7 अप्रैल के दंतेवाड़ा के नक्सली हमले के बाद। मुझे नहीं पता था कि मेरी इस छोटी सी भूल का ये परिणाम होगा। अगर आपने भी अभी तक कानू भैया को श्रद्धांजलि नहीं दी है तो जल्दी करे कही आप भी लेट न हो जाए। क्योंकि मुझे अपने लेट होने पर बहुत अफसोस है।
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पहले तो इस बात की तारीफ कि तुमने बहुत अच्छा लिखा है। खासकर लिखने की शैली। बेशक कानू के प्रारंभ किए गए आंदोलन में थोड़ी विसंगतियां आ गईं हैं। पर उनके आधार में नहीं। नक्सल हिंसा का समर्थन तो नहीं कर रहा पर हां नक्सल को लेकर हाल कुछ ऐसा है जैसा कि ईरान और इराक में आतंकवाद को लेकर रवैया। अमेरीका अपने को सबसे ज्यादा पाक साफ दिखता है क्योंकि उस पर दुनिया को बरगलाने का सारे संसाधन मौजूद है। मतलब मजबूत मीडिया। वो चाहते हैं कि मुस्लिम उनका देश छोड़ दें पर वो @#$% खुद इराक नहीं छोड़ंना चाहते।
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