Saturday, April 10, 2010

व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती रात्रिकालीन सेवाएँ

-पवित्रा भंडारी, एमए-मासकाम, सेकेंड सेमेस्टर
भूमंडलीकरण के इस दौर में जहाँ मनुष्य ने देश की सीमाओं को तोड़ दिया है वही सदियों से चले आ रहे मानव के दैनिक चक्र में भी फेर बदल कर दिया है। यह भूमंडलीकरण का ही परिणाम है कि मनुष्य ने 24X7 के परिवेश में काम करना शुरु कर दिया है। इसका एक उदाहरण है रात्रिकालीन सेवाएं जिसकी तरफ सबसे अधिक आकर्षित हो रहा है आज का युवा वर्ग। आज का युवा वर्ग तेज़ी से सफल होने की इच्छा रखता है। वह सफलता चाहता है,पैसा चाहता है, इस पैसे के द्वारा वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता पाना चाहता है। रात को नौकरी करना कई बार व्यक्ति की आर्थिक या सामाजिक मज़बूरी भी होती है और कई बार व्यक्ति का अपना शौक भी रहता है। कारण चाहे जो भी रहे पर उसका परिणाम तो एक ही रहता है, वह परिणाम है व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पडना। रात्रिकालीन सेवाओं के दौरान व्यक्ति अपने दैनिक चक्र का पालन सुचारु रुप से नहीं कर पाता ,जिसके अनुसार वह बचपन से चला आ रहा होता है। बचपन से ही व्यक्ति को अर्ली टू बेड अर्ली टू राइज़ सिखाया जाता है। व्यक्ति का शरीर उसको अपनाता है और उसका आदी हो जाता है। अगर व्यक्ति के इस दैनिक चक्र में एकाएक परिर्वतन हो जाए तो उसका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का प्रभावित होना स्वाभाविक है। रात्रिकालीन सेवाएं जहाँ व्यक्ति के नींद को प्रभावित करती हैं, वही दूसरी तरफ उसके खान पान को भी प्रभावित करती हैं। नियमित समय पर भोजन ना करने से व्यक्ति का पाचन तंत्र असंतुलित हो जाता है और उसका शरीर कई बीमारियों का शिकार बन जाता है। जहाँ तक सही नींद की बात करें तो व्यक्ति को अपने मस्तिष्क को पुन सक्रिय करने के लिए कम से कम सात घंटे की नींद लेना आवश्यक है। यह नींद दिन के समय मिल पाना मुश्किल है। सही समय पर भोजन ना मिल पाने और नियमित अवधि की नींद ना ले पाने से व्यक्ति असहज़ महसूस करने लगता है और चिड़चिड़ा होने लगता है। उसकी एकाग्रता क्षीण होने लगती है। इस प्रकार व्यक्ति मानसिक और शारीरीक रुप से अस्वस्थ रहने लगता है। रात्रि कालीनसेवाएं व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन को भी प्रभावित करती हैं वह अपने परिवार और समाज़ से कटने लगता है। 24X7 के कार्य प्रणाली में व्यक्ति अपने परिवार और समाज़ के विपरीत हो जाता है और उनके लिए समय नहीं निकाल पाता जिससे उसके भीतर असंतोष बना रहता है। अत यही कहा जा सकता है रात्रिकालीन सेवाएं व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं पर कितना और कैसे प्रभावित करती हैं यह निर्भर करता है व्यक्ति की क्षमता और उसकी सहनशक्ति पर।

1 comment:

  1. विषय नया व अच्छा चुना। अच्छा लिखती हैं आप। खासकर 'अर्ली दू बेड़ अर्ली टू राइस' का प्रयोग अच्छा लगा। आपके लेख से थोड़ा ये अहसास होता है कि आपका मन थोड़ा बंदिश में हैं अपने लेख में थोड़ा खुलापन भी लाइये।

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