Thursday, April 22, 2010

क्या से क्या हो गया……

-साकेत नारायण
जब कभी मैं अकेला रहता हूँ और भावुक होता हूँ तो मेरा दिल मेरे दिमाग से पूछता है कि ये क्या से क्या हो गया और कभी बिरले जब गलती से कुछ देर के लिए मैं चितंन करता हुँ तो मेरा दिमाग मेरे दिल से पुछता है कि ये क्षेत्र ठीक तो है न? और हमेशा घंटो सरदर्द करवाने के बाद भी मैं ख़ुद को निरुत्तर ही पाता हूँ।

ये प्रश्नो का खेल सन् 2004 में शुरु हुआ जब मैंने दसवी की परीक्षा दी। बचपन से सपना था इंजीनियर बनने का। पर पता नहीं क्यों मेरे भाग्य ने हमेशा मेरे सपनों को अपने ऐटीच्युड पर ले लिया। इस बात का सबसे बड़ा सुबूत मुझे अपनी दसवीं के रिज़ल्ट से मिला और मुझे बारहवीं में बायोलॉजी लेना पड़ा। सपनो में थोड़ा सा चेंज़ आया और अब मैं डॉक्टर बाबू बनना चाहता था। परंतु ये दो साल कब और कैसे खत्म हो गए पता ही नहीं चला। ये दो साल मेरे अब तक के जीवन के सबसे जल्दी खत्म हुए दो साल थे। सपना डॉक्टर बाबू बनने का था और यहां बारहवीं पास करने के लाले पड़ रहे थे। मैंने भी बड़े प्रेम और आदर के साथ बाबूजी को बता दिया कि पिताजी रिजल्ट में डर लग रहा है। पिताजी ने हिम्मत बढ़ाते हुए कहा चिंता मत करो सब ठीक होगा वैसे डर किन विषयों में लग रहा है? मुझ में भी कुछ हिम्मत बढ़ी और मैंने कहा- “केमेस्ट्री, मैथ्स और फिजीक्स में”। अब परिस्थिति बिल्कुल पलट चुकी थी और पिताजी ने बड़े प्रेम और आदर भाव में कहा- “बेटा बचा क्या तुमने तो पाँच ही विषय लिए है”। उस वक्त मैं मानो ये चाह रहा था कि कुछ हो जाए और जमीन फट जाए और मैं उस में समा जाऊँ। पर मुझे ये पता नहीं था कि हमारी ये बात कोई और भी सुन रहा है और एक बार फिर मेरे भाग्य ने इसको अपने ऐटीच्युड पर ले लिया पर इस बार ये मेरे लिए पाजीटिव रहा और मैं बारहवीं पास कर गया।

अब विषय था कि जीवन में आगे क्या करना है। किसी ने बहुत ख़ुब कहा है अगर हौसले बुलंद हो तो राहे ख़ुद-ब-ख़ुद बन जाती हैं और कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। परंतु इसके पीछे का जो स्ट्रगल है वो मुझे आज तक समझ नहीं आया। बारहवीं पास करने का जश्न मनाने के बाद मुझे बस पता ये था कि कुछ भी हो जाए मुझे एडमिशन लेना है किसी चीज में भी। इसी सिलसिले में, मैं जुलाई में जमशेदपुर पँहुचा और फिर शुरु हुआ रीयल स्ट्रगल। इसी क्रम में एक दिन मैं करीम सीटी कॉलेज पँहुचा और कॉमर्स का फॉर्म लेते-लेते मैंने मास कॉम का फॉर्म ले लिया। देखते ही देखते मैंने रिटेन और इंटरवियु दोनो क्लीयर कर लिया और मैं मास कॉम से बैचलर्स करने लगा। पहले दो साल तक मुझे यही पता था कि मुझे बैचलर्स के बाद एम.बी.ए करना है। पर मुझे ये पता नहीं था कि मेरी इस इच्छा की वजह से पुरी दुनिया को दिक्कत उठानी पड़ेगी। इस बार मेरे भाग्य ने मेरे एम.बी.ए करने की बात को थोड़ा ज्यादा सीरियसली ही अपने ऐटीच्युड पर ले लिया और फलस्वरूप पूरे विश्व में रिसेशन आ गया। अब घर वालो ने कहा बेटा एम.बी.ए छोड़ो और अपने फिल्ड में ही मास्टर्स करो। एक बार फिर मैंने अपने सपनो में थोड़ा सा चेंज किया और अब मैं माखनलाल चतुर्वेदी के जनसंचार विभाग का छात्र हूँ। आज जब कोई मेरे से पूछता है कि आगे क्या करना है और किस फिल्ड में जाना है, तो मेरा दिल मेरे दिमाग से यही कहता है ये क्या से क्या हो गया..............

1 comment:

  1. saket niras mat hoiye himmate marda te madate khuda age m phil n phd baki hai keep contiue.

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