माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ,भोपाल के जनसंचार विभाग के छात्रों द्वारा संचालित ब्लॉग ..ब्लाग पर व्यक्त विचार लेखकों के हैं। ब्लाग संचालकों की सहमति जरूरी नहीं। हम विचार स्वातंत्र्य का सम्मान करते हैं।
Saturday, April 10, 2010
ये कहां आ गए हम?
-शिशिर सिंह
पत्रकार बनने की तमन्ना थी। दरअसल अकेले पत्रकार ही बनने की तमन्ना नहीं थी, मन के किसी कोने में एक जज्बा भी था कि हमें उन चीजों को बदलना है जिनको लेकर हम असंतुष्ट है। उसे पत्रकारिता में प्रवेश करने का शिशु काल कहा जा सकता था और मन बच्चों के समान सच्चे। इच्छा पूरी करने के लिए माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय चले आए। माखनलाल विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की दिशा और दशा से संबंधित कई संगोष्ठियां और सम्मेलन आयोजित होते रहते हैं। सब कवायदों का एक ही सार कि हम यानी मीड़िया संकट में हैं। यह संकट विभीषणी है। इन सम्मेलनों में आये आमंत्रित पत्रकार, अतिथि सब का यही कहना कि मीडिया कीचड़ में धंसती जा रही है सबका दुःख यही है कि यहां गंद मची हुई है। ऐसा लगता है कि इस माहौल में सपनों को पूरा करना तो बहुत बड़ी बात होगी अपना अस्तित्व ही बचा ले तो यह जीवन सफल मान लिया जायेगा। सबके सब असंतुष्ट है, पर कोई कुछ कर नहीं पा रहा। किसी भी क्षेत्र में कर्मचारियों को मजबूत यूनियनें हैं। मीडिया में पत्रकारों की कोई मजबूत यूनियन ही नहीं है। ले देकर श्रमजीवी पत्रकार संघ बनते हैं पर उनकी ताकत भी मीडिया संस्थान के मालिकों के आगे धरी की धरी रह जाती है। बचावत कमेटी ने मीडियाकर्मियों के लिए सिफारिश की थी। साफ तौर पर कहा गया था कि यह उच्च रचनात्मकता वाला क्षेत्र है इसलिए इसमें काम करने वालों को भी सम्मानजनक पैसा मिलना चाहिए पर उसका क्या हुआ? उसे उपेक्षित कर दिया गया। समाज के हर वर्ग का बुर्जुआ बनने वाला मीडिया खुद के लिए ही कुछ नहीं कर सकता। यहां दिया तले घुप्प अंधेरा है और उसके आस-पास इतनी कालिख कि उसके पास जाने वाले व्यक्ति का भविष्य ही काला हो जाता है। आखिर मीड़िया में ऐसा क्या हो गया है, कोई रोशनी ही नजर नहीं आती। यह महसूस होना बंद हो गया है कि मीड़िया में कुछ अच्छा होने की खुशी हम मना सकते हैं। सारा दुःख मीडिया पर ही टूट पड़ा है। बहुत ज्यादा आशावाद के नाम पर नेता के भाषण के तरह यह झुनझुना पकड़ा दिया जाता है कि सब कुछ बिगड़ा नहीं है अभी भी काफी उम्मीद है। पर ढाक भी अपने तीन पात बदलने को तैयार नहीं दिख रहा है।
और अंत में
एक खबर: सानिया मिर्जा को भाया पाकिस्तान दूल्हा, मनीषा कोइराला ने पसंद किया नेपाली छोरा।
पाठकों की प्रतिक्रिया: अगर देश की लड़कियों ने दूल्हों के लिए यह फैशन अपना लिया तो देशी लड़को का क्या होगा!
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nice
ReplyDeletegood yaar.... u have good writing skill, keep on writing...it's good to read ur article.
ReplyDeleteरुस में 90 लाख लड़कियों को लड़का नहीं मिला, वो आ जाएंगी
ReplyDeleteSahi likha hai par in sab baato ki parvah kise hai tum bhi mat karo sirf money ka baare me socho or use paane k liye hi koshish karo sabse or chijo k saath saath ye bhi bahut jaruri hai.
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