Thursday, April 15, 2010

नक्सल पर नकेल जरूरी

-कृष्णकुमार तिवारी
नक्सलवादियों को शांति प्रस्ताव भेजा जा रहा है...... नक्सलवादियों से बात करेगें............ जैसी बात करने वाले नेताओं को शायद इसी दिन का इंतजार था कि कब कोई घटना घटे और फिर वही पुराना घड़ियाली आंसू बहा सके। जिस सरकार पर विश्वास कर युवक सेना में भर्ती होते है। क्या सरकार ने भी कभी उन लोगों के विश्वास को कायम रखने की कोशिश की ? शायद नही।
आखिरकार जवानों की मौत पर मौत होने से तो यही बात सामने आती है। हम ज्यादा पीछे ना जाए तो भी यह देख सकते है कि सरकार द्वारा केवल अपनी छवि को साफ-सुथरा बताने के चक्कर में कितनें जवानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। एर्राबोर क्षेत्र में 2005 मे हुए एक नक्सली हमले में पुलिस के 30 जवान शहीद हो गए थे।वर्ष 2007 मे नक्सलीरयों ने बीजापुर जिले के रानीबोद पुलिस पर हमला कर 55 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। वहीं पिछले साल जुलाई के एक हमले मे राजनांदगांव जिले के पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे समेत 29 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे और मंगलवार को दंतेवाड़ा जिले के चिंतलनार और टारमेटला गांव के बीच घटी घटना । इसमें केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के असिस्टेंट कमांडेंट मीणा और डिप्टी कमांडेंट सत्यवान समेत 75 पुलिसकर्मी शहीद हो गए।
इतनी बड़ी घटना के बाद सरकार की कुंभकर्णी नींद टूटी है। अब जाकर कहीं सरकार कड़ी कार्रवाई की बात कह रही है। अगर वास्तव में किसी को कटघरे मे खड़ा करना चाहिए तो उन प्रबुद्ध वर्ग को जो नक्सलवादियों का समर्थन करते है। जिनको नक्सलवाद कहीं ना कहीं सही लगता है। उन समर्थकों को अपने आप से केवल एक सवाल करना चाहिए कि क्या अपनी बात को मनवाने के लिए इतने मासूमों की जान लेना सही है। आखिरकार जब सरकार खुद इस बात के पक्ष मे है कि अपनी बात को आप आगे आके रखे तो फिर यह क्या है?
अभी तक का यह प्रमाण रहा है कि नक्सली केवल और केवल खून खराबे से ही अपनी बात मनवाना चाहते है लेकिन शायद वे ये बात भूल गए है कि यह लोकतंत्र है इसमे सभी को अपनी बाते अपने तरीके से रखने की पूर्ण स्वतंत्रता है। समजसेवी कहे जाने वाले विनायक सेन को छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सलवादीयों का मास्टर माइंड मान कर जब पकड़ा तो यह लोकतंत्र ही था जब देश से ही नही बल्कि विदेश से भी उसके समर्थन मे लोगो मे अपनी बात कहीं । आखिरकार आज विनायक सेन सलाखो से बाहर है। फिर क्यो नक्सली वो रास्ता नही अपनाते जिससे कोई बीच का रास्ता निकाला जा सके। आखिरकार उन मासूमों का क्या दोष जो इस खेल के शिकार हो रहे है।
छत्तीसगढ़ सरकार का द्वारा भी सलवा जुडूम यानि शांति का संदेश नामक एक सेना तैयार की गई । लेकिन एक समय बाद उसमे भी कमियां आ रही है। किसी भी प्रकार के विवाद का सही हल तो यही होना चाहिए कि कोई ऐसा रास्ता निकाला जाए ताकि अब फिर किसी भी खून-खराबे को रोका जा सके।

1 comment:

  1. रक्त का रंग हमेशा लाल रहेगा चाहे वो किसी का भी हो....

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