- नूपुर सक्सेना, एमए- मासकाम- सेकेंड सेमेस्टर
कितना अच्छा लगता है जब कोई हमें आधुनिक कहता है। जब हम अपने बारे में ऐसा सुनते है तो खुद को न जाने क्या समझने लगते हैं। कौन अपने आपको आधुनिक बनाना नहीं चाहता। आज हमारी छोटी से छोटी कोशिश यही रहती है कि, अपने आपको कैसे आज के दौर मे ढालें। हम अपने आपको बदलने मे लगे रहते हैं और हर उन छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देते है जिससे हम नए और बेहतर लगें। बहुत ही अच्छी बात है कि कम से कम आज हम अपने आपको लेकर थोड़ा सोचता तो है, बहुत ज्यादा नहीं पर इतना ध्यान जरूर रखते हैं कि हम अपने आप को सुन्दर रूप में पेश कर सकें।
यह हमारे मानवीय होने का एक गुण है कि , खुद को इस रूप में रखें कि देखने वाला आपका मुरीद हो जाए और अपने आपको आप जैसा बनाने की कोशिश करे। आपकी हर एक चाल-ढ़ाल, हर एक बात, आपका तौर-तरीका और यहां तक की आपके उठने- बैठने का व्यक्तित्व भी खूबसूरत हो जिसे आपके व्यक्तित्व का परिचय कहते हैं और इसी व्यक्तित्व की छाप हम दूसरे पर छोड़ते हैं। जरा सोचिए, अगर हम अपने आपको एक पहचान न दे सकें, खुद को एक नया रूप न दे सकें तो हमने क्या किया। क्या हमारी जिन्दगी का सिर्फ एक ही मकसद है, दो जून रोटी इकट्ठा करना और उसके लिए खुद को मिटा देना। क्या अपने दिल व दिमाग को उस काम की भट्टी में झोंक देना ही जीवन का मकसद होना चाहिए? ऐसा नहीं है। काम हमारी जरूरत है और इच्छा हमारी सोच। हमारी सोच, हमारी इच्छा पर, काम को हावी नहीं होने देना चाहिए। इच्छाओं को मारकर काम करते रहना जिंदगी का मूल नहीं होना चाहिए।
आज के इस नए दौर में अगर हम अपने आपको सुसज्जित नही कर सके तो हम पिछड़े कहलाएगें। पर सिर्फ आधुनिक दिखने के लिए अपने आपको मशीनी इंसानो की तरह खड़ा कर देना ही नयापन नहीं है खुद को मशीनों और आधुनिक कपड़ों में लपेट लेना ही नवीनीकरण नहीं है ये तब तक आज के लोगों पर खरा नहीं उतरेगा जब तक हम अपनी सोच अपना नज़रीया नही बदलते हैं, हम नकल कर अपने आपको उन जैसा बना तो लेते हैं पर अपने सामाजिक रवैये को नही बदलते हैं। हमारे बात करने का लहजा, काम करने का तरीका, लोगो से पेश आने का अंदाज और उनसे मिलना जुलना सब हमारी सोच का प्रारूप होता है। हम जो भी कुछ करते हैं ये तो हमारा सलीका ही होता है कि कैसे हम अपने आपको व्यवस्थ्ति कर रहे हैं। किसी दूसरे कि नकल करके हम सलीका नही लाते हैं यह हमारे क्रियात्मकता और रचनात्मकता से उत्पन्न होता है जो हम खुदसे बनाते हैं। हम खुद को कितना भी बदल लें पर हमारा असली रूप झलक ही आता है। बनावट की दुनिया ज्यादा दिन नहीं चलती। खुद को एक अंदाज मे पेश करना हमारा मूल मंत्र होना चाहिए; जिसमें हमारा व्यवहार, हाजिर जवाबी, मेल मिलाप, सोचने का नजरिया आदि शामिल होना चाहिए। खुद को आधुनिक बनाना बड़ी बात नहीं है , पर खुद को आधुनिक करना बड़ी बात है।
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