Thursday, April 22, 2010

सरकार में दृढ़ संकल्प का अभाव


नक्सलियों से निपटने की रणनीति अस्पष्ट
-कुन्दन पाण्डेय

नक्सल उन्मूलक आपरेशन ग्रीन हंट सुरक्षा बलों के मरने का आपरेशन बनता जा रहा है। छत्तीसगढ़ जिले में 76 सीआरपीएफ जवानों का नरसंहार इसका ज्वलंत उदाहरण है। यह नक्सलियों का अब तक का सबसे बड़ा नरसंहारक हमला है। अतिवादी सशस्त्र हिंसक नक्सली आन्दोलन सन् 1967 में पं. बंगाल के दार्जिलिंग जिला स्थित नक्सलबाड़ी गाँव से पनपा था। आज यह भारत के 626 जिलों में से 20 राज्यों के 232 जिलों के तकरीबन 2000 थाना क्षेत्रों तक फैल चुका है, जो कि देश का लगभग 40 प्रतिशत है।
पिछले कई महीनों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कई बार नक्सली हिंसा को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा एवं गंभीर खतरा बताया है। नक्सलियों से ग्रस्त राज्यों में यदि आंध्रप्रदेश में इसके नियंत्रित होने को छोड़ दिया जाय तो अन्य किसी राज्यों में ये नियंत्रण में नहीं है। छत्तीसगढ़ में सरकार के पास ठोस रणनीति की जगह बयानबाजी अधिक है, साथ ही भ्रष्टाचार व आदिवासियों पर हो रहे जुल्मों को भी रोकने में सरकार लगातार अक्षम साबित होती जा रही है।
नक्सली समस्या का समाधान नहीं होने का प्रमुख कारण यह है कि सभी राजनीतिक दल नक्सलियों को आदिवासियों व मजदूरों का वास्तविक व सच्चा प्रतिनिधि मानते है और उन्हें डर है कि नक्सलियों पर कार्रवाई करने से उनका वोटबैंक कम हो जायेगा और वे चुनाव हारने लगेंगे। लेकिन वास्तविकता यह है कि नक्सलियों का गरीबों, आदिवासियों व मजदूरों की लड़ाई से कोई लेना-देना नहीं है और न ही इन तबकों में नक्सलियों की कोई गहरी पैठ है। यह तथ्य इस बात से प्रमाणित होता है कि नक्सली वर्तमान में प्रत्येक परिवार से एक बच्चे को जबरन अपने काडर में भर्ती कर रहे हैं।
वास्तव में नक्सली देश की सत्ता, माओ दर्शन, “सत्ता बंदूक की नली से मिलती है ” की विचारधारा पर चलकर हथियाना चाहते हैं। लेकिन नक्सली यह भूल जाते हैं कि भारत में लोकतंत्र की जड़े उनकी समझ से परे बहुत व्यापक रुप से गहरी हैं। पिछले 60 सालों में भारतीय लोकत्रंत ने चार युद्धों और सन् 1975 में गृहयुद्ध सरीखे आपातकाल का सफलतापूर्वक सामना किया है। नक्सलियों ने विदेशी हथियारों व मदद के बल पर पं. बंगाल से कर्नाटक तक एक “रेड़ कॉरिड़ोर” बनाया है। जिसमें पूर्वोत्तर के विकास न कर पाये अलगाववादी हिंसा से ग्रस्त राज्य शामिल नहीं हैं।
क्या नक्सली पूर्वोत्तर के राज्यों के विकास से संतुष्ट हैं ? नहीं लेकिन उन्हें विकास नहीं बल्कि बंदूक के दम पर भारत की सत्ता चाहिए। यदि बंदूक की क्षमता से ही सत्ता का फैसला करना माओवादियों को हर हाल में मंजूर है तो सरकार की बंदूक माओवादियों से कई गुना अधिक क्षमतावान है, जो उनकी बंदूकों को अत्यल्प समय में खामोश कर देगी। माओवादियों को हिंसा का रास्ता छोड़ कर अविलम्ब सरकार से बातचीत करना ही होगा अन्यथा सरकार उनको समाप्त कर देगी।
विकास से नक्सलियों का कोई लेना-देना नहीं है इसलिए नक्सली विकास के सभी आधारों स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, पुल, सड़क तथा कानून व व्यवस्था को बनाये रखने के लिए अपरिहार्य पुलिस थानों तक को बम से उड़ाकर के कैसा विकास चाहते है ? दरअसल नक्सलग्रस्त राज्यों में यदि विकास हो गया ,पर्याप्त रोजगार, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल पुल व सड़क की सुविधा हो गयी तो नक्सली अपने काडर में किसकी भर्ती करेगें ? इसलिए नक्सली विकास के सभी आधारों को नष्ट करके वंचित लोगों को दुःखी, जिल्लत, बेबस व लाचार बनाये रखने को कृतसंकल्पित हैं जिससे उन्हें लक्ष्य प्राप्ति तक मानव संसाधन पर्याप्त रुप से मिलता रहे।
गरीबों, आदिवासियों, मजदूरों, भूमिहीन ग्रामीणों के समर्थन का दम्भ भरने वाले नक्सली चुनावों में विजयी होकर, अपनी विचारधारा की सरकार बनाकर छत्तीसगढ़, झारखण्ड जैसे आदिवासी बहुल राज्यों का विकास क्यों नहीं करते ? वास्तविकता व सच का सामना नक्सली चुनावों में इसलिए नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें भय है कि कहीं हमारी पोल न खुल जाय कि हमारी पैठ केवल बुलेट के भय से है, इंसानी दिलों में तो पैठ है ही नहीं।
दूसरा कारण यह है कि एक किसी राज्य विशेष के चुनावों में करारी हार के बाद नक्सली उस राज्य में समाप्त ही हो जायेंगे।
नक्सली बौद्धिक रूप से दरिद्र प्रतीत हो रहे हैं क्योंकि श्रेष्ठतम उदात्त लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसके साधन भी श्रेष्ठ होने चाहिए, यह महात्मा गाँधी का कथन है। नक्सलियों को इस लोकतंत्र को कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए कि लोकतांत्रित शासन प्रणाली के कारण ही लोग उसके पक्ष में लेख लिखते हैं, धरना प्रदर्शन करते है। माओ विचारधारा वाले चीनी शासन ने अपने शिनझियांग प्रांत के विद्रोह को जैसे कुचल डाला, वह नक्सलियों भारत सरकार दोनों के लिए स्मरणीय है। सरकार के लिए इस कारण कि वह उसी तरह से नक्सलियों का सफाया कर दे और नक्सलियों के लिए इस कारण कि वह या तो हिंसा का रास्ता छोड़कर बातचीत करके राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल हो जाय या तो सुरक्षा बलों द्वारा कुचले जाने को तैयार रहें।
एक बात शीशे की तरह एकदम साफ है कि भारतीय लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। पिछले 60 वर्षों के लोकतांत्रिक इतिहास में भारत में एक भी सशस्त्र आन्दोलन सफल नहीं हुआ है। नक्सलियों को हिंसा का रास्ता छोड़ना ही होगा। भारत सरकार नक्सलियों के सामने घुटने टेकने से पूर्व भारतीय सेना का प्रयोग एक बार अवश्य करेगी जिसमें सारे नक्सली अवश्य ही मारे जायेंगे।
आज राजनीतिक दलों की रुचि “ ग्रासरुट पॉलिटिक्स ” में नहीं रही। किसी राजनीतिक दल के नेता और कार्यकर्ता अब सुदूर गाँवों , पिछड़े आदिवासी इलाकों में नहीं जाते। उनके बीच केवल नक्सली ही जाते है इसलिए बेरोजगार युवक नक्सली काड़र बन रहे हैं। नक्सलियों की ताकत छुपी है वंचितों में, शोषितों में, गाँवों में, गरीबों में। व्यवस्थागत अन्याय और भ्रष्टाचार उन्हें ऊर्जा देते हैं। उनके रहनुमा अपने कामकाज, दृष्टि और विचारधारा में स्पष्ट हैं। वे जानते है कि उनकी ताकत का अजस्र स्रोत हैं – गहराती, फैलती सामाजिक आर्थिक विषमता । पर नक्सली सबसे बड़ी ऐतिहासिक भूल कर रहे हैं कि वे भारतीय लोकतंत्र में हिंसा से बदलाव चाहते है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में यह एकदम असम्भव है।
यह सही है कि आज की व्यवस्था में भ्रष्टाचार मुद्दा नहीं रहा, नैतिक सवाल नहीं रहा, यहाँ तक तो ठीक है परंतु भ्रष्टाचार आज की व्यवस्था में एक शिष्टाचार बनता जा रहा है, यह व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी है। पर दुनिया भर के विशेषज्ञ एक सुर में कह रहे हैं कि विकास के रास्ते में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा रोड़ा है। झारखंड में भ्रष्टाचार की स्थिति अत्यंत स्तब्धकारी है। नक्सली इस नाजुक मुद्दे को उठाते हैं। अगर नक्सलियों के खिलाफ सरकार वास्तव में निर्णायक अभियान चलाना चाहती है तो उसे अपनी सोच, नीति, कार्यान्वयन, चाल-चरित्र आदि में गुणात्मक परिवर्तन अवश्य करना होगा । दरअसल नक्सली समस्या से निपटने के लिए एक उत्कृष्ट लोकतांत्रिक राजनीति चाहिए , जो जनता के प्रति प्रतिबद्ध , नैतिक , पारदर्शी व ईमानदार हो । यह काम सरकार और राजनीतिक दल ही कर सकते हैं, परंतु वर्तमान कार्यप्रणाली से कतई नहीं .

3 comments:

  1. उच्च कोटि की भाषा शैली है आपकी, बहुत अच्छा पर थोड़ा इंस्टैट रुएक्शन दीजिए।

    ReplyDelete
  2. ab to kundan babu ne likh diya hai.....kaha jaoge mao wadi..........gaon gaon bhagae jaaoge........bhaagoooo....kundan aaya.......

    ReplyDelete
  3. Kundan ye mahan lekh likhne ke kabiliyat shirf tum me he hai. Great thought and awesome article. Jai kundan bhai.

    ReplyDelete