Friday, April 23, 2010

राजनीतिक पार्टियों के पाट में पिसते दलित

-देवेश नारायण राय
पिछले दिनों डा0 भीमराव अम्बेडकर जयंती पर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी और बसपा सुप्रीमो मयावती के बीच मचे घमासान से एक बात तो स्पष्ट है की दोनो पार्टियाँ दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करना चाहती हैं। बसपा का तो इस पर काफी हद तक नियंत्रण भी है। और कांग्रेस को इस बात का भान हो चुका है कि अगर उत्तर प्रदेश की राजनीति में पैठ बनानी है तो दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करना ही पडेगा। इसी का परिणाम था अम्बेडकर जयंती पर दोनो पार्टियों के बीच का कलह। दोनो पार्टियों के बीच के घमासान से एक बात तो स्पष्ट है प्रदेश की राजनीति में दलितो का महत्वपूर्ण स्थान है। पार्टियाँ भी इन पर अपना नियंत्रण बनाये रखना चाहती है। अपने आप को दलित-हितैषी साबित करने का कोई भी मौका चूकना नहीं चाहती हैं। दलितों का प्रदेश की राजनाति में महत्वपूर्ण स्थान होने का एक प्रमुख कारण उनका संगठित होना है। पर क्या वो संगठित होने के साथ सशक्त भी हैं?

नही! उनके संगठित होने का कारण उनका असशक्त और अशिक्षित होना है। दलितों के मन में हमेशा असुरक्षा की भावना बनी रहती है। इसी बात का फायदा ये राजनीतिक पार्टियां उठाना चाहती हैं और कुछ तो उठा भी रही हैं। वे स्वयं चाहतीं हैं कि दलित शिक्षित और सशक्त कभी न बन पायें। अगर दलित शिक्षित और सशक्त हो गया तो उनके दलित हितैषी होने के स्वांग का पर्दा उठ जाएगा और उनका बोरिया-बिस्तर बंध जायेगा। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी दलितों के झोपड़ियों में जाकर, खाना खाकर उनकी सहानभूति पाना चाहते हैं। पर एक बात ये सोचने पर मजबूर करती है कि जिस अमेठी और रायबरेली की सीट ने कई कांग्रेसी प्रधानमंत्री दिए वहां दलितों को आज भी झोपड़ों में रहना पड़ता है। क्या सिर्फ राहुल बाबा के राजनीतिक स्टंट के लिए वहां झोपड़े हैं या कांग्रेस के दलित विरोधी होने के कारण?

इस बात को तो देश की दलित जनता ही तय करेगी। वहीं दूसरी तरफ बसपा सुप्रीमो मायावती दलितों की तथाकथित ख़ैरख़्वाह बनी हुई हैं। दलित सम्मान के नाम पर उत्तरप्रदेश के हर गाँव, हर शहर तालाबों, पोखरों और न जाने कहाँ- कहाँ डा भीमराव अंबेडकर की प्रतिमाएं लगवा रखी हैं। लखनऊ में 800 करोड़ रुपये का अंम्बेडकर पार्क बनवाकर दलितों का सम्मान लौटा दिया। पर क्या इन पार्कों और प्रतिमाओं से दलितों के जीवन-स्तर में सुधार आया? क्या उनके रोजगार सुनिश्चित हुए? क्या उनकी शिक्षा सुनिश्चित हुई? क्या उनपर होने वाले अत्याचार कम हुए? लगता नहीं इन सवालों का जवाब देना पड़ेगा। इनके उत्तर आइने की तरह साफ हैं। उत्तरप्रदेश की हर गली, हर चौराहे पर डॉ0 भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा अपने अपमान और प्रदेश की दुर्दशा के लिए प्रदेश सरकार पर उंगली उठाए खड़ी हुई प्रतीत होती हैं। मायावती जनता के पैसे को मनमाने ढंग से खर्च कर रही हैं। उन्होनें अपने अब तक के कार्यकाल में राज्य-स्तर पर दलितों के लिए कोई बड़ी योजना लागू नहीं की है। उनके अब तक के कार्यकाल में दलितों की उपेक्षा ही हुई है। ये राजनीतिक पार्टियां स्वर्ण-मृग बनकर प्रदेश की दलित जनता को ठग रही हैं। अब प्रदेश की दलित जनता को ही इन राजनीतिक पार्टियों के दलित- हितैषी होने के स्वांग का पर्दाफाश करना पड़ेगा।

2 comments:

  1. bilkul sahi desh ki rajniti abhi isi par tiki hai ki loktantra ke sabse mahatwapurna hisse ko kaise istamaal kiya jaye or vikas se dur rakha jaye.
    sarahniya vichar hai aapke.

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  2. kaphi achha muda uthaya hai aapne devesh bhai. is vishay par aise lekhan ke jarurat hai. carry on..........

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