Monday, April 12, 2010

लिखना शुरू करें

पंकज कुमार साव,स्नातकोत्तर(जनसंचार)-द्वितीय सेमेस्टर
कौन कहता है कि आसमाँ में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो। हममें से ज्यादातर लोग लिखना तो चाहते हैं पर लिखते नहीं। हम सिर्फ इस डर से लिखना शुरू नहीं करते कि शायद अच्छा नहीं लिख सकेंगे। मजे की बात ये है कि हम साथ ही साथ ये सपना भी देख रहे होते हैं कि भविष्य में अच्छा लिखेंगे। बिना अभ्यास के ही हमें एक चमत्कार का इंतज़ार होता है कि हमारा पहला लेख ही सबसे बेहतर लेख होगा। परन्तु सच तो ये है कि जब कोई लिखेगा ही नहीं तो उसकी लेखन-कला में क्या खाक निखार होगा। क्या कोई जन्मजात लेखक होता है या कोई जादू की छड़ी है जो हमें एक ही बार में लिखना सिखा दे। बिना अभ्यास के कुछ नहीं सुधरता। फिर तो लिखना भी एक कला है, इसे सीखा भी निरंतर अभ्यास से ही जा सकता है। इसमें सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।
प्रख्यात चित्रकार और मूर्तिकार देवीलाल पाटीदार का मानना है कि ज्यादातर लोग इस मुगालते में जीते हैं कि आज की शाम वो ऐसी कविता, कहानी या निबंध लिखेंगे कि दुनिया अचंभित हो जाएगी। ऐसे लोग कला को एक ही तैयारी में किसी विशेष आयोजन की तरह समझते हैं और दुविधा में कुछ शुरु नहीं करते, टालते चले जाते हैं। बकौल पाटीदार यह प्रवृति ठीक वैसे ही है जैसे कोई व्यक्ति ये सोचकर बच्चे पैदा करे कि होने वाली बच्ची विश्व-सुंदरी होगी। वास्तविकता यह है कि कई प्रतिभागियों में से एक को विश्व- सुंदरी का खिताब मिलता है, इसी तरह हजारों- लाखों रचनाओं में कोई पुरस्कृत हो जाता है। सर्वश्रेष्ठ का सपना देखते हुए अकर्मण्य बने रहना कहाँ की बुद्धिमानी है।
हमें प्रकृति के इस नियम को समझना होगा कि सर्वश्रेष्ठ एक ही होता है पर बाकी सभी ख़राब नहीं होते। हमारे सोचने मात्र से कुछ अच्छा या बुरा नहीं हो जाता। हम मुगालते में जीकर पछतावा के अलावा कुछ हासिल नहीं करते। इसलिए हमें लिखने का काम लगातर करते रहना चाहिए। परिश्रम के अलावा कोई रास्ता नहीं। बिना अभ्यास के हम अच्छा नहीं लिख सकते। हम याद करें अपने बचपन को जब एक-एक चीज़ को काफी जद्दोजहद के बाद हम सीख पाते हैं। चलना, उठना, खाना, पीना सब के लिए लगातार उर्जा लगानी पड़ती है। वर्ण एवं मात्राएं सीखने के लिए कितना प्रयास करना पड़ता है, किसी से छिपा नहीं है।
हमारे मन-मष्तिष्क में नए-नए विचार आते रहते हैं। प्राय: हम इन्हें व्यक्त नहीं कर पाते। कई बातें हमारे मन को झकझोरती रहती हैं पर उसे मुँह से बोलकर बताना अच्छा नहीं जान पड़ता। स्थिति कई बार तो अवसाद का रूप ले लेती है। इसलिए न कही जाने लायक बातों का बोझ मन से निकालने का जरिया भी है कलम और काग़ज़। लिखी हुई बातें ज्यादा टिकाऊ और प्रभावी होती हैं। विशेषज्ञों का यह मानना है कि लिखने से मानसिक दबाव भी कम होता है। लिखी बातें भविष्य के लिए सुरक्षित भी रखी जा सकती हैं।
लिखने की कला का महत्व और भी बढ़ जाता है जब हम पत्रकारिता से जुड़े हों। लिखने के बदौलत ही तो पत्रकारों की रोटी का जुगाड़ होता है। अगर हमनें समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया तो पछतावे की कोई बात नहीं। जब जागो तभी सबेरा। मगर हाँ हम अगर अब भी नहीं चेते तो आगे का समय मश्किल भऱा हो सकता है। हो सकता है शुरुआत में बेहतर न लिख पाएँ पर निरंतर अभ्यास से सब ठीक हो जाएगा। किसी ने ठीक ही कहा हैः
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत-जात ते सिल पर परत निशान।।

3 comments:

  1. बेहतरीन! पहले तो इस बात की तारीफ की तुमने बहुत अच्छा लिखा है। बात सही कही है कि हम लोग यही मानकर चलते हैं कि हमारे हर काम मानदंड और उदाहरण हैं। बड़ा लेखक भी नहीं जानता कि उसकी आगामी कृति किस दर्जे की होगी? प्रशंसनीय। अच्छा तो तुम लिखते ही हो। मैं तुम्हें अभी सलाह देने वाली स्थिति में नहीं हूं। तो यही कहूंगा कि तुम्हारे और लेखों का इंतजार रहेगा। और प्लीज अगले पोस्ट में फोटो भी देना। ताकि और लोगों को आपके नैन नक्श का भी दीदार हो जाए।

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  2. i m sppechless,its one of its kind. concerning contemperory issue of newly born writers.
    this would enhance and boost up the skills of a freasher
    hope to see ur efforts in the coming future
    no close substitute bhai......

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  3. बेहतरीन! पहले तो इस बात की तारीफ की तुमने बहुत अच्छा लिखा है

    sanjay bhaskar
    mmc kuk

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