Saturday, July 25, 2009

बंद न होगी पहल

-मुकेश कुमार

साहित्य और विचार-प्रेमियों के लिए एक खुशखबरी है। कुछ समय पहले स्थगित कर दी गयी सुप्रतिष्ठित पत्रिका पहल का प्रकाशन फिर से शुरू होने जा रहा है। लगभग पैंतीस साल तक पहल निकालने के बाद संपादक ज्ञानरंजन ने कुछ समय पहले इसे स्थगित कर दिया था। मगर अब ये पत्रिका फिर से शुरू हो रही है। अब यह पुस्तकाकार में प्रकाशित न होकर इंटरनेट पर उपलब्ध होगी। जल्दी ही इसे देशकाल.कॉम पर पढ़ा जा सकेगा।
आपको याद होगा कि कुछ समय पहले जब ज्ञानजी ने पहल के स्थगन की घोषणा की थी, तो साहित्य एवं बौद्धिक जगत में अच्छा-ख़ासा विवाद भी उठ खड़ा हुआ था। सवाल उठाये गये थे कि क्या किसी संपादक को इस तरह से पत्रिका बंद करने का अधिकार है या इस तरह से पहल जैसी पत्रिका को अचानक बंद करना पाठकों के साथ अन्याय नहीं है। इस बहाने और भी कई तरह से ज्ञानरंजनजी पर आरोप मढ़ने का सिलसिला शुरू हो गया था। जवाब में ज्ञानरंजन जी का इतना ही कहना था कि उनका स्वास्थ्य अब ऐसा नहीं रह गया है कि वे पहल को आगे बढ़ाने और उसे नया रूप देने के लिए ज़रूरी मशक्कत और चिंता कर सकें। ये सही भी था क्योंकि सब जानते हैं कि हाल में ही उनकी बाईपास सर्जरी हुई है।
पहल के चाहने वालों को भी पत्रिका का इस तरह अचानक बंद होना बेहद अखरा था। ये स्वाभाविक भी था क्योंकि पहल को पढ़ने वाले ही जानते हैं कि ये कितनी महत्वपूर्ण पत्रिका थी। 1973 में बहुत ही विषम परिस्थितियों में शुरू हुई इस पत्रिका ने पैंतीस वर्षों के लंबे अंतराल में बहुत ही स्तरीय और विविधतापूर्ण सामग्री अपने पाठकों को प्रदान की थी। ज्ञानजी बताते हैं कि पहल उस समय शुरू हुई थी, जब एक-एक करके पत्रिकाएं बंद हो रही थीं। लहर, ज्ञानोदय, बिंदु आदि बंद हो चुकी थीं और उन्हें भी यही सलाह दी जा रही थी कि वे पत्रिका शुरू करने की भूल कतई न करें। मगर उन्होंने ये काम ज़िदपूर्वक शुरू किया और लंबे अरसे तक अच्छे से निभाया भी। इस अभियान में उदयप्रकाश, नीलाभ, शंशांक जैसे बहुत से लोगों ने भरपूर साथ दिया।
जो लोग पहल को न जानते हों या कम जानते हों उन्हें बता दें कि पहल केवल कविता-कहानियों की पत्रिका नहीं थी, विचार-विमर्श और समाज विज्ञान उसका अभिन्न हिस्सा था। दूरगामी महत्व के तमाम सम-सामयिक मुद्दों मसलन, सांप्रदायिकता, भूमंडलीकरण, आर्थिक उदारवाद आदि पर उसने बहुत ही सारगर्भित सामग्री प्रकाशित की। इसके द्वारा निकाले गये इतिहास और मार्क्सवादी सौंदर्यशास्त्र पर अंक तो संग्रहणीय रहे हैं।
साहित्य के क्षेत्र में तो पहल का योगदान बेहद उल्लेखनीय रहा है। पहल ही है, जिसने हिंदी के पाठकों का क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश से सबसे पहले परिचय करवाया। विश्व साहित्य के क्षेत्र में उसके जैसा काम शायद ही हिंदी की किसी पत्रिका ने किया होगा। पहल ने चीनी, अफ्रीकी, जर्मन और रूसी साहित्य का मूल भाषा से सीधा अनुवाद करवाकर विशेषांक प्रकाशित किये। उर्दू कलम के नाम से निकले विशेषांक में पाकिस्तान और बांग्लादेश के लेखकों को एक साथ प्रकाशित किया। कविता पर केंद्रित पहल के दो विशेष अंक भी प्रकाशित हुए थे।
अब खुशी की बात ये है कि पहल फिर से ज्ञानरंजनजी के संपादन में शुरू हो रही है। संपादक ज्ञानरंजन जानना चाहते हैं कि पहल के इस पुनर्प्रकाशन के बारे में क्या सोचते हैं। आप अपनी राय info@deshkaal.com पर दे सकते हैं।

No comments:

Post a Comment