- विवेक राय
१५ जून,2009 को लोकसभा में भाषा को लेकर थोडी नोंकझोंक हो गई । प्रारम्भ एक पंजाबी नेता के पंजाबी में भाषण देने से हुई जिस पर मैडम स्पीकर मीरा कुमार ने ये कहकर आपत्ति जताई कि पंजाबी में बोलने के लिए नेता जी ने पहले से कोई नोटिस नही दी है । जिसपर नेता जी ने कहा की वह हर काम पंजाबी में ही करते हैं। माना ये ठीक है कि पंजाबी भाषा संविधान में है पर संसद की भाषा हिन्दी और अंग्रेजी ही है लगभग सभी पंजाबी नेता हिन्दी में ही बोलते हैं।
भाषा को लेकर एक दिलचस्प वाकया तब हुआ जब हमारे उत्तर प्रदेश के हिन्दी प्रेमी नेता मुलायम सिंह द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब पर्यावरण मंत्री जय राम रमेश ने अंग्रेजी में देना शुरू किया , इसपर तुंरत नेता जी उठे और जय राम को टोकते हुए बोले की क्या आपको हिन्दी नहीं आती ,क्या ये लन्दन की लोकसभा है । मुझे अंग्रेजी नही आती। इस पर जयराम रमेश को कहना पड़ा की ठीक है मैं हिन्दी में ही बोलता हूँ। इसी तरह जब मेनका गाँधी ने भी अपने प्रश्नों को अंग्रेजी में बोलना शुरू किया तो नेता जी ने टोकना शुरू किया पर इस बार मेनका ने उन्हें झिड़क दिया और कहा की मैं किसी भी भाषा में बोलू इससे आपको क्या । वही पूर्व रेल मंत्री लालू को ये सिद्ध करना पड़ा की उन्हें अंग्रेजी आती है। पर्यावरण के मसले पर बोलते हुए लालू ने ग्लोबल वार्मिंग को ग्लोबल वार्निंग कह दिया जिस पर बगल के सीट पर किसी दूसरे पार्टी के नेता ने चुटकी लेनी शुरू की इस पर लालू ने भी अपने अंदाज में बताया की "हमको भी अंग्रेजी आता है। " बात भाषा के आने या न आने का नहीं है पर इतना जरूर होना चाहिए कि देश की सबसे बड़ी पंचायत में उसी भाषा का प्रयोग अधिकत्तम होना चाहिए जो अधिकत्तम लोंगों की समझ में आए । मेरी समझ से हिन्दी एक एसी भाषा है जो लगभग ९० से ९५ % लोगो की समझ में आती है और वह लिख बोल सकते हैं कई साउथ के नेता हिन्दी बोलते नज़र आते हैं ।वेंकेया नायडू ,अनंत कुमार जैसे नेता बड़ी अच्छी हिन्दी बोलते है नरसिम्हा राव को याद करना चाहता हूँ जो १६ भाषाओं के ज्ञाता थे लेकिन हर जगह हिन्दी ही बोलते थे और बड़ी ही शुद्ध हिन्दी थी उनकी जबकि वह दक्षिण के थे। संसद में सांसदों को इस बात का जरूर ध्यान देना चाहिए की जो हिन्दी में बोल सकते हैं वह हिन्दी में ही बोले। श्री प्रकाश जैसवाल की तरह नहीं कि हर काम हिन्दी में करें और जब संसद में मंत्री पड़ की शपथ लेनी हो तो अंग्रेजी बोलने लगे । अगाथा संगमा ने एक अलग मिसाल पेश की और टूटी फूटी ही सही लेकिन हिन्दी में ही शपथ ली और सबका दिल जीत लिया ..इस मायने में मई सोनिया गाँधी की तारीफ करूँगा जिन्होंने दिन प्रतिदिन अपनी हिन्दी में सुधर किया पर मनमोहन सिंह से निराश हूँ जो पंजाब का होने के बावजूद भी हिन्दी नही बोल पाते और जब अंग्रेजी भी बोलते हैं तो आधा समझ में नही आता । लालकिले की प्राचीर से जो प्रधानमंत्री हिन्दी में हिन्दुस्तानी जनता से अपनी बात न कह सके उससे तो यही लगता है की वह आज भी मैकाले की नीति को भूलना नहीं चाहता । मनमोहन के अन्दर इतनी भी इच्छा शक्ति नही कि वह अपनी हिन्दी में कुछ सुधार कर लें जिससे लालकिले के ऊपर खड़े होकर तो हिन्दी में बोल सके । राममनोहर लोहिया जो अंग्रेजी के विद्वान थे लेकिन जीवन भर हिन्दी को आगे बढ़ाने के लिए लड़ते रहे । हरिबंश राय बच्चन जो अंग्रेजी के प्रोफेसर थे लेकिन विश्व उन्हें उनकी हिन्दी रचनाओ के लिए जनता है । महात्मा गाँधी ने हिन्दी के महत्ता को जाना और इसके लिए उन्होंने अपनी भाषा गुजराती के साथ हिंदी का भी सम्मान किया। और अंत समय उन्हें ये कहना पड़ा की -"गाँधी सिर्फ़ हिन्दी जानता है "गाँधी ने कांग्रेस के जनाधार को बढ़ने के लिए हिन्दी भाषा का ही सहारा लिया । जिसमे वह पूर्णतः सफल भी हुए । भारत में हिन्दी एक संचार की भाषा है। दक्षिण का भी आदमी महाराष्ट्र में आकर हिन्दी का ही सहारा लेता है क्योकि वह मराठी नही जानता और अंग्रेजी में वह बात नही कर सकता क्योकि जिस तरह हिन्दी भाषी अंग्रेजी में कमजोर होते हैं उसी तरह अन्य क्षेत्रीय भाषी लोग भी अंग्रेजी में पारंगत नही होते। ले देकर हिन्दी ही बचती है जिनसे लोग आपस में बातचीत करते है । दिल्ली और मुंबई दो ऐसे प्रदेश हैं जिनकी तरफ़ पूरे देश के लोंगों की निगाहें रहती है इस लिए भी हिन्दी यहाँ एक संचार की भाषा के रूप में कार्य करती है । मेरा तो माना है की आप सभी भाषाओं को नही सीख सकते है पर अगर आप हिन्दी को जानते हैं तो ये सभी भाषाओं को जानने के बराबर काम करेगी। हिन्दी जानना ही आपके हिन्दुस्तानी होने का प्रमाण है इसी लिए यु एन ओ महासचिव बन की मून को भी नमस्कार कहने में आनंद आता है । १४ सितम्बर के दिन हर साल हिन्दी के क्षरण होने का रोना कुछ कथित विद्वानों द्वारा रोया जाता है पर हकीकत ये है की हममें से कोई ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं करता है । अंग्रेजी हमें जाननी चाहिए कि दुनिया के सामने मूर्ख न बन सकें पर हमें अपनी मानसिकता को हिन्दीमय ही रहने देना चाहिए ताकि विदेशियों को ये लगे की भारत को समझने के लिए पहले हिन्दी को जानना जरूरी है ।भारत में अनेक विशेषताएं निवास करती हैं इसलिए चाहिए कि सभी क्षेत्रीय भाषाओं का सम्मान करते हुए हिन्दी को भारत की सार्वभौमिक भाषा बनने पर जोर दिया जाए। और संसद में किसी नेता को ये न कहना पड़े की क्या ये लन्दन की लोकसभा है जो अंग्रेजी बोले जा रहे हो।
( लेखक जनसंचार विभाग के पूर्व छात्र हैं)
अच्छा लिखा है, मैं आपकी सब बातों से सहमत हूं।
ReplyDelete