Saturday, July 18, 2009

यादें ....

यादें नाम का यह स्तंभ हम शुरू कर रहे हैं उन छात्रों के लिए जो कभी जनसंचार विभाग के छात्र रहे हैं। वे इस स्तंभ के जरिए यह बताएंगें कि आखिर उनका यहां होना उन्हें कैसे और कितना बदल पाया है। उनकी यादों और स्मृतियां को संजोनेवाले इस सिलसिले की शुरूआत कर रहे हैं अंकुर विजयवर्गीय, जो फिलहाल जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ के भोपाल संवाददाता हैं।
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संपादक
शुरू हुआ जिंदगी का एक नया सफर
- अंकुर विजयवर्गीय

6 अगस्त 2007। माखनलाल में मेरा पहला दिन। बिल्कुल एक डरे सहमे बच्चे की तरह मैं कैंपस में पहुंचा। डरा इसलिए क्योंकि पहली बार घर से निकला था और सहमा इसलिए कि पहले ही दिन उप्पल मैम के गुस्से का शिकार हुआ। लगा ज्यादा दिन यहां टिक नहीं पाउंगा। बहरहाल जिंदगी का नया सफर शुरू हुआ।
11 अगस्त 2007। पहला प्रजेन्टेशन। टॉपिक किरण बेदी को दिल्ली पुलिस कमिशऩर न बनाये जाने के चलते अपने पद से इस्तीफा। रात में लगे हुए थे रटने में कि कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाये। सुबह सब कुछ अच्छा हुआ और उप्पल मैम की तारीफ ने दिल खुश कर दिया।
कारवां आगे बढ़ता गया और दोस्त बनते चले गए। मोनिका मैम और शलभ सर की पढ़ाई भी समझ आने लगी। दिल्ली में हिन्दी दिवस पर वाद.विवाद प्रतियोगिता जीतना, माखनलाल का पहला, सबसे बड़ा और शानदार अनुभव रहा। धीरे-धीरे पढ़ाई शुरू हुई तो लगा कि अपने काम में लगा जाये, लेकिन तभी एक नया भूत सर पर चढ़ा। दिल ने कहा कि अब घर से पैसा नहीं मंगाना है। सोचा क्या किया जाये। कहावत ध्यान आई जहां चाह वहां राह। दूरदर्शन जाने का मौका मिला और वहां पर आकस्मिक रिपोर्टर के तौर पर काम भी मिल गया। बहरहाल अब असली पत्रकारिता शुरू हो चुकी थी। भोपाल आने के बाद दीपावली में घर जाने का मौका मिला। घर से वापस आया तो पहले सेमेस्टर की परीक्षा सामने थी। परीक्षा दी और फरवरी में सामने आये रिजल्ट ने दिल खुश कर दिया।
फरवरी में ही बसंत पंचमी और निराला जयंती दोनों एक साथ मनाई जाने वाली है, ऐसी सूचना हमें मिली। हमने सोचा कार्यक्रम है तो हम भी चलेंगे। तभी एक दोस्त ने आकर सूचना दी कि एक मेल एंकर की जरूरत है और तुम चले जाओ। हम पहुंचे पुस्तकालय प्रभारी आरती सारंग के पास जो तब तक हमारे लिए अनजान थीं। खैर कार्यक्रम भी अच्छा हुआ और हमारे कई लोगों से अच्छे संबंध भी बन गए। इसके बाद प्रतिभा और फिर दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा आ गई। परीक्षा के बाद सभी लोग इंटर्न पर चले गए और हम निकल गए बांद्राभान जहां नर्मदा बचाओं आंदोलन चल रहा था। वापस आये तो पता चला कि नया बैच आने वाला है और हमने उनके लिए कुछ करने की ठानी। कई सारे नही के जवाब सुनने के बाद हमें सहारा दिया उप्पल मैम ने। इसके बाद विवेक भाई, रानू और चैतन्य सर के साथ हम लोग अपनी वेबसाइट mymagicmedia.com और अपनी पहली ई-मैगजीन ‘‘पहल‘‘ की लांचिग में लग गए। 15 दिन बिना सोए जब अपने नए साथियों के सत्रारंभ कार्यक्रम में उसे लांच किया तो दिल बाग-बाग हो गया। खासकर विभाग के लिए पुण्य प्रसून बाजपेयी की टिप्पणी कि ‘‘ आखिरी बॉल पर सिक्सर जनसंचार विभाग ने ही मार दिया‘‘। इसके बाद शुरू हुआ तीसरा सेमेस्टर। हम बन चुके थे सीनियर। एक जिम्मेदारी भी थी तो एक खुशी भी। अपने विषय के एक पेपर के लिए हमने अपनी पहली फिल्म Music of Silence बनाई जिसमें राकेश भाई, अर्पिता, निशा और लुबना मेरे साथी थे जिसमें मैं अर्पिता की मेहनत को दिल से सलाम करता हूं। इसके बाद आया सिंतबर का महीना जो मेरे साथ-साथ माखनलाल के लिए भी यादगार रहेगा। माखनलाल के इतिहास में पहली बार शिक्षक दिवस पूरे विश्वविद्यालय का एक साथ मनाना। पहली बार हमने सभी विभागों के शिक्षकों और हमारे साथियों को एक साथ लाने का काम किया। इसमें मेरे पत्रकारिता के साथी धीरज का और मेरे एक बहुत खास जूनियर पत्रकारिता के ही सौरभ का बङा योगदान रहा। मेरे इस कार्यक्रम का पहले मेरे विभाग के ही साथियों ने विरोध किया लेकिन कार्यक्रम की सफलता ने फिर से मुझे मेरे साथियों के साथ खड़ा कर दिया। इसके बाद हम सभी अपनी परीक्षाओं की तैयारियों में लग गए और फिर चौथा सेमेस्टर आते ही अपनी जॉब की चिंता सताने लगी। हालांकि तब तक मेरे पास लगभग 1 साल और 3 महीने का अनुभव दूरदरशन का हो चुका था और मैं मेरे भविष्य के लिए निश्चिंत था और मेरी किस्मत ने एक बार फिर मेरा साथ दिया और मैं एक टीवी चैनल में रिपोर्टर हो गया।
ये कुछ ऐसी यादे हैं जिन्हें भूलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। लेकिन इन यादों में कुछ ऐसे लोग हैं जिन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया और बहुत कुछ दिया । सबसे पहले तो उप्पल मैम जिन्हें मैं शायद ही कभी भूल पाउंगा। हालांकि मेरे विचार उनसे कभी नहीं मिले लेकिन उन्होंने मेरी और मैंने उनकी हमेशा कद्र की। इसके अलावा मोनिका मैम और शलभ सर से टीचर के साथ-साथ दोस्त का भी एहसास मिला। संजय सर हालांकि हमारे चौथें सेमेस्टर में आए और बहुत कम समय उन्होंने मेरे पढ़ाई के दौरान बिताया, लेकिन उनके साथ बात करते हुए मुझे पहले दिन से आज तक कभी नहीं लगा कि वो मेरे टीचर है। मैंने हमेशा उनमें अपना एक दोस्त पाया। इसके साथ प्रतिभा दीदी, राजेश भैया और रामप्रसाद भैया को भी मैं कभी नहीं भूल सकता।
ये तो थी विभाग की बात। अब विश्वविद्यालय की कुछ बात कर ली जाए। लगभग सभी विभाग के मेरे साथियों और सीनियर व जूनियर के साथ-साथ सभी शिक्षकों और कुलपति जी से भी मेरे बहुत अच्छे संबंध रहे। खास तौर पर मैं आरती मैम और पीपी सिंह सर को कभी नहीं भूल सकता। मैं चाहूंगा कि मेरे आने वाले सभी साथी विभाग कि सीमाओं में न बंधकर रहें और अपने आप को जनसंचार विभाग का नहीं बल्कि माखनलाल का विद्यार्थी माने।
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