Monday, May 31, 2010

कैसे हो नेपाल का नव-निर्माण


-पवित्रा भंडारी

28 मई 2008 को नेपाल में 240 वर्षों से चली आ रही राजशाही समाप्त हो गई और देश की संविधान सभा ने वह प्रस्ताव पारित किया जिसमें देश को धर्मनिरपेक्ष, संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया। पिछले डेढ़ दशक से राजशाही के शिकंजे में बँधे नेपाल के लिए उसका गणतंत्र होना बहुत बड़ी उपलब्धि है। नेपाल में लोकतंत्र प्राप्ति की तैयारी तो 1990 से ही हो चुकी थी। कई सक्रिय संगठनों , जन आन्दोलनों और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल अर्थात् माओवादियों ने इस संघर्ष में विशेष भूमिका निभाई ।यह एक ऐसा समय था जिसमें लोकतंत्र के प्रति वहाँ के लोगों में जागरूकता बढ़ी। वर्ष 2001 के शाही हत्याकांड ने लोगों की सोच को बदल कर रख दिया। अब लोगों का राजशाही पर से विश्वास उठने लगा। नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र ने भी लोगों के विश्वास को तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वर्ष 2006 में हुए जनआंदोलन ने नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र की निरंकुशता का दमन कर दिया ।इस प्रकार राजा के प्रति सामान्य नेपाली जनता का तो मोह भंग हुआ ही साथ ही साथ राजा व राजनीतिक दलों के बीच भी लगातार खाई बढ़ती गई।
इस प्रकार के कई उतार चढ़ाव के बाद माओवादियों ने दबाव की राजनीति अपनाकर नेपाल को संविधान सभा के चुनावों तक पहुँचा दिया। फलस्वरुप अप्रैल 2008 में नेपाल में संविधान सभा के चुनाव हुए । इस प्रकार 28 मई 2008 को नेपाल गणतंत्र घोषित हो गया। परंतु गणतंत्र घोषित करने से ज्यादा आवश्यक है गणतंत्रीय व्यवस्था को क्रियान्वित करना। लेकिन नेपाल का दुर्भाग्य यह है कि राजतंत्र के खात्मे के बाद शुरु हुआ लोकतांत्रिक प्रयोग सफलता और असफलता के बीच झुलता गया । नेपाली राजनेताओं ने सत्ता की भूख मिटाने के लिए गणतंत्र को गन-तंत्र में बदलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। नेपाली राजनेताओं के बीच हो रही सत्ता की लड़ाई को देखकर तो यही अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि इस आंतरिक उथल-पुथल का कोई हल नहीं निकला तो देश को गृहयुद्ध की स्थिति से जुझना पड़ सकता है। नेपाल सरकार को समझना होगा कि किसी भी देश की राजनीतिक अस्थिरता देश के विकास में बाधा पहुँचाती है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि नेपाल की सरकार को शुरुआत से ही कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, सबसे पहले शांतिपूर्ण चुनाव ,फिर संविधान सभा का गठन और अब संविधान-निर्माण। लेकिन नेपाल सरकार के समक्ष आज जो सबसे बड़ी चुनौती है, नेपाल को गरीबी और हिंसा के दलदल से उबारना। नेपाल सरकार को इसे चुनौती के रूप में नहीं अपितु एक बड़ी जिम्मेदारी के रुप में स्वीकारना होगा।
नेपाल के विकास के लिए नेपाल सरकार को हर संभव प्रयास करने होगें जिससे कि देश अविकसित देशों की श्रेणी से बाहर निकल सके । वहाँ की 90 प्रतिशत जनसंख्या जो ग्रामीण क्षेत्रों में रहती हैं उनकी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करना होगा । देश में शिक्षा एवं रोजगार का विकास करना होगा । लोग शिक्षित होगें तो जागरूक होगें और देश के विकास में परस्पर योगदान देंगे। देश में बाल मज़दूरी और वेश्यावृत्ति का कारण गरीबी है। लगभग 9 मिलियन लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। इन लोगों को गरीबी के शिकंजे से बाहर निकालना नेपाल सरकार का पहला ध्येय होना चाहिए। विकास के क्षेत्र में आर्थिक व प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाना एक महत्तवपूर्ण मुद्दा है।नेपाल के नव-निर्माण में आधारशिला का काम करेगा वहाँ का संविधान। एक बहुल समाज में संविधान एक बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। नेपाल में लोकतंत्र की एक ठोस नींव रखने के लिए एक ऐसा संविधान लिखना होगा जो नेपाली जन मानस को एक सूत्र में बाँधता हो। ऐसा संविधान जो हर नेपाली नागरिक को नेपाली होने का गौरव प्रदान करता हो और अपने देश के प्रति देश-प्रेम की भावना को जागृत करे। ऐसे संविधान का निर्माण नेपाल के राजनीतिक दलों की एकता और प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है। अत: नेपाल में स्थायी शांति और राजनीतिक स्थिरता की कामना करते हुए यही कहा जा सकता है कि नेपाल को इस समय ऐसे नेता की जरूरत है जो दूरदर्शी हो, जिसका ध्येय न सिर्फ सत्ता पाना हो अपितु सत्ता का संचालन सही ढंग से करते हुए देश का सर्वांगिण विकास करना हो।

No comments:

Post a Comment