माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ,भोपाल के जनसंचार विभाग के छात्रों द्वारा संचालित ब्लॉग ..ब्लाग पर व्यक्त विचार लेखकों के हैं। ब्लाग संचालकों की सहमति जरूरी नहीं। हम विचार स्वातंत्र्य का सम्मान करते हैं।
Saturday, May 22, 2010
आ भी जाओ सावन
-अन्नी अंकिता
मन आज उदास है.....
आसमान की ओर देखकर कह रहा है....
सावन तुम कब आओगे..?
तुम्हारे इतंजार में तड़प रही है धरती
सूख गए हैं बगीचे
हरियाली को तरस रही आँखे
नदियों तालाबों पोखरों को जरूरत है तुम्हारी
निभाओं अपनी सच्ची दोस्ती, करो इनकी काया शीतल
आँखे सूझ गयी तुम्हारें इतंजार में
आस लगाएँ है सभी तुम्हारे झलक के लिए
लो मत इतनी परीक्षा अपनों की
इतनी भी क्या नाराजगी हमसे
तुम आना नहीं चाहते हमारे पास।
तुम्हारें मोतियों के एहसास याद आ रहे है
उन यादों में सिमटी है जिंदगी के प्यारे लम्हें
उन लम्हों को फिर से जीना चाहता है ये मन
लौटना चाहता है, उस पल में
जहाँ होते थे सिर्फ मैं और तुम
सिमटें रहते थे एक दूसरे के संग
मन उन पलों को याद करके बैचेन हो उठा है
तुम्हारी दूरी अब सही नहीं जाती
आ भी जाओ सावन
इतनी परीक्षा न लो अपने प्यार की...।
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"musladhaar barasta paanizara na rukta leta dum..."this excerpt has become a dream..hope to see drops of rain soon....kaale megha kaale megha paani to barsao...
ReplyDeleteaj ke samay par bilkul satik hai, sahi me ab aa bhi jao sawan............
ReplyDeleteएनी जितना इंतजार सावन का तुमको है उतना ही हमें भी है। सावन के आते ही उसमें नहाना याद है। काश ये सावन तुम्हारी सुन ले और झुमके बरस जाए........
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
ReplyDeleteThankyou Sir. thanks alot..
ReplyDeletenice poem.....
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