Monday, May 10, 2010

चर्चा विकलांगता के मापदंड की


-साकेत नारायण

भारत एक गणतंत्र राष्ट्र है। यहाँ के संविधान में हर एक देशवासी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है। इसके तहत भारतीयों को चर्चा करना बहुत पसंद है या यूँ कहें कि ये अब हमारी आदत बन चुकी है। हम अपनी आदत से लाचार फिर एक नया मुद्दा ढूंढ चुके हैं चर्चा के लिए।
इस बार चर्चा का विषय बहुत अलग है। इस बार चर्चा हो रही है विकलांगो की विकलांगता पर। 2011 के विकलांगो की जनगणना के लिए किन-किन सवालों का चयन किया जाए, अभी चर्चा का विषय बना हुआ है। हाल ही में माननीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने जब 2011 के विकलांगो के जनगणना की बात की तो बस हम भारतीयों को फिर एक नयी बहस का मुददा मिल गया। इस विषय पर चर्चा इस बात पर होने लगी की इन विकलांगो को अपनी विकलांगता साबित करने के लिए किन मापदंडों से गुजरना पड़ेगा। विकलांगो की विकलांगता पर सिर्फ हमारे देश में ही चर्चा नहीं हो रही है या होती है, यह एक सर्वव्यापी चर्चा का विषय है।
हम भारतीयो को सिर्फ विषय चाहिए और बस चर्चा शुरु। इस का प्रमाण बस इस बात से ही लगाया जा सकता है कि हम इस बात पर चर्चा कर रहे है कि विकलांगो को खुद को विकलांग साबित करने के लिए किन-किन सवालों का जवाब देना पड़ेगा। यह सवालों का प्रचलन 2001 की जनगणना से शुरु हुआ और इस जनगणना के बाद भारत में 2.5% विकलांग पाये गए। उस समय इस बात की आलोचना की गई कि यह तथ्य बहुत कम है। अब आप ही सोचिये कि हम भारतीय चर्चा के कितने बड़े दीवाने हैं कि इस बात पर भी चर्चा करने लगे। परंतु असली चर्चा तो इस समय हो रही है कि हम किन सवालों को पूछ कर यह तय करेंगे की कौन व्यक्ति विकलांग है और कौन नहीं।
विभिन्न एन.जी.ओ में इस बात पर चर्चा काफी तेज हो चुकी है। हर एन.जी.ओ का खुद का अपना मापदण्ड है। ये सारे संस्थान अपने खुद की अलग-अलग प्रश्नावली ले कर तैयार हैं। इन सब एन.जी.ओ के नजर में उनके खुद के प्रश्न बिल्कुल सही और सर्वश्रेष्ठ हैं। ये सब विकलांगो और उनके समस्या के बारे में नही सोच रहे है, परंतु सिर्फ अपनी सर्वश्रेष्ठता के बारे में सोच रहे हैं। ये तो पता नही की विकलांगो को कौन सी प्रश्नावली का उत्तर देना पड़ेगा? परंतु ये तो साफ है और होता भी जा रहा है कि हम भारतीयों को चर्चा करने में बहुत मज़ा आता है, बस हमें एक विषय नही मिला की हम शुरु हो गए।

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