Tuesday, March 30, 2010

इससे क्या हासिल (संदर्भः लव इन रिलेशनशिप)


-देवाशीष मिश्रा
दक्षिण भारतीय अभिनेत्री खुशबू के खिलाफ तमिलनाडु में लगभग चार वर्ष पूर्व मुकदमा दायर किया गया था। केस का आधार उनके उस बयान को बनाया गया था, जिसमें उन्होने एक पत्रिका को दिये गये इंटरव्यू के दौरान कहा था कि उन्हे सेक्स सम्बन्धो से कोई दिक्कत नही जो शादी से पूर्व सुरक्षित रुप से बनाये गये हों। इसी केस की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के साथ लिव इन रिलेशनशिप का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है।
यह अटल सत्य है कि समाज हमेशा बदलाव के दौर में रहता है, हाँ कभी यह बदलाव तेजी से होता है तो कभी धीमे-धीमे। गीता में भी कहा गया है परिवर्तन संसार का नियम है। लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि हो रहे परिवर्तन का समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा। मानवीय सम्बन्धो और व्यवहार में क्या बदलाव आयेंगे। हम सुख-दुख की बात हमेशा करते है और दुखों से भागते हुये सुख की आस लगाये बैठे रहते हैं और इस दौड़ में यह भूल जाते हैं कि हमारे सुख-दुख के पीछे सबसे बड़ी वजह हमारी जीवन शैली है। लिव इन रिलेशनशिप भी हमारी जीवन शैली का एक हिस्सा बनता जा रहा है और यह समाज में बदलाव का एक ज्वलंत उदाहरण है। समाज के बुध्दिजीवियों में लगातार इस विषय को लेकर विचार विमर्श हो रहा है। समाज का ही अंग होने के कारण यह हमारी भी जिम्मेदारी है कि हम इस पर विचार करें। इस विषय पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि समाज को इसकी आवश्यकता कितनी है और वह कहाँ तक तैयार है। अगर पश्चिमी देशों की बात की जाए तो वहाँ यह आम बात है लेकिन भारतीय समाज में आम सहमति बनना अभी दूर का विषय है। इसका सबसे बड़ा कारण भारतीय समाज में विवाह संस्था के महत्व का आज भी प्रभावशाली होना है। विवाह नामक संस्था भारतीय जड़ों में समायी है।
भारत में लिव इन रिलेशनशिप की शुरूआत के कई कारण है जिसमें उदारीकरण प्रमुख कारणों में एक है। उदारीकरण की वजह से प्राइवेट सेक्टरों में नौकरी की बाढ़ आ गयी। जिससे देश के बड़े शहरों में रहने की जगह सीमित हो गयी। इस कमी को पूरा करने के लिए लोगों ने फ्लैट व कमरों को साझा करना शुरू किया, विशेष तौर पर शिक्षा और फिल्म से जुड़े लोगों ने अपने खर्चों को भी साझा कर आय का बड़ा भाग बचाने लगे जिसके कारण भी इस संस्कृति को ज्यादा बढ़ावा मिला। दूसरा कारण महिलाओं का तेजी से होता विकास भी है। कुछ वर्ष पूर्व यह सोचना भी मुश्किल था कि किसी छोटे शहर की लड़की अकेले किसी बड़े शहर में जाकर में जाकर उच्च शिक्षा ग्रहण करे या नौकरी करे, किन्तु आज यह काफी व्यवहारिक हो गया है। इसके अलावा तीसरा कारण युवाओं ज्यादा से ज्यादा आधुनिक दिखने कि प्रवृति भी है। पश्चिमी सभ्यता को आधुनिकीकरण का ठप्पा समझने के कारण कुछ युवा भ्रमित होकर इस चलन में रहकर स्वयं को आधुनिक होने की बात करते हैं। अक्सर इस अंधी दौड़ में वे विवेकहीन लोग जुड़ जाते हैं, जो दूसरों के दिखाये रास्ते पर चलने में ज्यादा विश्वास करते हैं। स्त्री पुरुष के सम्बन्धों को संदेह की दृष्टि से देखना बिल्कुल गलत है, लेकिन समाज की मर्यादा और पवित्रता बनाये रखने के लिए तथा सामाजिक व्यवस्था को विकृत होने से बचाये रखने के लिए लिव इन रिलेशनशिप से दूर रहना होगा।

5 comments:

  1. bharat mein hamesha sambandho ka aadhar unki pavitrta aur vishvas maana gaya hai.aisi sthiti mein sambandho ka samay utna mahatv purn nahi jitna sambandho ki sthaitav.dushyant sakuntla ka gandharv vivah tatha aise kai udharan hai jo btate hai ki relationship ko yadi tatkalik sthiti mein achhik rup se ager kar liya jaye tabhi unhe svikar karna chahiye.

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  2. Change is the rule of nature.Nowadays we are witnessing so many new and unordinary changes in our society.Livein relationship can be comprised in that list.
    I think the blogger(Mr. Devashish) is correct with his opinion. I want to add something in it.
    We should not try to keep any distance with livein relationship but we should try to highlight the negative aspects of livein relationship.
    As I think mostly livein relationship is not a coordinated relationship but it is found as a cooperative relation between a couple. Livein relation with true love is exceptional.

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  3. Very nice Mr.Devashish you have tried to highlight almost all the aspects of this issue. I think most of the Indians are intelligent enough to take their own decisions. They know their boundaries. As we live in an independent country we can only give suggestions can't force anyone about their personal matter.

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  4. पहले आपको बधाई इस अच्छे लेख के लिए देवा काफी हद तक समझाने में कामयाब रहे की आप कहना क्या चाहते हैं
    उम्मीद है आगे भी आप ऐसे ही लिखते रहेंगे और सभी को पढने का मौका मिलता रहेगा,

    आपका हमवतन भाई गुफरान सिद्दीकी (अवध पीपुल्स फोरम अयोध्या फैजाबाद)

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  5. I would congratulate you to have come up with this article. As far as live-in relationship is concerned it is difficult or rather wrong to reach on a particular conculsion. It can be one's personal decision and as Mr Guarav said it is important for us to gauge the negative aspect of the relation. Also, I do not agree with the second point you mentioned that women have come out of there homes and are working in cities etc. Women are bound to emancipate, within and outside. So, I think it is quite an immature reason to cite, that is what I feel.

    Rest its a good article. Keep writing more.

    Cheers
    arpita

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