माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ,भोपाल के जनसंचार विभाग के छात्रों द्वारा संचालित ब्लॉग ..ब्लाग पर व्यक्त विचार लेखकों के हैं। ब्लाग संचालकों की सहमति जरूरी नहीं। हम विचार स्वातंत्र्य का सम्मान करते हैं।
Wednesday, October 26, 2011
एमसीयू में यूं मना दीवाली का उत्सव
भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के विकास भवन परिसर में दीवाली मिलन समारोह का आयोजन किया गया,जिसमें कुलपति प्रो.बृजकिशोर कुठियाला सहित विश्वविद्यालय परिवार के कर्मचारी, अधिकारी एवं प्राध्यापक शामिल रहे। कार्यक्रम का संचालन सुश्री मीता उज्जैन ने किया।
कार्यक्रम में मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना के बाद दीप जलाकर पटाखे चलाए गए। जिसमें सबने उत्साह से हिस्सा लिया। इस मौके पर कुलपति श्री कुठियाला ने अपने सारगर्भित भाषण में कहा कि दीपावली का त्यौहार सही मायने में प्रकाश को और ज्यादा बढ़ाने का त्यौहार है। हमें अपने आसपास, परिवेश में और वंचित जनों के जीवन में भी प्रकाश फैलाने का प्रयास करना चाहिए। यह चीज हमें हमारी परंपरा से मिली है जिसमें मनुष्य मात्र के सुख की कामना की गयी है और पूरे विश्व को एक परिवार माना गया है। यह त्यौहार हमें कई तरह की शिक्षा देता है जिसमें स्वच्छता से लेकर रामराज की कल्पनाएं भी शामिल हैं।
प्रकाश हर उस कोने तक पहुंचे जहां उसकी जरूरत सबसे ज्यादा है
आप सभी को दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। मेरी कामना है कि आप सबका जीवन, मन और पूरा परिवेश एक सकारात्मक ऊर्जा से भर जाए। प्रकाश हर उस कोने तक पहुंचे जहां उसकी जरूरत सबसे ज्यादा है। हमारी जिंदगी रौशन हो और हम दूसरों को भी रौशनी देने में समर्थ हों। मेरी आसीम आकांक्षाओं के केंद्र आप हैं। आप के दम से ही यह जहां रौशन होना है। उम्मीद की किरणें फूटनी हैं और एक नया सवेरा लाना है। मैं आज के दिन आप सबके लिए प्रभु से प्रार्थना करता हूं कि वे आपको इतना समर्थ बनाएं जिससे आपकी मौजूदगी से आपके आसपास का परिवेश एक नई ऊर्जा का अहसास करे। आपको सद् विवेक और सच के साथ जीने का साहस मिले। बहुत शुभकामनाएं और ढेर सा प्यार....-संजय द्विवेदी
Tuesday, October 25, 2011
Monday, October 24, 2011
धनतेरस की मुबारकबाद-संजय द्विवेदी
जरूरी है चुनावी व्यवस्था की समीक्षा
-शिशिर सिंह
लोग केवल मजबूत लोकपाल नहीं चाहते वह चाहते हैं कि राइट टू रिजेक्ट को भी लागू किया जाए। हालांकि जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने की इस धारणा पर मिश्रित प्रतिक्रिया आई हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने इसे भारत के लिहाज से अव्यवहारिक बताया है। सही भी है ऐसे देश में जहाँ कानूनों के उपयोग से ज्यादा उनका दुरूप्रयोग होता हो, राइट टू रिजेक्ट अस्थिरता और प्रतिद्वंदिता निकालने की गंदी राजनीति का हथियार बन सकता है। लेकिन अगर व्यवस्थाओं में परिवर्तन चाहते हैं तो भरपूर दुरूप्रयोग हो चुकी चुनाव की मौजूदा व्यवस्था में परिवर्तन लाना ही पड़ेगा क्योंकि अच्छी व्यवस्था के लिए अच्छा जनप्रतिनिधि होना भी बेहद जरूरी है। इसलिए जरूरी है कि हम अपनी चुनावी व्यवस्था की नए सिर से समीक्षा करें।
दरअसल चुनाव अब पावर और पैसे का खेल बन गए हैं। यही इस व्यवस्था की बडी खामी बनकर उभर रहे हैं। पैसा निर्विवाद रूप से ऐसा संसाधन है जो साम दाम दंड़ भेद सहित सब जरूरतें पूरी करता है। इसलिए चुनाव लड़ने में होने वाला भारीभरकम खर्चा इस व्यवस्था की बड़ी खामी है। चुनाव आयोग के नवीनतम नियमों के अनुसार बडे राज्यों जैसे- उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश आदि में एक प्रत्याशी अधिकतम 25 लाख रूपये खर्च कर सकता है। चुनावों की रौनक बताती है कि प्रत्याशी को 25 लाख भी कम पड़ते होंगे। एक औसत आर्थिक हैसियत वाले व्यक्ति के लिए इतना खर्चा करना लगभग असंभव ही है। ऐसे में स्वाभाविक है कि धन की कमी के चलते एक अच्छा प्रत्याशी जनता के सामने न आ पाए। इसलिए इसको इस स्तर तक लाना बेहद जरूरी है कि प्रत्याशी को धन की कमी का रोना न पड़े। लेकिन कटौती से पहले सभी पहलुओं को पर विचार करना जरूरी है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक सबसे अधिक खर्चीला चुनाव प्रचार होता है। कटौती की स्थिति में यह सम्भव है कि बडे क्षेत्र का प्रत्याशी ढंग से प्रचार नहीं कर पाए जोकि अच्छी स्थिति नहीं है। इसलिए जरूरी है कि नए विकल्पों पर विचार किया जाए।
लोकसभा चुनावों को ही लें पहले लोकसभा चुनाव से पंद्रहवे लोकसभा चुनाव तक छह दशक बीत चुके हैं। तब जनसंख्या लगभग 36.11 करोड़ थी आज हम 1.21 करोड़ से अधिक हैं। मतलब एक जनप्रतिनिधि अब ज्यादा लोगों का प्रतिनिधि है। उत्तर भारत जिसकी जनसंख्या सबसे अधिक है उसकी स्थिति और भी खराब है। राज्यों की जनसंख्या के अनुसार वितरित सीटों की संख्या के अनुसार उत्तर भारत का प्रतिनिधित्व, दक्षिण भारत के मुकाबले काफी कम है। जहां दक्षिण के चार राज्यों- तमिलनाडु , आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल को जिनकी संयुक्त जनसंख्या देश की जनसंख्या का सिर्फ 21% है, को 129 लोक सभा की सीटें आवंटित की गयी हैं जबकि, सबसे अधिक जनसंख्या वाले हिन्दी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार जिनकी संयुक्त जनसंख्या देश की जनसंख्या का 25.1% है के खाते में सिर्फ 120 सीटें ही आती हैं। ये अव्यवहारिक है। होना यह चाहिए कि जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व भी बढ़े। इसलिए प्रतिनिधियों का बढ़ना जरूरी है। हालांकि मौजूदा व्यवस्था के तहत सीटों की संख्या बढ़ाई जा सकती है लेकिन इसकी अधिकतम सीमा 552 ही है। ये नाकाफी है। इसको और अधिक करने की जरूरत है। लोगों के लिए लोगों द्वारा चलाई जाने वाली इस व्यवस्था में हर नागरिक तो प्रतिनिधि नहीं हो सकता लेकिन प्रतिनिधित्व तो ज्यादा हो ही सकता है। इसके लिए परिसीमन छोटा करके सीटों की संख्या बढ़ा सकते हैं। यह इसलिए भी व्यवहारिक रहेगा क्योंकि क्षेत्रफल तो एक स्थायी रहने वाली चीज है लेकिन जनसंख्या और उसका घनत्व लगातार बढ़ ही रहा है। चुनावी क्षेत्र छोटा होने से खर्च सीमा को भी कम किया जा सकेगा और साथ ही साथ ज्यादा प्रतिनिधित्व भी सामने आएगा जो उचित अनुपात में लोगों की आंकाक्षाओं का प्रतिनिधित्व करेगा।
Friday, October 21, 2011
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं-संजय द्विवेदी
आप सब घर जा रहे हैं, दीपों का त्यौहार दिवाली मनाने। विभाग आज से ही कितना सूना हो जाएगा। आपकी मौजूदगी से वास्तव में यहां कितनी उर्जा और रौशनी रहती है। अब यही उर्जा और रौशनी आपके घर और मोहल्ले में होगी। आप सबको आज से लगातार बहुत मिस करूंगा। आपके न होने पर आप सब और याद आते हैं। मेरी ओर से दीपावली और छठ पूजा की बहुत-बहुत बधाई। इन त्यौहारों के ठीक बाद 7 नवंबर को ईद-उल-जुहा का भी त्योहार है- उसकी भी बहुत बधाई। उम्मीद है कि आप इन सब त्यौहारों को बहुत अच्छे तरीके इंज्वाय करेंगें। मेरी बहुत शुभकामनाएं। समूचे परिवार और दोस्तों को भी मेरी तरफ से त्यौहारों की मुबारकबाद कहें। बहुत सारे विद्यार्थी जो अखबारों और अन्य मीडिया संस्थानों में काम कर रहे हैं उनकी दीवाली अलग होती है, क्योंकि मीडिया में इतनी लंबी छुट्टियां नहीं मिलती। उन सबको भी मुबारकबाद कि वे काम के साथ ही त्यौहारों का आनंद उठाएं। मुझे याद आता है कि तीन साल पहले जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ न्यूज चैनल में दशहरे के दिन और दिवाली के दिन भी मैने प्राइम टाइम के बुलेटिन पढ़े थे और उसके बाद घर जाकर दिए जलाए। किंतु इस नए काम में एक सप्ताह की तो छुट्टी है ही और आपके न आने तक सिर्फ आप सबका इंतजार ही है। एक बार फिर से शुभकामनाएं कि आपकी जिंदगी में इतना उजाला हो कि उसकी रौशनी से हम सब के मन भर जाएं। ढेर सा प्यार....
-संजय द्विवेदी
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मुश्किल है इन यादों से दूर जानाः घर से दूर यूं बना एक परिवार
- देवाशीष मिश्रा
भोपाल छोड़ते वक्त वैसा ही एहसास हुआ, जैसा मुझे दो साल पहले फैज़ाबाद छोड़ते वक्त हुआ था। कब भोपाल और यहां के लोग मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बन गये पता ही नहीं चला। मुझे आज भी वो दिन याद है जब मैं और शैलेन्द्र अपने हास्टल के सामने बैठकर ये प्लान कर रहे थे कि कैसे दो साल गुजारे जायेंगे, कितनी छुट्टियाँ होंगी और हम कितनी बार घर जायेंगे। अब हँसी आती है उस बात पर क्योंकि हमें यह नहीं पता था कि भोपाल भी हमारे घर जैसा होने वाला है, और हम एक बड़े परिवार (हमारी युनिवर्सिटी) का हिस्सा होने वाले हैं।
टीचर नहीं हमें मिले अभिभावकः हम बहुत भाग्यशाली रहे कि हमें संजय द्विवेदी सर और मोनिका मैम जैसे टीचर मिले। इनके होते हुए हमें भोपाल जैसे नये, अनजाने शहर में कभी भी अभिभावक की जरुरत महसूस नहीं हुई। पहले दो सेमेस्टर तक मैं मोनिका मैम से बहुत डरता था क्यों, ये आज तक नहीं पता चला। शायद मोनिका मैम की हर महीने होने वाली स्पेशल क्लास थी जिसमें वो सब्जेक्ट को छोड़ कर हम सभी को मीडिया से जुड़े करिअर में समस्याओं और परेशानियों के बारे में उदाहरण दे कर समझाती थीं, उनका इरादा कभी भी हमें डराने या मीडिया लाइन छोड़ने के लिए नहीं होता था। पर उन्हे जब भी लगता था हम पढ़ाई के प्रति लपरवाह हो रहें या डिपार्टमेन्ट में कोई कांड होता था तो वो ऐसी क्लास अचानक ले लेती थीं, और क्लास के अन्त में कई भयावह उदारण सुनने के बाद हमारे उतरे हुए चेहरे को देख कर कहती थीं, उदास क्यों हो गये हो तुम लोग, परेशान मत हो पढ़ाई पर ध्यान दो अपने लक्ष्य तय करो और उसके लिए आज से मेहनत करो।
मस्ती की पाठशालाः हम अगर किसी क्लास में सबसे ज्यादा मस्त होते थे तो वो थी संजय द्विवेदी सर की क्लास, कुछ ही विभागाध्यक्ष होंगे जिनके क्लास में इतने ठहाके लगते होंगे, लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल भी की नहीं कि उनके क्लास में पढ़ाई नहीं होती थी। हर एक सामाजिक मुद्दे के गहरी समझ के साथ व्यावहारिकता का सांमजस्य उनके व्यक्तित्व का सबसे मजबूत पक्ष है। पत्रकारिता जगत की बारिकियों को हमने संजय सर से ही समझा। इन दोनों शिक्षकों से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। इनके प्यार और सहयोग से आज हम सभी अपने उज्जवल भविष्य की ओर आगे बढ़ रहे हैं।................
हमारे दिलदार सीनियर्सः हमें दुनिया के सबसे अच्छे सीनियर मिले। 24 घंटों में हम उन्हें कभी भी परेशान कर सकते थे। रैगिंग क्या होती है, इस शब्द के अर्थों से हमारा परिचय कभी नहीं हुआ। मेरी कई रातें अपने सीनियर्स के साथ बहसों में गुजर जाती थीं। किसी भी मुद्दे पर छिड़ी बात पर रात भर तर्क और दलीलें दी जाती थीं। उस वक्त कोई भी हमें देखता तो सोचता की हम लड़ रहे हैं, लेकिन मुझे एहसास है कि कभी किसी ने किसी बात को व्यक्तिगत नहीं लिया। आज भी कई ऐसे मुद्दे रह गये हैं, जिन पर हम एकमत नहीं हो पाए हैं, लेकिन फिर भी हम एक दूसरे के विचारों का सम्मान व्यक्तिगत सोच मानकर करते हैं । अंतरराष्ट्रीय दर्शन, साहित्य और फिल्मों के प्रति जिज्ञासा और रुचि अगर मेरे मन में जागी तो उसके पीछे मेरे इन्हीं सीनियर्स की हाथ था ।
दोस्तों की दोस्ती और बिंदास जिंदगीः दोस्तों की क्या बात करूँ, भोपाल छोड़ते वक्त इनके बिछड़ने के गम ने तो रूला दिया। घर से दूर रह कर पढ़ाई करने में एक खास बात है कि कई बार आप को लगेगा कि आप 24 घंटे एक ही प्रकार की ज़िन्दगी जी रहे हैं। जो दोस्त कालेज में आपके साथ पूरा दिन बिताते हैं, शाम के बाद भी वही आप के साथ मस्ती करते, खाना खाते, पढ़ते वक्त भी साथ में होते हैं। यह बहुत अजीब लेकिन अद्वितीय अनुभव होता है। मैं चाय का शौकीन कभी नहीं रहा पर अपने दोस्तों (सीनियर्स और जूनियर्स भी शामिल) के साथ रात ग्यारह बजे से लेकर चार बजे तक कभी भी हबीबगंज स्टेशन चाय पीने निकल जाता था। फस्ट डे फस्ट शो, लेट नाइट शो, प्ले, म्यूजिकल नाइट शो ये सभी अनुभव मुझे भोपाल में ही अपने दोस्तों के साथ हुए। हम कई दोस्त इन्टर्नल एक्जाम से एक दिन पहले कैफे काफी डे काफी पीने जाते थे। काफी हाउस में बैठकर इतना फोटो सेशेन होता था कि माडल भी घबरा जायें। हमारा ऐसा मानना था कि ऐसा करने से पेपर अच्छा होता है (ऐसा सिर्फ मानना था बाकी पढ़ाई तो करनी ही पड़ती थी)। हम किराया एक मकान का देते थे लेकिन रहने के ठिकाने कई होते थे। सेकेन्ड सेमेस्टर एक्जाम से पहले पन्द्रह दिन तक पहले मैं अपने रूम पर नहीं रहा (क्योंकि गौरव और मयंक के रूम ज्यादा ठंडे थे)। अनगिनत रातें हमनें बातों में गुजारी (अगले दिन सभी क्लास में ज्माहाई लेते रहते थे)। हमारे हास्टल का एक खास प्रचलन था कि अगर कोई बीमार पड़ता था, और कई दिनों तक तबियत न ठीक हो रही हो तो उसे कम से कम 15-16 लड़के लेकर रात 2 बजे जबरदस्ती उठाकर सिटी हास्पिटल ले जाया जाते थे (रात में इतनी भीड़ देखकर हास्पिटल वाले घबरा जाते थे), और एक दो इन्जेक्शन लगवा दिए जाते थे, और इसके बाद हर कोई चंगा हो जाया करता था।
अब कुछ जूनियर्स की बातः इन सारी कहानी के एक बहुत अहम हिस्सा हमारे जूनियर्स भी हैं। सभी मस्त और बिंदास (जिनको मैं जानता और पहचानता था)। उनके यूनिवर्सिटी में कदम रखते ही, आंदोलनात्मक माहौल में हमने उनका स्वागत किया। प्रतिभा (वार्षिक खेल और सांस्कृतिक आधारित कार्यक्रम) में सबने अपनी प्रतिभा दिखाई (भले ही किसी प्रतियोगिता में भाग लिया हो या ना लिया हो)। मेरा विश्वास ही नहीं बल्कि यह दावा है कि वे सभी अपने करिअर में बहुत आगे जायेंगे। कुछ जूनियर्स के आने के बाद मुझे यह फायदा हुआ कि हर बृहस्पतिवार लड्डू खाने के लिए मिलने लगे( वो व्रत क्यों रहते थे ये बिना जाने)। व्रत से उनको कितना फायदा हुआ ये मुझे नहीं पता पर हाँ मुझे लड्डुओं का फायदा जरूर मिला( भगवान ऐसे जूनियर सभी को दें)
लेकिन ये सब अब पीछे छूट गया है, अब वैसे दिन फिर कभी नहीं आने वाले। हम सभी अपने- अपने करिअर का चुनाव करके, एक दूसरी जिन्दगी जीने के लिए अलग- अलग रास्तों पर चल पड़े हैं। हमने आज तक जो भी शिक्षा ग्रहण की है, उसको ज़िन्दगी की कसौटी पर तौलने का वक्त आ गया है। मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि मेरे सभी दोस्त अपने अपने क्षेत्र में बेहतर से बेहतर काम करके अपनी एक अलग पहचान बनाएं।
Thursday, October 20, 2011
जनसंचार परिवार ने मनाया दीवाली मिलन
भोपाल। जनसंचार विभाग के छात्र-छात्राओं ने उत्साह से दीवाली मिलन का आयोजन किया। जिसमें कुलपति प्रो. बृजकिशोर भी शामिल हुए। आयोजन की शुरूआत गणेश वंदना से हुयी जिसे तृषा गौर, शिल्पा अग्रवाल और एस.स्नेहा ने संयुक्त रूप से प्रस्तुत किया। इसके पश्चात अभिषेक झा ने विद्यापति की एक रचना पढ़ी। विकास गौर ने एक कविता सुनाई। योगिता राठौर ने जगजीत सिंह की गाई एक गजल पेश कर माहौल को भावुक कर दिया। एमएएमसी-थर्ड एवं वन के विद्यार्थियों ने एक-एक सामूहिक गीत प्रस्तुत किया। इसके अलावा सुमित रंजन, आस्था पुरी, रेखा पाल, नेहा,प्रतिभा, पूर्णिमा , अंकिता, एकता, अंकिता त्रिपाठी, मनीष दुबे ने भी विविध प्रस्तुत था। इस मौके पर कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि सरस्वती की पूजा से ही लक्ष्मी की प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि मां सरस्वती ही हमारी परंपरा में ज्ञान व विवेक की वाहक हैं।
यूं शुरू हुयीं दीवाली मिलन की तैयारियां
Monday, October 17, 2011
सार्थक शनिवार में बोलीं रमा त्यागीः विषय पर हो एंकर की पकड़
भोपाल। डीडी न्यूज की एंकर रमा त्यागी का कहना है कि एंकर सिर्फ एक सुंदर चेहरे का नाम नहीं है, वह अंततः विषय पर अपनी पकड़ के चलते ही अपनी पहचान बना सकते हैं। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग में आयोजित कार्यशाला में विद्यार्थियों के साथ एंकरिंग के टिप्स पर बात कर रही थीं। उनका कहना था कि एंकरिंग साधारण कर्म नहीं है। अनुभव और ज्ञान इसके पीछे एक बड़ी ताकत है।
उनका कहना था कि जिस तरह खबरें बदल रही हैं, मीडिया में खबर को देने की गति बढ़ रही है, एंकरिंग ज्यादा चुनौतीपूर्ण कर्म में बदल गयी है। भाषा, देहभाषा और प्रस्तुति सब कुछ मिलकर इस काम को सफल बनाते हैं। अगर आप विषय की समझ नहीं रखते तो पूरी संवेदना के साथ उसे प्रस्तुत भी नहीं कर सकते। यहीं पर एंकर खास हो जाता है। खबर को पढ़ना और उसे फील के साथ पढ़ना दोनों दो बातें हैं। विद्यार्थियों से हुए प्रश्नोत्तर में उन्होंने कई सवालों के जवाब दिए।
कार्यक्रम के प्रारंभ में श्रीमती गरिमा पटेल ने पुष्पगुच्छ देकर उनका स्वागत किया। आभार प्रदर्शन विभागाध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया। आयोजन में डा. राखी तिवारी, डा.संजीव गुप्ता और पूर्णेंदु शुक्ल खासतौर पर मौजूद रहे।
Sunday, October 16, 2011
मीडिया विमर्श के नए अंक में एक बड़ी बहस ‘लोक’ ऊपर या ‘तंत्र’
भोपाल। जनसंचार के सरोकारों पर केंद्रित लोकप्रिय पत्रिका मीडिया विमर्श का नया अंक (सितंबर, 2011) एक बड़ी बहस छेड़ने में कामयाब रहा है। इस अंक में अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों से उपजे हालात पर विमर्श किया गया है। इस अंक की आवरण कथा इन्हीं संदर्भों पर केंद्रित है। ‘अन्ना ने किया दिल्ली दर्प दमन’ शीर्षक संपादकीय में पत्रिका के कार्यकारी संपादक संजय द्विवेदी ने कहा है कि हमें अपने लोकतंत्र को वास्तविक जनतंत्र में बदलने की जरूरत है।
इसके साथ ही इस अंक में जनांदोलनों पर केंद्रित कई आलेख हैं, जिसमें प्रख्यात लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने यह सवाल खड़ा किया है कि आखिर जनांदोलनों में साहित्यकार और लेखक क्यों गायब दिखते हैं। इसके साथ ही डा. विजयबहादुर सिंह का एक लेख और एक कविता इन संदर्भों को सही तरीके से रेखांकित करती है। उदीयमान भारत की वैश्विक भूमिका पर केंद्रित माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला का लेख एक नई दिशा देता है। धार्मिक चैनलों और मीडिया में धर्म की जरूरत पर डा. वर्तिका नंदा एक लंबा शोधपरक लेख ‘चैनलों पर बाबा लाइव’ शीर्षक से प्रकाशित है। समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने मजीठिया वेज बोर्ड के बारे में एक विचारोत्तेजक लेख लिखकर पत्रकारों का शोषण रोकने की बात की है।
अंक में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित अमरकांत एवं प्रख्यात पत्रकार रामशरण जोशी के साक्षात्कार भी हैं। इसके साथ ही गिरीश पंकज के नए व्यंग्य उपन्यास ‘ऊं मीडियाय नमः’ के कुछ अंश भी प्रकाशित किए गए हैं। पत्रिका के अंक के अन्य प्रमुख लेखकों में नवीन जिंदल, संजय कुमार, प्रीति सिंह, लीना, डा. सुशील त्रिवेदी, मधुमिता पाल के नाम उल्लेखनीय हैं।
अगला अंक सोशल नेटवर्किंग पर केंद्रितः मीडिया विमर्श का आगामी अंक सोशल नेटवर्किग पर केंद्रित है। भारत जैसे देश में भी खासकर युवाओं के बीच संवाद का माध्यम सोशल नेटवर्किंग बन चुकी है। इससे जुड़े विविध संदर्भों पर इस अंक में विचार होगा। सोशल नेटवर्किंग के सामाजिक प्रभावों के साथ-साथ संवाद की इस नई शैली के उपयोग तथा खतरों की तरफ भी पत्रिका प्रकाश डालेगी। इस अंक में जाने-माने पत्रकार, साहित्यकार और बुद्धिजीवियों के लेख शामिल किए जा रहे हैं। इस अंक में आप भी अपना योगदान दे सकते हैं। अपने लेख, विश्वेषण या अनुभव 10 नवंबर,2011 तक मेल कर दें तो हमें सुविधा होगी। लेख के साथ अपना एक चित्र एवं संक्षिप्त परिचय जरूर मेल करें। हमारा मेल पता है- mediavimarsh@gmail.com
Thursday, October 13, 2011
सार्थक शनिवार में लगेगी डीडी न्यूज की एंकर रमा त्यागी की क्लासः
सार्थक शनिवार यानि 15 अक्टूबर,2011 को इस बार डीडी न्यूज की एंकर रमा त्यागी, जनसंचार के विद्यार्थियों के साथ होंगी। इस शनिवार का सांस्कृतिक आयोजन लोक (फोक) को समर्पित है और ड्रेस कोड ट्रेडिशनल है, पर कलर कोई बंधन नहीं है। साथ में क्विज तो होगा ही, आप सभी उत्साह से सभी आयोजनों में हिस्सा लें। आखिर टेस्ट की थकान भी तो मिटानी है।
सार्थक शनिवार (8अक्टूबर,2011) पर हुआ वाद-विवाद और गूंजे दोस्ती के तराने
भोपाल। सार्थक शनिवार पर इस बार का ड्रेस कोड पिंक था और थीम थी दोस्ती। दोस्ती पर तमाम गीत गाए और गुनगुनाए गए। क्विज में भी रोचक सवाल पूछे गए। क्विज मास्टर्स थे गीत सोनी और सौरभ पवार।सबसे खास था जनसंख्या विस्फोट पर वादविवाद जिसमें पक्ष-विपक्ष में गीत सोनी और पुनीत पाण्डेय अव्वल रहे। वादविवाद प्रतियोगिता के निर्णायक थे डा. राखी तिवारी और डा. संजीव गुप्ता। सांस्कृतिक कार्यक्रमों का संयोजन विजेता और मयूरेश विश्वकर्मा ने किया।
सार्थक शनिवार (8अक्टूबर,2011) पर रानू तोमर से मुलाकात
भोपाल। सार्थक शनिवार के मौके पर इस बार खास बात यह थी कि विभाग की सीनियर छात्रा सुश्री रानू तोमर ने अपने अनुभव विद्यार्थियों के साथ शेयर किए। रानू तोमर हाल में ही हिंदी महिला पत्रकारों की स्थिति पर लंदन में एक पेपर पढ़कर लौटी हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से अपनी लंदन यात्रा के अनुभव बताए और अपने पेपर की खास बातें भी बतायीं। विद्यार्थियों ने उनसे सवाल भी पूछे और उन्होंने उन सवालों के जवाब भी दिए।
Friday, October 7, 2011
अस्मिताओं के सम्मान से ही एकात्मताः सहस्त्रबुद्धे
भोपाल, 7 अक्टूबर। विचारक एवं चिंतक विनय सहस्त्रबुद्धे का कहना है कि छोटी-छोटी अस्मिताओं का सम्मान करते हुए ही हम एक देश की एकात्मता को मजबूत कर सकते हैं। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल द्वारा आयोजित व्याख्यान ‘मीडिया में विविधता एवं बहुलताः समाज का प्रतिबिंबन’ विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अस्मिता का सवाल अतार्किक नहीं है, इसे समझने और सम्मान देने की जरूरत है। बहुलता का मतलब ही है विविधता का सम्मान, स्वीकार्यता और आदर है।
उन्होंने कहा कि इसके लिए संवाद बहुत जरूरी है और मीडिया इस संवाद को बहाल करने और प्रखर बनाने में एक खास भूमिका निभा सकता है। ऐसा हो पाया तो मणिपुर का दर्द पूरे देश का दर्द बनेगा। पूर्वोत्तर के राज्य मीडिया से गायब नहीं दिखेंगें। बहुलता के लिए विधिवत संवाद के अवसरों की बहाली जरूरी है। ताकि लोग सम्मान और संवाद की अहमियत को समझकर एक वृहत्तर अस्मिता से खुद को जोड़ सकें। आध्यात्मिक लोकतंत्र इसमें एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। इससे समान चिंतन, समान भाव, समान स्वीकार्यता पैदा होती है। समाज के सब वर्गों को एकजुट होकर आगे जाने की बात मीडिया आसानी से कर सकता है। किंतु इसके लिए उसे ज्यादा मात्रा में बहुलता को अपनाना होगा। उपेक्षितों को आवाज देनी पड़ेगी। अगर ऐसा हो पाया तो विविधता एक त्यौहार बन जाएगी, वह जोड़ने का सूत्र बन सकती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि दूसरों को सम्मान देते हुए ही समाज आगे बढ़ सकता है। मैं को विलीन करके ही समाज का रास्ता सुगम बनता है। मीडिया संगठनों की रचना ही बहुलता में बाधक है। साथ ही समाचार संकलन पर घटता खर्च मीडिया की बहुलता को नियंत्रत कर रहा है। विविध विचारों को मिलाने से ही विचार परिशुद्ध होते हैं। वरना एक खास किस्म की जड़ता विचारों के क्षेत्र को भी आक्रांत करती है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में विषय प्रवर्तन करते हुए जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने कहा कि समाज में मीडिया के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर यह जरूरी है कि समाज की बहुलताओं और विभिन्नताओं का अक्स मीडिया कवरेज में भी दिखे। इससे मीडिया ज्यादा सरोकारी, ज्यादा जवाबदेह, ज्यादा संवेदनशील, ज्यादा संतुलित और ज्यादा प्रभावी बनेगा। इसकी अभिव्यक्ति में शामिल व्यापक भावनाएं इसे प्रभावी बना सकेंगी। उन्होंने कहा कि विभिन्नताओं में सकात्मकता की तलाश जरूरी है क्योंकि सकारात्मकता से ही विकास संभव है जबकि नकारात्मकता से विनाश या विवाद ही पैदा होते हैं। कार्यक्रम का संचालन प्रो. आशीष जोशी ने किया। इस मौके पर रेक्टर सीपी अग्रवाल, डा. श्रीकांत सिंह ने अतिथियों का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया।
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