Monday, August 24, 2009

पत्रकारिता की कक्षा से

शिशिर सिंह जनसंचार सेमेस्टर-I

पत्रकारिता की कक्षाओं को शुरु हुए एक महीने हो चुका है। पत्रकारिता की कक्षाओं में एक बहुत ही सामान्य प्रश्न पूछा जाता है कि आप ने पत्रकारिता को क्यों चुना? यह प्रश्न दिखने में जितना सहज और सरल दिखता है इसका उत्तर देना उतना ही कठिन है खासकर विकासशील पत्रकारों के लिए। विकासशील पत्रकार, पत्रकारों की वह प्रजाति है जो आने वाले समय के लिए तैयार की जाती है। एक तो यह प्रश्न इसलिए भी कठिन है क्योंकि हमारे दिमाग अभी इतने विकसित नही हुए हैं कि हम इनके साथ किए जाने वाले तर्कों (कभी-कभी कुतर्कों) के भी उत्तर दे पायें। उदाहरण के लिए अगर हमारे किसी साथी ने कहा कि वह इस क्षेत्र में इसलिए आया क्योंकि वह औरों से कुछ हटकर काम करना चाहता था तो उससे यह पूछा जाता है कि तुम सेना में क्यों नहीं गए?

समाज सेवा कहता है तो उसे फिर यह पूछा जाता है कि तुमने एनजीओ क्यों नहीं ज्वांइन किया आदि-आदि। इस तरह के सवाल जबाबों और तर्कों कि सूची काफी लम्बी है।

यह देखने में आता है कि पत्रकारिता में आने वाले अधिकतर छात्रों की प्रथम वरीयता पत्रकारिता नहीं रहती।

सच्चाई की बात की जाए तो पत्रकारिता विशेषकर हिंदी पत्रकारिता अभी भी उस धब्बे से पूरी तरह मुक्त नहीं हुई है जिसके बारे में कहा जाता है कि कोई व्यक्ति अगर कोई काम नहीं कर सकता तो उसके लिए पत्रकारिता ही उपयुक्त है। बस समय के साथ थोड़े कारण बदल गए हैं। जिन्हें कुछ करने को नहीं मिला वह या जिन्हें अपने भविष्य के बारे में कुछ समझ नहीं आया उन्होंने पत्रकारिता का कोर्स कर लिया।

भारतीय जनसंचार संस्थान में पढ़ने वाले मेरे एक साथी ने बताया कि संस्थान में आने वाले अधिकतरह छात्रों का ध्येय पत्रकारिता में आना नहीं बल्कि मात्र उसकी डिग्री हासिल करनी है। इनमें से अधिकतर वह छात्र रहते हैं जो पीसीएस या अन्य किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते हैं। कहने का सार यह है कि पत्रकरिता के स्तरीय संस्थानों को इस की तरफ ध्यान देना चाहिए कि वह संस्थानों में आने वाले छात्रों की योग्यता के साथ-साथ उनकी जर्नलस्टिक अप्रोच भी जांचे ताकि बेहतर पत्रकार सामने आये।


कुछ हल्का फुल्का....

पत्रकारिता के नए छात्रों के लिए एक नए गाने की कुछ लाइनें जो उम्मीद है कि हम पर आने वाले समय में सटीक बैठें ...

“रास्ते वहीं राही नये, रातें वहीं सपने नए, जो चल पड़े चलते गए यारों छू लेंगे हम आसमां”

5 comments:

  1. Its nice!
    Ur words are growing,and very beautifully weaved.
    Hope u will write contionously.

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  2. ये सच है और थोडा सा असत्य भी है की जो कुछ नहीं कर सकता वो पत्रकारिता कर ले... जवाब सकारात्मक और नकारात्मक भी है... एक पत्रकार (भावी) को अनुभव अपनी विगत असफलताओं से बहुत हो जाता है... अगर ऍक्स्प्रॅशन पॉवर है तो उसे अच्छे शब्दों में व्यक्त भी कर देता है... और इतनी चीजें पढता है की दिमाग एकाग्र नहीं हो पाता... तो मिश्रित ज्ञान का उपयोग वो पत्रकारिता में कर सकता है... उसके पास सोच मौलिक हो जाती है... ह्यूमन बेहवियोर भी समझ जाता है... हालाँकि इसके बाद भी सफलता पाने के लिए कड़ी मेहनत, लगन चाहिए ही... अगर वो शामिल कर ले तो .... सच कहूँ तो प्रोफेशनल कोर्स ऐसे ही होते है... उसे ठोक-बजा कर स्टुडेंट में डाला जाता है... जो रम गए वो सिकंदर और जो....

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  3. आपलोग लगातार लिखें और खूब लिखें... ताकि हम जैसो को ज्ञान मिल सके... दरअसल मैं एक कॉलेज से जौर्नालिस्म कर रहा हूँ. पर बेहतर हिंदी किताब नहीं मिल रहे और आपका कॉलेज महान है... आपलोग सौभाग्यशाली हैं....

    मैंने अभी ढेर सारे लेख पढ़े... मज़ा आ गया ... सब पर तो कमेन्ट नहीं कर सका... पर यह बेहतरीन प्रयास है... आप लोगो का हौसला अफजाई करता रहूँगा... शुक्रिया...

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  4. उत्साह अच्छा लगा लेकिन कुछ नहीं कर पाए तो पत्रकारिता कर ली वाली सूरत अब बदलनी चाहिए। इसके लिए शुरुआत इस फील्ड में आ रहे नए छात्र-छात्राओं को ही करनी होगी।

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  5. best of luck

    Sanjay Dwivedi
    Editor
    www.voiceofmedia.com

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