Sunday, September 11, 2011

सार्थक शनिवार (10-09-2011) नक्सली समस्या पर विमर्श और प्रकृति से संवाद











हर शनिवार की तरह इस बार भी जनसंचार विभाग के छात्र-छात्राओं द्वारा निर्धारित हरे रंग के ड्रेसकोड में सभी ने शिरकत की। कार्यक्रम की शुरुआत विभागाध्यक्ष श्री संजय द्विवेदी ने 'भारतीय लोकतंत्र को माओवाद की चुनौती' विषय पर एक समृद्ध व्याख्यान देकर की। विलुप्त होती जा रही आदिवासियों की संस्कृति पर चिंता जताते हुए उन्होंने विभिन्न नक्सली गतिविधियों पर प्रकाश डाला।
खतरनाक है नक्सलवादः संजय द्विवेदी ने कहा कि भारतीय राज्य के द्वारा पैदा किए गए भ्रम का सबसे ज्यादा फायदा नक्सली उठा रहे हैं। उनका खूनी खेल नित नए क्षेत्रों में विस्तार कर रहा है। निरंतर अपना क्षेत्र विस्तार कर रहे नक्सल संगठन हमारे राज्य को निरंतर चुनौती देते हुए आगे बढ़ रहे हैं। उनका निशाना दिल्ली है। 2050 में भारतीय राजसत्ता पर कब्जे का उनका दुस्वप्न बहुत प्रकट हैं किंतु जाने क्यों हमारी सरकारें इस अधोषित युद्ध के समक्ष अत्यंत विनीत नजर आती हैं। एक बड़ी सोची- समझी साजिश के तहत नक्सलवाद को एक विचार के साथ जोड़ कर विचारधारा बताया जा रहा है। उन्होंने सवाल किया कि क्या आतंक का भी कोई ‘वाद’ हो सकता है? क्या रक्त बहाने की भी कोई विचारधारा हो सकती है? राक्षसी आतंक का दमन और उसका समूल नाश ही इसका उत्तर है। किंतु हमारी सरकारों में बैठे कुछ राजनेता, नौकरशाह, मीडिया कर्मी, बुद्धिजीवी और जनसंगठनों के लोग नक्सलवाद को लेकर समाज को भ्रमित करने में सफल हो रहे हैं। गोली का जवाब, गोली से देना गलत है-ऐसा कहना सरल है किंतु ऐसी स्थितियों में रहते हुए सहज जीवन जीना भी कठिन है। एक विचार ने जब आपके गणतंत्र के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है तो क्या आप उसे शांतिप्रवचन ही देते रहेंगें। आप उनसे संवाद की अपीलें करते रहेंगें और बातचीत के लिए तैयार हो जाएंगें। जबकि सामने वाला पक्ष इस भ्रम का फायदा उठाकर निरंतर नई शक्ति अर्जित कर रहा है।
दुनिया के सबसे खूबसूरत लोगों को मिटाने का षडयंत्रः श्री द्विवेदी ने कहा कि आदिवासी समाज को निकट से जानने वाले जानते हैं कि यह दुनिया का सबसे निर्दोष समाज है। ऐसे समाज की पीड़ा को देखकर भी न जाने कैसे हम चुप रह जाते हैं। पर यह तय मानिए कि इस बेहद अहिंसक, प्रकृतिपूजक समाज के खिलाफ चल रहा नक्सलवादी अभियान एक मानवताविरोधी अभियान भी है। हमें किसी भी रूप में इस सवाल पर किंतु-परंतु जैसे शब्दों के माध्यम से बाजीगरी दिखाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। भारत की भूमि के वास्तविक पुत्र आदिवासी ही हैं, कोई विदेशी विचार उन्हें मिटाने में सफल नहीं हो सकता। उनके शांत जीवन में बंदूकों का खलल, बारूदों की गंध हटाने का यही सही समय है। उन्होंने कहा कि बस्तर से आ रहे संदेश यह कह रहे हैं कि भारतीय लोकतंत्र यहां एक कठिन लड़ाई लड़ रहा है, जहां हमारे आदिवासी बंधु उसका सबसे बड़ा शिकार हैं। उन्हें बचाना दरअसल दुनिया के सबसे खूबसूरत लोगों को बचाना है।नक्सलवाद की दमन इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह लड़ाई हमारे जनतंत्र के खिलाफ है।
क्विज से मनोरंजन और ज्ञानवर्धन भीः
तत्पश्चात हुई प्रश्नोत्तरी ने न केवल सबका मनोरंजन बल्कि ज्ञानवर्धन भी किया। इसके पश्चात कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए संचालन की ज़िम्मेदारी एमएएमसी-३ की अनुराधा कुमारी व मीमांसा प्रतिनव ने ली।
प्रकृति से यूं हुआ संवादः
पूर्व निर्धारित थीम 'प्रकृति' को आधार बनाते हुए अनेक छात्रों ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुति दी। किसी ने कविता तो किसी ने हिन्दी गीतों के माध्यम से प्रकृति के विभिन्न रूपों के सौन्दर्य को व्यक्त किया। इस मौके डा. आरती सारंग, डा. राखी तिवारी, सुश्री गरिमा पटेल भी मौजूद रहे।
बेहतर प्रस्तुति और सार्थक आयोजनः इस मौके पर डा. आरती सारंग ने कहा कि विद्यार्थियों ने बहुत सामयिक और गंभीर विषय पर अपनी प्रस्तुतियां दी है। प्रकृति के साथ संवाद न होने के कारण ही हमारे सामने संकट खड़े हो रहे हैं।उन्होंने कहा कि इस आयोजन से आपने इसके नाम सार्थक शनिवार को सार्थक कर दिया है।
अगले हफ्ते का विषय और ड्रेस कोडः राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रश्न और आतंकवाद की चुनौती, ड्रेस कोडः ब्लैक
(सभी फोटोः सुमित रंजन, अभिषेक झा)

1 comment:

  1. a thoughtful saturday indeed......it covered all the aspects of environment...from global warming to declining forests......from greenery being a past memory to scenic beauty of mother nature....everyone followed the go green code with a pledge to contibute their bit to save the nature

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