माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ,भोपाल के जनसंचार विभाग के छात्रों द्वारा संचालित ब्लॉग ..ब्लाग पर व्यक्त विचार लेखकों के हैं। ब्लाग संचालकों की सहमति जरूरी नहीं। हम विचार स्वातंत्र्य का सम्मान करते हैं।
Thursday, September 8, 2011
मीडिया छवि का शिकार हो रहे हैं अन्ना
-शिशिर सिंह
बाबूराव किशन हजारे उर्फ अन्ना हजारे लोकप्रियता की ऊँचाई पर हैं। क्षेत्रीय सामाजिक कार्यकर्ता से उनकी छवि अब देश के सामाजिक कार्यकार्ता के रूप में होने लगी है। महाराष्ट्र से शुरू हुआ उनका सफर अब देशाटन में बदल चुका है। महाराष्ट्र में तो वह पहले ही काफी जाना-पहचाना नाम थे, जनलोकपाल आन्दोलन की सफलता के चलते पूरा देश उन्हें पहचानने लगा है। ब्रांडिग की भाषा में अगर अन्ना हजारे की छवि की बात की जाए तो अन्ना की छवि मीडिया में सकारात्मक ही हैं। अन्ना सामाजिक कार्यकर्ता तो हैं ही, जनलोकपाल पर मिले अपार समर्थन ने मीडिया ने उन्हें दूसरा गाँधी, क्राँतिकारी, मसीहा और अन्य कई अलंकरणों से नवाजा है।
लेकिन अन्ना की यह छवि अन्ना का शिकार कर रही है। खुद की छवि या पहचान के बारे में मनोविज्ञान का सिद्धांत कहता है कि लोगों के बीच हमारी छवि से हमारा व्यवहार तय होता है। अब बात यह उठती है कि अन्ना किस तरह अपनी छवि का शिकार हो रहे हैं? अन्ना खुद को महात्मा गाँधी सहित अन्य क्रांतिकारियों के समतुल्य मानने लगे हैं। हालिया बयान उनकी यह सोच प्रदर्शित करता है गौर कीजिए सरकार को सुरक्षा के सम्बन्ध में दिया गया उनका बयान “अन्ना के मुताबिक भगत सिंह और राजगुरू ने कभी सुरक्षा नहीं ली थी, लिहाजा वो भी ऐसा नहीं करेंगे।” क्या यह बयान उनका बड़बोलापन प्रदर्शित नहीं करता है? सुरक्षा लेना या न लेना उनका निजी मसला है, पर खुद को भगत सिंह के समतुल्य मानना, भगत सिंह का अपमान तो है ही, साथ ही एक बेतुकी सोच भी। अभी तक जिस अन्दाज में मीडिया में उनकी बयानबाजी रही है, वो कहीं से ये साबित नहीं करते कि वह महात्मा गाँधी के अनुयायी हैं। अन्ना अगर ये समझते हैं कि केवल अनशन करने, हथियार न उठाना ही महात्मा गाँधी की अहिंसा है, तो उन्हें गाँधी को पढ़ने और जानने की जरूरत है। ‘केजरीवाल पर कार्रवाई की, जो अन्जाम अच्छा नहीं होगा’, और ऐसे अन्य बयान उनकी वाणी की हिंसा को दिखाते हैं। इस तरह की भाषा में बात करना कितना उचित है कितना नहीं यह बहस के लिए एक अलग विषय है। पर गाँधी का बनावटी लबादा ओढ़कर, धमकी भरे अंदाज में बात करना, खुद को देश के बडे क्रांतिकारियों के समकक्ष बताना कम से कम अन्ना के बड़बोलेपन को प्रदर्शित करता है।
एक बात : एकता शब्द को सकारात्मक दृष्टि से उपयोग में लाया जाता है, पर अगर अराजक तत्व, गुंडे और अपराधियों के समर्थन में लोग एकत्रित हों तो क्या उसे भी एकता कहेंगे? वैसे यह जाना-माना तथ्य है कि आमतौर पर गुंडे जल्दी एकजुट होते हैं। बेल्लारी के बारे में क्या कहेंगे? रेड्डी बंधुओं पर कार्रवाई के बाद बेल्लारी में जनता ने प्रदर्शन किया और बेल्लारी को बन्द रखा। उनके समर्थन में अच्छी संख्या में लोग आए। वैसे भी रेड्डी बंधु बेल्लारी के बेताज बादशाह है, उस क्षेत्र को रेड्डी बंधुओं के ‘रिपब्लिक ऑफ बेल्लारी’ के रूप में जाना जाने लगा है। रेड्डी बंधुओं की कारास्तानी किसी से छिपी भी नहीं है। ऐसे भ्रष्ट नेता के बचाव में लोगों का आना क्या दर्शाता है? क्या केवल जनता के सेवक को इलाज की जरूरत है, ‘जनता’ को नहीं।
(लेखक जनसंचार विभाग के पूर्व छात्र हैं)
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बहुत ही सटीक एवं संतुलित विश्लेषण..
ReplyDelete- बिकास के शर्मा