Wednesday, October 28, 2009

अंगरेज़ी की श्रेष्ठ कविताएं हिन्दी में


समीक्षक- गिरीश पंकज



अंगरेज़ी साहित्य और उसकी प्रभावोत्पादकता से किसे इंकार हो सकता है। भारतीय समाज के ऊपर अगरेज़ी साहित्य एक दबाव की तरह भी विद्यमान रहा है। साहित्य न भी रहा हो, पर एक भाषा तो रही है। मजबूरी में ही सही, अंगरेज़ी जीवन का हिस्सा बनती चली गयी। भाषा या भाषा को हथियार बनाकर हमें गुलाम बनाने वाली प्रकृतियों की बात न भी करें तो अंगरेज़ी साहित्य का अपना मूल्य है। इस भाषा के साहित्य में कुछ बात तो है कि इसकी हस्ती अब तक नहीं मिट पायी है। हालत यह है कि धीरे-धीरे भारत में भी अंगरेज़ी साहित्य रचने वालों की तादाद बढ़ी है। हिंदी लेखकों में भी लिखने, छपने और अनूदित होने की ललक बढ़ी है। यह शायद वैश्विक होने के अहसास का ही एक हिस्सा है। अंगरेज़ी की श्रेष्ठ कविताएँ बरबस अपनी ओर खींचती है। यही कारण है कि हिंदी का अंगरेज़ी पढ़ा-लिखा लेखक समाज उससे बहुत जल्दी प्रभावित भी होता रहा है। अनेक हिंदी साहित्कारों की कविताएँ अंगरेज़ी के कवियों की छापाओं से ग्रस्त दीखती हैं। यह हिंदी कवियों की कमजोरी हो सकती है, लेकिन निर्विवाद रूप से अंगरेज़ी की श्रेष्ठता का प्रमाण तो है ही। ऐसी श्रेष्ठ कविताओं का एक संकलन प्रकाशित होकर हिंदी के पाठकों तक पहुँचा है। अनुवादक कुलदीप सलिल के संपादन में “अंगरेज़ी की श्रेष्ठ कवि और उनकी श्रेष्ठ कविताएँ” नामक इस पुस्तक में अगरेज़ी के महत्वपूर्ण कवियों की रचनाओं के अनुवाद प्रस्तुत किए गए हैं।



कुलदीप सलिल की अनेक अनूदित कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है। वे दक्ष अनुवादक हैं। उनके अनुवाद अनुवाद जैसे नहीं लगते। समझ में आते हैं। (जबकि समकालीन हिंदी कविताएँ अनुवाद-सरीखी लगती हैं और समझ में भी नहीं आतीं) कुलदीप जी ने भूमिका में एक महत्वपूर्ण बात कही है कि “अनुवादक का कवि होना भी जरूरी है” सचमुच कवि ही मूल कविता की ध्वन्यात्मकता को, लयता को, उसकी समस्त प्रभविष्णुता को गहराई से समझ सकता है। कविता की ध्वनि, कविता का प्रवाह और कविता की आत्मा को एक कवि ही बेहतर समझ सकता है। अंगरेज़ी का जानकार कविता का मशीनी अनुवाद करेगा, मगर कवि उसी कविता का आत्मिक अनुवाद करेगा। अनुवाद अनुवाद न लगे, वह अनुरचना (यानी ट्रांस्क्रिएशन) लगे तभी उसकी सार्थकता है। तभी उसकी पठनीयता है। और उपादेयता भी। अनुवाद एक तरह से पुनर्सर्जना भी है। इसलिए कहा जा सकता है कि ये अनुवाद नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे। भाव की गहराई है और डूब के जाना है। कुलदीप सलिल ने डूबकर अनुवाद किया है।



समीक्षा पुस्तक में जिन अठारह कवियों का चयन किया गया है उनमें विलियम शेक्सपियर, बेन जान्सन, जॉन मिल्टन, विलियम वर्डसवर्थ, पीबी शेली, जॉन कीट्स, राबर्ट ब्राउनिंग, विलियम बटलर गेट्स, राबर्ट फ्रॉस्ट, टी.एस.एलविट जैसे वैश्विक रूप से बेहद लोकप्रिय कवि शामिल हैं। जॉन डन, एलेक्जैंडर पोप, विलियम ब्लैक एस.टी.कॉलरिज, एल्फ्रेड टेनीसन, मैथ्यू अर्नाल्ड, एमिली डिकिन्सन और डब्ल्यू. एच. ऑडेन भी कम नहीं हैं। अनुवादक ने इन कवियों का सारगर्भित परिचय दिया है। कवियों की मूल रचनाएँ भी दी हैं। इन कविताओं को पढ़ते हुए साफ समझ में आता है कि उस दौर की अंगरेज़ी भाषा और वर्तमान दौर की अंगरेज़ी में कितने परिवर्तन हुए हैं। भाषा को हमारे यहाँ बहता नीर कहा गया है। नीर अपने साथ अनेक उपयोगी चीजें बहाकर लाता है। अनुवादक ने ठीक किया है कि उस वक्त जो भाषा थी, शब्द की जो स्पेलिंग प्रचलित थी, उसे जस का तस रख दिया है। इससे अंगरेज़ी साहित्य में रुचि रखने वाले पाठकों एवं विद्यार्थियों को भाषा के क्रमिक विकास एवं परिवर्तन होने की सहज प्रवृत्ति का पता चलेगा। मेरे जैसे पाठकों को भी अच्छा लगेगा जिन्होंने बहुत ज्यादा अंगरेज़ी कविताएँ नहीं पढ़ी हैं।



शेक्सपियर की मशहूर पंक्ति “दुनिया एक मंच है और हम सब कठपुतली” से हिंदी समाज भी परिचित है। बहुतों को पता भी नहीं कि यह कथन शेक्सपियर का है। अनुवादक ने शेक्सपियर के “आल द वर्ल्ड’स ए स्टेज” का हिंदी अनुवाद “सारी दुनिया एक मंच है” करते हुए कुछ इस तरह अनुवाद किया है कि “सारी दुनिया एक मंच है, नर नारी अभिनेता/ सात अवस्थाएँ जीवन की/ सात अंकों के नाटक में/ अपना-अपना खेल दिखा हर इनसान चला जाता है” इस भावभूमि पर एक फिल्मी गीत भी कभी लिखा गया था। अनुवाद से बेहतर था यह कि “रंगमंच है दुनिया सारी/ हर इंसां अभिनेता है/ अपना-अपना अभिनय करके/ हर कोई चल देता है”। कुलदीप सलिल ने भी अनुवाद में मेहनत की है, अगर वह इन्हें और करीने से छंदबद्ध कर सकते तो अनुवाद का लालित्य द्विगुणित हो जाता। फिर भी तमाम अनुवाद बाँधने की ताकत रखते हैं।



पंद्रहवीं शताब्दी के कवि हों या उन्नीसवीं शताब्दी के, मानवीय संवेदनाएँ विरासत के रूप में ही स्थानांतरित होती दिखती है। भाषा भले ही परिवर्तित होती गयी, भावनाएँ वहीं हैं। परिदृश्य बदला है, लेकिन प्रवृत्तियाँ जस की तस हैं। संग्रह की रचनाओं को पढ़ते हुए हम अंगरेज़ी कविता के क्रमिक विकास, उसके चिंतन से भी परिचित होते चलते हैं। कविताओं में प्रयुक्त मुहावरे बदलते हैं और दृश्य बंध भी। विषयवस्तु भी परिवर्तित होती चलती है। जॉन डन या जॉन मिल्टन अपने दौर में (यानी पाँच सौ साल पहले) अगर मौत या आँखों की ज्योति चले जाने पर ईश्वर से प्रश्न करते हैं तो बीसवीं शताब्दी के आते-आते डब्ल्यू.एच. ऑडेन का मनुष्य रेडियो, टेलीफोन, फ्रिज, कार के साथ आधुनिक आदमी बन जाता है। लेकिन वह प्रेम गीत जरूर गाता है।



संग्रह की कविताएँ पढ़कर हिंदी का पाठक सहज भाव से तुलनात्मक अध्ययन पर भी विवश हो जाता है। इस कृति के बहाने अंगरेज़ी और हिंदी कविता का तुलनात्मक अध्ययन का मौका भी मिलता है। समझ में आ जाता है कि अंगरेज़ी कविता किस भाव-भूमि पर खड़ी है और हिंदी का काव्यकौशल कहाँ है। हिंदी का पाठक महसूस करता है कि हिंदी की उस दौर की कविता अंगरेज़ी कविताओं से काफी आगे रही है। आज स्थिति उलट है। जो भी हो, कुलदीप सलिल के चयन की तारीफ करनी पड़ती है। चालीस-पैंतालीस साल से अनुवाद कर्म में रत कुलदीप जी ने हिंदी के पाठकों को अनमोल तोहफा दिया है। इस कृति के बहाने अंगरेज़ी साहित्य का सत्व सामने आ जाता है। और पता चलता है कि सोच का मानवीय चेहरा कितना भावुक है। उसके चिंतन के औजार क्या हैं। यह संग्रह अंगरेज़ी और श्रेष्ठ कविताओं की तलाश के लिए व्याकुल करता है।



कृति - अंगरेज़ी के श्रेष्ठ कवि

अनुवादक - कुलदीप सलिल

प्रकाशक - राजपाल एंड सन्स,

कश्मीरी गेट, दिल्ली मूल्य - 190/-

साभार सृजनगाथा

3 comments:

  1. बहुत बहुत शुक्रिया... बहुत दिनों से ऐसे किसी किताब की तलाश में था...

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  2. कृपया वर्ड वेर्फिफिकेशन हटा लें... तकलीफ देती है...

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  3. उनमें विलियम शेक्सपियर, बेन जान्सन, जॉन मिल्टन, विलियम वर्डसवर्थ, पीबी शेली, जॉन कीट्स, राबर्ट ब्राउनिंग, विलियम बटलर गेट्स, राबर्ट फ्रॉस्ट, टी.एस.एलविट जैसे वैश्विक रूप से बेहद लोकप्रिय कवि शामिल हैं।.....टी एस एलविट नहीं टीएस इलियट है....जिसे इलियट भी कहते हैं...कौन कौन सी कविताओं का अनुवाद किया गया है...इसमें जिज्ञासा बढ़ गई है...सुनने और पढ़ने में उम्दा लग रहा है यह प्रयास...

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