Saturday, October 24, 2009

साहित्य का भी गढ़ है छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ राज्य के स्थापना दिवस ( 1 नवंबर पर विशेष)
-संजय द्विवेदी
छत्तीस गढ़ों से संगठित जनपद छत्तीसगढ़ । लोकधर्मी जीवन संस्कारों से अपनी ज़मीन और आसमान रचता छत्तीसगढ़। भले ही राजनैतिक भूगोल में उसकी अस्मितावान और गतिमान उपस्थिति को मात्र आठ वर्ष हुए हैं, पर सच तो यही है कि अपने सांस्कृतिक हस्तक्षेप की सुदीर्घ परंपरा से वह साहित्य के राष्ट्रीय क्षितिज में ध्रुवतारा की तरह स्थायी चमक के साथ जाना-पहचाना जाता है । यदि उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि से हिंदी संस्कृति के सूरज उगते रहे हैं तो छत्तीसगढ़ ने भी निरंतर ऐसे-ऐसे चाँद-सितारों की चमक दी है जिससे अपसंस्कृति के कृष्णपक्ष को मुँह चुराना पड़ा है ।जनपदीय भाषा- छत्तीसगढ़ी के प्रति तमाम श्रद्धाओं और संभ्रमों के बाद यदि हिंदी के व्यापक वृत में छत्तीसगढ़ धनवान बना रहा है तो इसमें उस छत्तीसगढ़िया संस्कार की भी भूमिका भी रेखांकित होती है जिसकी मनोवैज्ञानिक उत्प्रेरणा के बल पर आज छत्तीसगढ़ सांवैधानिक राज्य के रूप में है । कहने का आशय यही कि ब्रज, अवधी आदि लोकभाषाओं की तरह उसने भी हिंदी को संपुष्ट किया है । कहने का आशय यह भी कि लोकभाषाओं के विरोध में न तो राष्ट्रीय हिंदी रही है न ही छत्तीसगढ़ की हिंदी । इस वक्त यह कहना भी ज़रूरी होगा कि छत्तीसगढ़ की असली पहचान उसकी सांस्कृतिक अस्मिता है, जिसमें भाषायी तौर पर हिंदी और सहयोगी छत्तीसगढ़ी दोनों की सांस्कृतिक उद्यमों, सक्रियताओं, प्रभावों और संघर्षों को याद किया ही जाना चाहिए।
आज जब समूची दुनिया में (और विडम्बना यह भी कि भारतीय बौद्धिकी में भी) अपने इतिहास, अपने विरासत और अपने दिशाबोधों को बिसार देने का वैचारिक चिलम थमाया जा रहा है । पृथक किन्तु उज्ज्वल अस्मिताओं को लीलने के लिए वैश्वीकरण को खड़ा किया जा रहा है । अपनी सुदीर्घ उपस्थितियों को रेखांकित करते रहना ज़रूरी हो गया है ।
पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक वल्लभाचार्य ने पूर्व मीमांसा, भाषा उत्तर मीमांसा या ब्रज सूत्र भाषा, सुबोधिनी, सूक्ष्मटीका, तत्वदीप निबंध तथा सोलह प्रकरण की रचना की, जो रायपुर जिले के चम्पारण (राजिम के समीप) में पैदा हुए थे। अष्टछाप के संस्थापक विट्ठलाचार्य उनके पुत्र थे। मुक्तक काव्य परम्परा की बात करें तो राजा चक्रधर सिंह सबसे पहले नज़र आते हैं । वे छत्तीसगढ़ के गौरव पुरुष हैं। उनके जैसा संस्कृति संरक्षक राजा विरले ही हुए हैं । वे हिन्दी साहित्य के युग प्रणेता पं महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवनपर्यन्त नियमित आर्थिक सहयोग करते रहे। रम्यरास, जोश-ए-फरहत, बैरागढ़िया राजकुमार, अलकापुरी, रत्नहार, काव्यकानन, माया चक्र, निकारे-फरहत, प्रेम के तीर आदि उनकी ऐतिहासिक महत्व की कृतियां हैं। उनकी कई कृतियाँ 50 किलो से अधिक वजन की हैं ।
भारतेन्दु युग का जिक्र करते ही ठाकुर जगमोहन सिंह का नाम हमें चकित करता है, जिनकी कर्मभूमि छत्तीसगढ़ ही रहा और जिन्होंने श्यामा स्वपन जैसी नई भावभूमि की औपन्यासिक कृति हिन्दी संसार के लिए रचा। वे भारतेन्दु मंडल के अग्रगण्य सदस्य थे। जगन्नाथ भानु, मेदिनी प्रसाद पांडेय, अनंतराम पांडेय को इसी श्रृंखला मे याद किया जाना चाहिए । यहाँ सुखलाल प्रसाद पांडेय का विशेष उल्लेख करना समीचीन होगा कि उन्होंने शेक्सपियर के नाटक कॉमेडी ऑफ एरर्स का गद्यानुवाद किया, जिसे भूलभुलैया के नाम से जाना जाता है।
द्विवेदी युग में भी छत्तीसगढ़ की धरती ने अनेक साहित्य मनीषियों की लेखनी के चमत्कार से अपनी ओजस्विता को सिद्ध किया। इस ओजस्विता को चरितार्थ करने वालों में लोचन प्रसाद पांडेय का नाम अग्रिम पंक्ति में है। आपकी प्रमुख रचनाएं हैं – माधव मंजरी, मेवाड़गाथा, नीति कविता, कविता कुसुम माला, साहित्य सेवा, चरित माला, बाल विनोद, रघुवंश सार, कृषक बाल सखा, जंगली रानी, प्रवासी तथा जीवन ज्योति। दो मित्र आपका उपन्यास है। पंडित मुकुटधर पांडेय, लोचन प्रसाद के लघु भ्राता थे जिन्होंने छायावाद काव्यधारा का सूत्रपात किया। वे पद्मश्री से सम्मानित होने वाले छत्तीसगढ़ के प्रथम मनीषी हैं। पदुमलाल पन्नालाल बख्शी की झलमला को हिन्दी की पहली लघुकथा मानी जाती है। इन्होंने ग्राम गौरव, हिन्दी साहित्य विमर्श, प्रदीप आदि कृति रचकर हिन्दी साहित्य में अतुलनीय योगदान दिया। छत्तीसगढ़ के शलाका पुरुष बख्शी जी विषय में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि उन्होंने सरस्वती जैसी महत्वपूर्ण पत्रिका का सम्पादन किया। रामकाव्य के अमर रचनाकार डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र ने कौशल किशोर, साकेत संत, रामराज्य जैसे ग्रंथ लिखकर चमत्कृत किया। निबंधकार मावली प्रसाद श्रीवास्तव का कवित्व छत्तीसगढ़ की संचेतना को प्रमाणित करती है। इंग्लैंड का इतिहास और भारत का इतिहास उनकी चर्चित कृतियाँ हैं। उनकी रचनाएँ सरस्वती, विद्यार्थी, विश्वमित्र, मनोरमा, कल्याण, प्रभा, श्री शारदा जैसी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में समादृत होती रही हैं । छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास निबंध सरस्वती के मार्च १९१९ में प्रकाशित हुआ था, जो छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय पहचान प्रदान करता है । प्यारेलाल गुप्त छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ रचनाकारों में एक हैं जिन्होंने सुधी कुटुम्ब (उपन्यास) आदि उल्लेखनीय कृतियाँ हमें सौंपी। द्वरिका प्रसाद तिवारी विप्र की किताब गांधी गीत, क्रांति प्रवेश, शिव स्मृति, सुराज गीत (छत्तीसगढ़ी) हमारा मार्ग आज भी प्रशस्त करती हैं। काशीनाथ पांडेय, धनसहाय विदेह, शेषनाथ शर्मा शील, यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव, पंडित देवनारायण, महादेव प्रसाद अजीत, शुक्लाम्बर प्रसाद पांडेय, पंडित गंगाधर सामंत, गंभीरनाथ पाणिग्रही, रामकृष्ण अग्रवाल भी हमारे साहित्यिक पितृ-पुरुष हैं।
टोकरी भर मिट्टी का नाम लेते ही एक विशेषण याद आता है और वह है – हिन्दी की पहली कहानी। इस ऐतिहासिक रचना के सर्जक हैं – माधव राव सप्रे। पंडित रविशंकर शुक्ल मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री मात्र नहीं थे, उन्होंने आयरलैण्ड का इतिहास भी लिखा था। पंडित राम दयाल तिवारी एक योग्य समीक्षक के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं। शिवप्रसाद काशीनाथ पांडेय का कहानीकार आज भी छत्तीसगढ़ को याद आता है।
गजानन माधव मुक्तिबोध हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले कवि हैं। वे कहानीकार भी थे और समीक्षक भी। उनकी विश्व प्रसिद्ध कृतियाँ हैं – चांद का मुँह टेढा है, अंधेरे में, एक साहित्यिक की डायरी। इस कालक्रम के प्रमुख रचनाकार रहे - घनश्याम सिंह गुप्त, बैरिस्टर छेदीलाल । आधुनिक काल में श्रीकांत वर्मा राष्ट्रीय क्षितिज पर प्रतिष्ठित कवि की छवि रखते हैं, जिनकी प्रमुख कृतियाँ माया दर्पण, दिनारम्भ, छायालोक, संवाद, झाठी, जिरह, प्रसंग, अपोलो का रथ आदि हैं। हरि ठाकुर सच्चे मायनों में छत्तीसगढ़ के जन-जन के मन में बसने वाले कवियों में अपनी पृथक पहचान के साथ उभरते हैं। जिनका सम्मान वस्तुतः छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के संघर्ष का सम्मान है। उन्होंने कविता, जीवनी, शोध निबंध, गीत तथा इतिहास विषयक लगभग दो दर्जन कृतियों के माध्यम से इस प्रदेश की तंद्रालस गरिमा को जगाया है। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – गीतों के शिलालेख, लोहे का नगर, अंधेरे के खिलाफ, हँसी एक नाव सी। गुरुदेव काश्यप, बच्चू जांजगीरी, नारायणलाल परमार, हरि ठाकुर के समकालीन कवि हैं। प्रमोद वर्मा की तीक्ष्ण और मार्क्सवादी आलोचना दृष्टि का जिक्र न करना बेमानी होगा । हिंदी रंग चेतना में हबीब तनवीर की रंग चेतना की गंभीर हिस्सेदारी स्थायी जिक्र का विषय हो चुका है ।
छत्तीसगढ़ के रचनाकारों ने सिर्फ़ कविता, कहानी ही नहीं उन तमाम विधाओं में अपनी सार्थक उपस्थिति को रेखांकित किया है जिससे हिंदी भाषा और उसकी संस्कृति समृद्ध होती रही है । आज की लोकप्रिय विधा लघुकथा का जन्म यहीं हुआ । हिंदी की पहली लघुकथा इसी ज़मीन की उपज है । खास तौर पर उर्दू की समानान्तर धारा की बात करें तो जिन्होंने देवनागरी को आजमाकर अपनी हिंदी-भक्ति को चरितार्थ किया । इसमें ग़ज़लकार मौलाना अब्दुल रउफ महवी रायपुरी, लाला जगदलपुरी, स्व. बंदे अली फातमी, स्व. मुकीम भारती, स्व. मुस्तफा हुसैन मुश्फिक, शौक जालंधरी, रजा हैदरी, अमीर अली अमीर की शायरी को आम आदमी भुला नहीं सकता है । खैर.... हिन्दी के साथ हम छत्तीसगढ़ी भाषा के रचनाकारों का स्मरण न करें तो यह अस्पृश्य भावना का परिचायक होगा। कबीर दास के शिष्य और उनके समकालीन (संवत 1520) धनी धर्मदास को छत्तीसगढ़ी के आदि कवि का दर्जा प्राप्त है, छत्तीसगढ़ी के उत्कर्ष को नया आयाम दिया – पं. सुन्दरलाल शर्मा, लोचन प्रसाद पांडेय, मुकुटधर पांडेय, नरसिंह दास वैष्णव, बंशीधर पांडेय, शुकलाल पांडेय ने। कुंजबिहारी चौबे, गिरिवरदास वैष्णव ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में अपनी कवितीओं की अग्नि को साबित कर दिखाया। इस क्रम में पुरुषोत्तम दास एवं कपिलनाथ मिश्र का उल्लेख भी आवश्यक होगा। वर्तमान में छत्तीसगढ़ी रचनात्मकता भी लगातार जारी है । पर उसे समय के शिला पर कसौटी में कसा जाना अभी प्रतीक्षित है ।
इसी तरह आज के दौर में हिंदी साहित्य में अपनी बड़ी जगह बना चुके नौकर की कमीज के लेखक विनोद कुमार शुक्ल, जया जादवानी, आनंद हषुर्ल, लोकबाबू, परितोष चक्रवर्ती, सतीश जायसवाल, राजेश्वर दयाल सक्सेना, रमेश चंद्र मेहरोत्रा, चित्तरंजन कर, जयप्रकाश, कनक तिवारी, ललित सुरजन, जयप्रकाश मानस, सुधीर शर्मा, विनोद कुमार शुक्ल, स्व. विभु कुमार डा.राजेंद्र सोनी, परदेशी राम वर्मा, लाला जगदलपुरी जैसे तमाम नाम गिनाए जा सकते हैं जिनपर समूचे हिंदी संसार को गर्व हो सकता है । सिर्फ इतना ही नहीं यहाँ ऐसे रचनाकार भी बैठे हुए हैं जिन्हें भले ही आज की कथित भारतीय रचनाकार बिरादरी नहीं जानती पर वे भी कई देश की सीमाओं को लाँघकर दर्जनों देशों के हजारों पाठकों के बीच जाने जाते हैं । ये सब के सब हमारे वर्तमान के ही संस्कृतिकर्मी नहीं बल्कि हमारे अतीत में पैठे हुए उन सभी नक्षत्रों की तरह हैं जो भावी समय के खरे होने की गारंटी देते हैं ।
- अध्यक्षः जनसंचार विभाग माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, प्रेस काम्पलेक्स, एमपी नगर, भोपाल (मप्र)
मोबाइलः 098935-98888 e-mail- 123dwivedi@gmail.com
Web-site- www.sanjaydwivedi.com

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