Friday, October 16, 2009

आपका जीवन दूसरे न संभाले!

जोगिंदर सिंह
ज्यादातर लोग रोज जो काम करते हैं, उनकी सूची बनाकर रखते हैं और उम्मीद करते हैं कि ज्यादातर काम हो जाएंगे। बेशक, सूची बनाने में कोई हर्ज नहीं, बल्कि इससे तो आप अपने कार्यों की एक सीमा भी निर्धारित कर लेते हैं। पर इसमें इस बात का ध्यान रखें कि रोजमर्रा के रूटीन काम या फालतू के कामों के कारण इस लिस्ट की दुर्गति न हो। हर काम पूरा हो कर हमारा जीना आसान कर देता है। लेकिन कुछ काम ऐसे हैं, जैसे खरीदारी-जो कभी पूरे नहीं हो पाएंगे यदि आप उनकी लिस्ट बनाकर अपने सामने न रखें। खरीदारी के पूर्व पूरी लिस्ट बनाना जरूरी होता है नहीं तो चूक जाने पर आपको दोबारा भाग-दौड़ करनी पड़ेगी।
परंतु एक सत्य यह भी है कि जीवन में कोई असीमित समय उपलब्ध नहीं होता। हमें तय कर लेना चाहिए कि क्या करना जरूरी है और क्या जरूरी नहीं है तथा क्या काम हमें दूसरों के जरिए करवाना है। उदाहरण के लिए निमंत्रणों की बात को ही लीजिए। कुछ लोग निमंत्रण भेजने में बड़े पटु होते हैं, और जिससे कभी कदा मिले हो, उसको भी निमंत्रण भेज देते हैं। इस संदर्भ में यह जरूरी नहीं कि हर जगह आप जाएं ही। अपनी प्राथमिकताएं निश्चित करना आवश्यक है। यदि कहीं जाना जरूरी हो या कोई घनिष्ठ आपको बुलाएं तभी जाएं।

पिछले हफ्ते ही एक उद्योगपति के घर गार्डन पार्टी में जाने का मुझे निमंत्रण प्राप्त हुआ। उन श्रीमान जी से मैं दो तीन बार जरूर मिला था परंतु 'हैलो हाय!Ó से ज्यादा कभी कोई बात नहीं हुई, वहां पहुंचने में दो घंटे आने-जाने में, एक घंटा लंच से पूर्व पीने-पिलाने में लगते। मैंने तुरंत निर्णय किया कि वहां न जाने से न सिर्फ चार घंटों की ही बचत होगी, वरण इस समय को ज्यादा सकारात्मक रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है। अत: मैंने यथोचित कारण के साथ एक विनम्र ई-मेल उनको भेज दिया। इससे न सिर्फ लगभग पूरा दिन बचा वरण दो घंटे की कार यात्रा से होने वाली थकान से भी मुक्ति मिली। इसी बचे हुए समय में मैं यह लेख लिख रहा हूं।

ज्यादातर लोगों में इतनी शराफत नहीं होती कि अपने न आ सकने का खेद समय रहते ही प्रकट कर दें, जिससे मेजबान को सहूलियत रहे। जब कुछ दिन पश्चात उन्हीं सज्जन से मुलाकात हुई तो उन्होंने मेरे दिन लंच पर न आ सकने की सूचना यथासमय देन के लिए मुझे धन्यवाद भी दिया। उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ मैं ही था जिसने यथासमय आने की मना कर दी वर्ना पच्चीस और संभावित मेहमान थे, जो न आए, न उन्होंने कोई नहीं आने की सूचना ही दी।

सिर्फ वे ही काम या वस्तुएं अपनी सूची में रखें, जिनका आपके जीवन और कार्यक्षेत्र में महत्व हो। आप चाहें, तो एक ऐसी सूची भी बना सकते हैं, जिसमें उन काम या चीजों के बारे में उल्लेख हो जो आपको नहीं करना है। वरन दूसरों को करना है- चाहे एक मंडल या समूह के रूप में या धन-भूगतान के आधार पर भी। यदि हर काम आप खुद ही करने की कोशिश करेंगे- जैसा कई लोग करते भी हैं- तो आप स्वंय को पागल कर लेंगे।

आप यदि दो सूची रखें, तो ज्यादा अच्छा रहे। एक करने वाले कामों की और दूसरी 'विजय तालिकाÓ इस दूसरी तालिका के काम जब आप पूरे करेंगे तब उपलब्धि की खुशी महसूस करेंगे। इस विजय तालिका के काम एक दो दिन के नहीं होंगे, वरन उनको लगातार करना पड़ेगा और रोज करना पड़ेगा। यही वह तालिका होगी, जो आपको सही माने में संतुष्टि देगी।

इस लिस्ट या सूची में उन उपलब्धियों का जरूर जिक्र करें, जो आपने बहुत ही परेशानियों के बावजूद प्राप्त की है। इससे आपको अपनी आंतरिक योग्यताओं पर भरोसा कायम होगा। जो आपके पास हैं। इसके बाद आप एक और लिस्ट बनाएं उन महत्वपूर्ण कार्यों की जो अभी पूरा होने से रह गए हैं।
यदि हम सफलता चाहते हैं, तो हमें वह तरीके अख्तियार करने होंगे, जिनके द्वारा आप शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता प्राप्त कर सकें और समस्याओं को सुलझाने में निष्णात हो सकें। आपके ये गुण आप में नेतृत्व की क्षमता पैदा करेंगे। और दूसरों को प्रेरणा प्रदान करेंगे। आपमें इनसे नेतृत्व का गुण भी आएगा। इसके लिए सबसे अच्छा है कि आप दिमाग खुला रखें और दकियानूसी होने से बचें। सही निर्णय के लिए आपको उन सभी घटकों का ख्याल रखना चाहिए, जो परिवर्तनीय हैं। छोटी से छोटी चीजों से भी बड़ा फर्क पड़ सकता है।

विजय और पराजय को रेखांकित करने वाली रेखा बेहद सूक्ष्म होती है। सभी लोग एक से तो नहीं होते। उनके सोच विचार में काफी फर्क रहता है। एक ने कोई परियोजना प्रारंभ की और उनको वह पूरा करके ही चैन लेगा। जब कि कोई दूसरा उसको शुरू करने के बारे में सोच विचार ही करता रहेगा। हो सकता है कि उन दोनों के बीच समय का फर्क कुछ मिनटों का ही हो। परंतु जो आदमी अपना काम ठीक-ठाक खत्म कर लेता है, उसकी तीव्रता उस आदमी से थोड़ा अधिक ही रहेगी- चाहे दूसरा भी अपना काम पूरा कर ले। सर्वप्रथम आने वाले और दूसरे स्थान पर आने के अंको में बहुत कम फर्क रहता है। परंतु सारी मान्यता उसी को मिलती है, जो प्रथम आता है चाहे उसका एक अंक ही ज्यादा हो। घुड़दौड़ में यही होता है। जिसमें जीतने वाला घोड़ा दूसरे नंबर पर आने वाले घोड़े से दस पंद्रह गुणा ज्यादा कमाता है। जब हम अपना सर्वोत्तम प्रकट करेंगे तभी सर्वोत्तम रहेंगे।

हर सफलता के पीछे आपकी मेहनत ही रहती है। ईश्वर हर जीव-जन्तु के लिए भोजन उपलब्ध कराता है, पर उसको प्राप्त करने के लिए यत्न करना जरूरी है। ईश्वर किसी एक के घर में खाना फेंक कर नहीं जाता। आप यदि भाग्य पर विश्वास करते हैं, तो जरूर करें- पर यह याद रखिए कि आप उतने ही भाग्यशाली सिद्ध होंगे, जितना काम करेंगे। कई लोग अवसर गंवा बैठते हैं, क्योंकि अवसर कड़ी मेहनत की पोशाक में सामने आते हैं और इसके लिए कोई पतली गली वाला आसान रास्ता नहीं है।

(लेखक सी.बी.आई के पूर्व निदेशक हैं)


साभार : डायमंड बुक्स

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