Monday, November 23, 2009

इस ‘राज’ नीति से देश को बचाइए

- कृष्णकुमार तिवारी

राजनीतिक लाभ के लिए क्या देश के साथ किसी भी प्रकार का खिलवाड़ किया जा सकता है? यदि उत्तर नहीं है तो फिर राज ठाकरे या उनकी पार्टी किस व्यवहार का परिचय दे रही है? राष्ट्रभाषा कही जाने वाली भाषा हिन्दी के साथ इतना घृणापूर्ण व्यवहार आखिर क्यों? भाषा एवं क्षेत्रीयता पर आधारित राजनीति कुएं में टर्राते मेंढक के समान है जो कुएं में रहकर खूब- उछलकूद करता है लेकिन वह केवल और केवल उसी कुएं भर में रह जाता है। इस बात की शिक्षा राज ठाकरे को अपने चाचा बाला साहेब ठाकरे से लेनी चाहिए।
हिंदी से इतनी घृणा कि फिल्म में मुबंई के स्थान पर बंबई बोलने पर कभी करण जौहर को राज से माफी मांगनी पड़ती है तो कभी उद्धव के कहने पर मराठी मानुष से माफी मांगनी पड़ती है। वैसे यह घटना पहली नहीं है इससे पहले मणिरत्नम की फिल्म बांबे के लिए उन्हें बाला साहेब ठाकरे के घर मातोश्री जाकर मांफी मांगनी पड़ी थी। उत्तर भारतीयों खिलाफ, फिर हिंदी के खिलाफ अभियान यह सारी ओछी राजनीति या कहें विभाजनकारी राजनीति है। क्योंकि आज जो महाराष्ट्र में हो रहा है यदि वह सारे देश में चालू हो जाए तो राज ठाकरे खुद कहां जायेंगें? क्योंकि दूसरे प्रदेशों में उत्तर भारतीयों की तरह अन्य भाषाभाषियों के खिलाफ भी प्रतिक्रिया हो सकती है। राज ठाकरे यह भूल रहे हैं यही हिंदी थी और यही उत्तर भारत था जिसके द्वारा कभी न डूबने वाले राज का सूरज डूबा दिया था। यहीं सारे बड़े-बड़े आंदोलन खड़े हुए जिनकी बदौलत आज देश आजाद है। लेकिन आजादी के 62 वर्ष के बाद भी देश को पुनः टुकड़ो में बांटने की कोशिश की जा रही है।
पिछले दो जनगणनाओं के अनुसार आबादी की वृद्धि दर महाराष्ट्र में 2.62, सूरत में 6.16, पटना में वृद्धि दर 4.40 तथा सबसे तेज बढ़ती दिल्ली जिसकी वृद्धि 4.18 है। ऐसे में देखा जाए तो पायेंगे कि महाराष्ट्र के दुगने की दर से पटना की जनसंख्या बढ़ रही है। मुंबई पर अपना हक जताने वाले शायद मुंबई के इतिहास से परिचित नहीं है। मुंबई का पुराना नाम बोम् बइया था जो कि पुर्तगालियों द्वारा रखा गया था। जिसका अर्थ था अच्छी घाटी। बंबई का विकास सात द्वीपों की दलदली भूमि से हुआ जिस पर 1654-1661 तक पुर्तगालियों का शासन था। यह बंबई इंग्लैंड़ के बादशाह चार्ल्स द्वितीय को दहेज के रुप में मिला था। बादशाह ने दस पौंड़ के वार्षिक कर पर ईस्ट इंडिया कंपनी को सन् 1669 में दे दिया। 1818 में पेशवा शासन के अंत के बाद अंग्रेजों ने सारे दक्षिणी पठार पर अधिकार कर बंबई का विकास किया बंबई के विकास में जिनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान था उनमें जमशेद जी भाई, प्रेमचंद्र रायचंद्र, भाऊदाजी लाड़, दादा भाई नौरौजी इत्यादि थे। इनमें से केवल एक महाराष्ट्रियन जांभेकर को छोड़कर सभी अन्य भाषाभाषी थे। नाना शंकर जिनका विकास में विशेष योगदान था वह गुजराती थे।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नाना शंकर सेठ 12 साल तक अध्यक्ष रहे। इन्हीं के द्वारा 1845 में स्थापित एल.फिस्टन.कॉलेज और 1857 में बंबई विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। शिवाजी और पेशवा मराठा साम्राज्य का उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाली शिवसेना या मनसे यह भूल गयी हैं कि वे खुद उत्तर भारत के हैं। बाला साहेब ठाकरे के पिता जो बड़े लेखक और खोजी इतिहासकार थे यह बता गए कि ठाकरे यानि चंद्रसेन कायस्थ प्रभु बिहार से आए थे। चंद्रगुप्त मौर्य के पूर्वज पाटिलिपुत्र सम्राट महापदमनंद (शूद्र) के कुकृति से संतृप्त होकर वहां से भागे और महाराष्ट्र में आकर बसे। इस प्रकार से तो ये मूलतः बिहारी हैं । चर्चिल ने शायद इन्हीं परिस्थितयों को सोचकर कहा होगा कि भारतीय शासन करना नहीं जानते और इनकी आजादी होने में इनकी ही बरबादी है और इसी का उदाहरण है अबू आजमी को मनसे के विधायकों के द्वारा हिंदी में शपथ लेते समय चांटा मारा जाना। हकीकत तो यह कि बंटवारे की राजनीति आपको ही आपको ही अकेला छोड़ देगी और राज ठाकरे का भी वही हाल होगा जो बाला साहेब ठाकरे का हुआ है या हो रहा है। एक समय बाद जनता खुद जानेगी और इसका खुद प्रतीकात्मक उत्तर देगी।



( लेखक एमए – जनसंचार के पहले सेमेस्टर के छात्र हैं।)

No comments:

Post a Comment