![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxBafZOYZwfq2B46voxwpy8pgBN7H9ogVZFB-a1kXlSRrOhb8vdlAuJcg25LPxAgdENIGD5wu7YzsOLLagTsBhcB3UvJ2es5J4mWeHdt8CqABC5BiyDZVD1ckoTaDIoi0lSvpAIJD3drs/s320/Image0897.jpg)
अंकुर ' अंकुर जी 24 घंटे 'छत्तीसगढ़ के भोपाल संवाददाता हैं।..और जनसंचार विभाग के के छात्र रहे हैं .अंकुर एक संवेदनशील,जुझारू और जीवट मनुष्य हैं ..
ये शीर्षकहीन कविता उनकी मार्मिक संवेदना का एक अंश है ..जो ये भी सिद्ध करती है की वो अच्छा लिखते भी हैं
ट्रेन में
झाडू लगाते बच्चे ने
पहन रखे थे
फटे हुए कपड़े,
पकड़ रखी थी... गंदी झाडू
और चेहरे पर ओढ़ी हुई थी
मांगने की हीन भावना...
ये तीनो ही
उसके धंधे में... उपयोग आने वाले
औजार थे...
कितना कमाता होगा... यह बच्चा ?
भुनी हुई मूंगफली के छिलकों
को बुहारते
इस बच्चे ने कब खाए होंगे
खरीदकर मूंगफली के दाने ?
धरती तो हर साल पहनती है
नये वस्त्र
क्या इस बच्चे ने भी
कभी पहनी होगी नई कमीज ?
धरती को भी पेट भरने के लिए
ट्रेन में बुहारने होते मूंगफली के छिलके
तब वह भी नहीं पहन पाती
हर साल नए
हरे रंग के कपड़े
जिस पर बने होते हैं
रंग बिरंगे
फूलों के प्रिंट…
झाडू लगाते बच्चे ने
पहन रखे थे
फटे हुए कपड़े,
पकड़ रखी थी... गंदी झाडू
और चेहरे पर ओढ़ी हुई थी
मांगने की हीन भावना...
ये तीनो ही
उसके धंधे में... उपयोग आने वाले
औजार थे...
कितना कमाता होगा... यह बच्चा ?
भुनी हुई मूंगफली के छिलकों
को बुहारते
इस बच्चे ने कब खाए होंगे
खरीदकर मूंगफली के दाने ?
धरती तो हर साल पहनती है
नये वस्त्र
क्या इस बच्चे ने भी
कभी पहनी होगी नई कमीज ?
धरती को भी पेट भरने के लिए
ट्रेन में बुहारने होते मूंगफली के छिलके
तब वह भी नहीं पहन पाती
हर साल नए
हरे रंग के कपड़े
जिस पर बने होते हैं
रंग बिरंगे
फूलों के प्रिंट…
No comments:
Post a Comment