कविता लिखना और कविता भोगना, दोनों अलग- अलग विषय हैं ..अष्टभुजा उन् गिने चुने कवियों में से हैं जो कविता को एक सुर में भोगते हैं ..सिर्फ़ शब्दों का समुच्चय नहीं बनाते ,उनकी नयी कविता 'हाथा मारना' ने हमें हिला के रख दिया है ॥उन्ही की एक छोटी कविता ..
ऊपर-ऊपरऊपर-ऊपर
जिसने भी देखा
हर वक़्त
हरा ही दिखा मैं
समूल उखाड़ने पर ही
समझ सके लोग
कि भीतर गहरे तक
मुझ में मूली जैसी सफ़ेदी थी
या गाज़र जैसी लाली।
sir bahar se sabhee hare hare dikhte hai...ander ki baat sirf maali hi janta hai...
ReplyDelete