Tuesday, June 30, 2009

अमित बरुआ बीबीसी में

अमित बरुआ ने ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन (बीबीसी) के साथ नई पारी शुरू की है। वे बीबीसी के सर्विस हेड (इंडिया) पद पर नियुक्त किए गए हैं। अमित बरुआ इससे पहले लंबे समय तक हिंदुस्तान टाइम्स के साथ जुड़े रहे। वे एचटी के लिए डिप्लोमेटिक एडिटर के रूप में काम कर चुके हैं।

जल्द नजर आएंगे 22 नए चैनल

जल्द ही सीएनबीसी-टीवी 18 साउथ, सीएनबीसी-टीवी 18 गुजरात, राज टीवी एशिया, कृष्णा टीवी, मुंबई न्यूज, देल्ही न्यूज, नेशनल जियोग्राफिक एचडी, नेशनल जियोग्राफिक वाइल्ड, नेशनल जियोग्राफिक एडवेंचर, नेशनल जियोग्राफिक म्यूजिक जैसे चैनल अवतार लेने वाले हैं। इन चैनलों समेत कुल 22 नए चैनलों को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से मंजूरी दे दी गई है। इन चैनलों को मंजूरी देने से पहले की सभी औपचारिकताएं, जांच, छानबीन की कवायद हो चुकी थी। लोकसभा चुनाव के कारण अंतिम मुहर लगने का काम टल रहा था। नई केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी के कार्यभार ग्रहण करने के बाद इन फाइलों को अंतिम मंजूरी के लिए उनके सामने ले जाया गया।मंत्री ने पिछले दिनों इन सभी फाइलों पर ओके लिख हस्ताक्षर कर दिए। मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि नए चैनलों के उन सभी प्रस्तावों को मंजूर कर लिया गया है जिन्होंने आवश्यक पैमानों और मानदंडों को पूरा किया था। नए चैनलों के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों में प्रमुख हैं नटवर्क 18, इनफारमेशन टीवी प्राइवेट लिमिटेड और फाक्स चैनल्स (इंडिया) लिमिटेड। ज्यादातर नए चैनलों म्यूजिक, वाइल्ड लाइफ, एडवेंचर और बिजनेस से संबंधित हैं। फाक्स चैनल्स (इंडिया) लिमिटेड के चार नए चैनलों को मंजूरी मिली है जो एडवेंचर, वाइल्डलाइफ और म्यूजिक चैनल हैं। नेटवर्क 18 समूह गुजरात और साउथ के लिए अलग बिजनेस चैनल लाने जा रहा है।

Saturday, June 27, 2009

बाजार में संचार प्रौद्योगिकी और उसके नकारात्मक प्रभाव

संजय द्विवेदी
सूचना नहीं सूचना तंत्र की ताकत के आगे हम नतमस्तक खड़े हैं। यह बात हमने आज स्वीकारी है, पर कनाडा के मीडिया विशेषज्ञ मार्शल मैकुलहान को इसका अहसास साठ के दशक में ही हो गया था। तभी शायद उन्होंने कहा था कि ‘मीडियम इज द मैसेज’ यानी ‘माध्यम ही संदेश है।’ मार्शल का यह कथन सूचना तंत्र की महत्ता का बयान करता है। आज का दौर इस तंत्र के निरंतर बलशाली होते जाने का समय है। नई सदी की चुनौतियां इस परिप्रेक्ष्य में बेहद विलक्षण हैं। पिछली सदी ने सूचना तंत्र के उभार को देखा है, उसकी ताकत को महसूस किया है। आने वाली सदी में यह सूचना तंत्र या सूचना प्रौद्योगिकी ही हर युद्ध की नियामक होगी, जाहिर है नई सदी में लड़ाई हथियारों से नहीं सूचना की ताकत से होगी। जर्मनी को याद करें तो उसने पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के पूर्व जो ऐतिहासिक जीतें दर्ज की वह उसकी चुस्त-दुरुस्त टेलीफोन व्यवस्था का ही कमाल था। आज भारत जैसे विकासशील और बहुस्तरीय समाज रचना वाले देश ने भी सूचना प्रौद्योगिकी के इस सर्वथा नए क्षेत्र के प्रति व्यापक उत्साह दिखाया है। ये संकेत नई सदी की सबसे बड़ी चुनौती से मुकाबले की तैयारी तो हैं ही साथ ही इसमें एक समृद्ध भारत बनाने के सपने भी छिपे हैं। 1957 में पहले मानव निर्मित उपग्रह को छोड़ने से लेकर आज हम ‘साइबर स्पेस’ के युग तक पहुंच गए हैं। सूचना आज एक तीक्ष्ण और असरदायी हथियार बन गई है। सत्तर के दशक में तो पूंजीवादी एवं साम्यवादी व्यवस्था के बीच चल रही बहस और जंग इसी सूचना तंत्र पर लड़ी गई, एक-दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल होता यह सूचना तंत्र आज अपने आप में एक निर्णायक बन गया है। समाज-जीवन के सारे फैसले यह तंत्र करवा रहा है। सच कहें तो इन्होंने अपनी एक अलग समानांतर सत्ता स्थापित कर ली है। रूस का मोर्चा टूट जाने के बाद अमरीका और उसके समर्थक देशों की बढ़ी ताकत ने सूचना तंत्र के एकतरफा प्रवाह को ही बल दिया है। आज सूचना के सर्वव्यापी और सर्वग्रासी विस्तार से सभी चमत्कृत हैं। सूचना तंत्र पर प्रभावी नियंत्रण ने अमरीकी राजसत्ता और उसके समर्थकों को एक कुशल व्यापारी के रूप में प्रतिष्ठित किया है। बाजार और सूचना के इस तालमेल में पैदा हुआ नया चित्र हतप्रभ करने वाला है। पूंजीवादी राजसत्ता इस खेल में सिंकंदर बनी है। इस सूचना तंत्र एवं पूंजीवादी राजसत्ता का खेल आप खाड़ी युद्ध और उसके बाद हुई संचार क्रांति से समझ सकते हैं। आज तीसरी दुनिया को संचार क्रांति की जरूरतों बहुत महत्वपूर्ण बताई जा रही है। अस्सी के दशक तक जो चीज विकासशील देशों के लिए महत्व की न थी वह एकाएक महत्वपूर्ण क्यों हो गई । खतरे का बिंदु दरअसल यहीं है। मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था से ग्रस्त पश्चिमी देशों को बाजार की तलाश तथा तीसरी दुनिया को देशों में खड़ा हो रहा क्रयशक्ति से लबरेज उपभोक्ता वर्ग वह कारण हैं जो इस दृश्य को बहुत साफ-साफ समझने में मदद करते हैं । पश्चिमी देशों की यही व्यावसायिक मजबूरी संचार क्रांति का उत्प्रेरक तत्व बनी है। यह सिलसिला तीसरी दुनिया के मुल्कों से सुंदरियों तलाशने से शुरू हुआ है। ऐश्वर्या, सुष्मिता और युक्ता मुखी,डायना हेडेन भारतीय संदर्भ में ऐसे ही उदाहरण हैं । उपभोग की लालसा तैयार करने में जुटे ये लोग दरअसल तीसरी दुनिया की बड़ी आबादी में अपना उपभोक्ता तलाश रहे हैं। सूचना के लिए पश्चिमी राष्ट्रों पर विकासशील देशों की निर्भरता जग जाहिर है। यह निर्भरता विश्व में अशांति व हथियार उद्योग को बल देने में सहायक बनी है। विकासशील देशों में आज भी सीधा संवाद नहीं हो पाता । संवाद कराने में विकसित राष्ट्र बिचौलिए की भूमिका निभाते हैं। निर्भरता का आलम यह है कि आज भी हम अपने देश की खबरों को ही बीबीसी, सीएनएन, वॉयस ऑफ अमरीका, रेडियो जापान से प्राप्त करते हैं। विकसित देश, विकासशील देश, देशों की इस निर्भरता का फायदा उठाकर हमें वस्तु दे रहे हैं, पर उसकी तकनीक को छिपाना चाहते हैं। मीडिया विश्लेषक मैकब्राइड ने शायद इसी खतरे को पहचानकर ही कहा था कि ‘ जब तक विकासशील देश आत्मनिर्भर नहीं होते तब तक उन्हें पारंपरिक और वैयक्तिक संचार माध्यमों का प्रयोग करना चाहिए’। लेकिन बाजार के इस तंत्र में मैकब्राइड की बात अनसुनी कर दी गई। हम देखें तो अमरीका ने लैटिन देशों को आर्थिक, सांस्कृतिक रूप से कब्जा कर उन्हें अपने ऊपर निर्भर बना लिया। अब पूरी दुनिया पर इसी प्रयोग को दोहराने का प्रयास जारी है। निर्भरता के इस तंत्र में अंतर्राट्रीय संवाद एजेंसियां, विज्ञापन एजेसियां, जनमत संस्थाएं, व्यावसायिक संस्थाए मुद्रित एवं दृश्य-श्रवण सामग्री, अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार कंपनियां, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियां सहायक बनी हैं ।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष हैं)

Friday, June 26, 2009

अंकुर विजयवर्गीय की कुछ पंक्तियाँ ..


अंकुर ' अंकुर जी 24 घंटे 'छत्तीसगढ़ के भोपाल संवाददाता हैं।..और जनसंचार विभाग के के छात्र रहे हैं .अंकुर एक संवेदनशील,जुझारू और जीवट मनुष्य हैं ..
ये शीर्षकहीन कविता उनकी मार्मिक संवेदना का एक अंश है ..जो ये भी सिद्ध करती है की वो अच्छा लिखते भी हैं



ट्रेन में
झाडू लगाते बच्चे ने
पहन रखे थे
फटे हुए कपड़े,
पकड़ रखी थी... गंदी झाडू
और चेहरे पर ओढ़ी हुई थी
मांगने की हीन भावना...
ये तीनो ही
उसके धंधे में... उपयोग आने वाले
औजार थे...
कितना कमाता होगा... यह बच्चा ?
भुनी हुई मूंगफली के छिलकों
को बुहारते
इस बच्चे ने कब खाए होंगे
खरीदकर मूंगफली के दाने ?
धरती तो हर साल पहनती है
नये वस्त्र
क्या इस बच्चे ने भी
कभी पहनी होगी नई कमीज ?
धरती को भी पेट भरने के लिए
ट्रेन में बुहारने होते मूंगफली के छिलके
तब वह भी नहीं पहन पाती
हर साल नए
हरे रंग के कपड़े
जिस पर बने होते हैं
रंग बिरंगे
फूलों के प्रिंट…

अष्टभुजा की एक कविता ..!

कविता लिखना और कविता भोगना, दोनों अलग- अलग विषय हैं ..अष्टभुजा उन् गिने चुने कवियों में से हैं जो कविता को एक सुर में भोगते हैं ..सिर्फ़ शब्दों का समुच्चय नहीं बनाते ,उनकी नयी कविता 'हाथा मारना' ने हमें हिला के रख दिया है ॥
उन्ही की एक छोटी कविता ..



ऊपर-ऊपर

ऊपर-ऊपर
जिसने भी देखा
हर वक़्त
हरा ही दिखा मैं
समूल उखाड़ने पर ही
समझ सके लोग
कि भीतर गहरे तक
मुझ में मूली जैसी सफ़ेदी थी
या गाज़र जैसी लाली।

Thursday, June 25, 2009

तय करें लोकतंत्र या नक्सलवादः विश्वरंजन


छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक और कवि विश्वरंजन का कहना है कि अब वक्त आ गया है कि हमें यह तय करना होगा कि हम लोकतंत्र के साथ हैं या नक्सलवाद के साथ।

विश्वरंजन ने कहा कि भारत में कुल हिंसक वारदातों का 95 प्रतिशत माओवादी हिंसक वारदातें हैं। नक्सलवाद आंदोलन के गुप्त दस्तावेजों तक हमारी पहुंच न हो पाने के कारण इसकी बहुत ही धुंधली तस्वीर हमारे सामने आती है जिससे हम इसके वास्तविक पहलुओं से वंचित रह जाते हैं। अगर इन दस्तावेजों पर नजर डालें तो मिलता है कि नक्सलवादी अपने शसस्त्र हिंसक आंदोलन के जरिए राजनीतिक ताकत को अपने कब्जे में करना चाहते हैं। ये अपने आंदोलन के जरिए राजनीतिक रूप से काबिज होकर देश में एक लाल गलियारे का निर्माण करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि नक्सली रणनीतिक स्तर पर राज्यविरोधी एवं राज्य में आस्थाहीनता दर्शानेवाले समस्त आंदोलनों का समर्थन करते हैं। माओवादियों के गुप्त दस्तावेजों का हवाला देते हुए विश्वरंजन ने बताया कि नक्सलियों की गतिविधियों गुप्त रहती है। किंतु इसमें दो तरह के कार्यकर्ता होते हैं एक पेशेवर और दूसरे जो अंशकालिक तौर पर कोई और काम करते हुए उनका शहरी नेटवर्क देखते हैं। आज माओवादी मप्र और छत्तीसगढ़ के अलावा देश के अन्य प्रदेशों में भी अपनी जड़ें मजबूत कर रहे हैं। इस अवसर पर उन्होंने मीडिया के छात्र-छात्राओं से अपील की कि वे इस विषय पर व्यापक अध्ययन करें ताकि वे लोंगों के सामने सही तस्वीर ला सकें। क्योकिं यह लड़ाई राज्य और नक्सलियों के बीच नहीं बल्कि लोकतंत्र और उसके विरोधियों के बीच है जो हिंसा के आधार पर निरंतर आम आदमी के निशाना बना रहे हैं।
प्रारंभ में जनसंचार विभाग की अध्यक्ष दविंदर कौर उप्पल ने श्री विश्वरंजन का स्वागत किया। आभार प्रदर्शन डा. महावीर सिंह ने किया।

पानी के लिए ...


संजय सर का कहना है कि पानी के सवाल पर अब मीडिया को भी अपनी सक्रियता दिखानी होगी।

उन्होंने भोपाल स्थित माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय में जल, जीवन और मीडिया विषय पर आयोजित संगोष्ठी में ये विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि मीडिया का जैसा विस्तार हुआ है उसे देखते हुए वह वह अपनी प्रभावी भूमिका से सरकार, प्रशासन, आमजनता तीनों का ध्यान खींच सकता है। कई पत्र समूह अब पानी के सवाल पर लोगों को जगाने का काम कर रहे हैं इसे मीडिया का सकारात्मक कदम माना जाना चाहिए।
संजय द्विवेदी ने कहा कि उत्तर भारत की गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों को भी समाज और उद्योग की बेरुखी ने काफी हद तक नुकसान पहुंचाया है। दिल्ली में यमुना जैसी नदी किस तरह एक गंदे नाले में बदल गयी तो लखनऊ की गोमती का क्या हाल है किसी से छिपा नहीं है।देश की नदियों का जल और उसकी चिंता हमें ही करनी होगी। मीडिया ने इस बड़ी चुनौती को समय रहते समझा है, यह बड़ी बात है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस सवाल को मीडिया के नियंता अपनी प्राथमिक चिंताओं में शामिल करेंगें।
इस महत्वपूर्ण आयोजन में मैगसेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह, नर्मदा के अनथक यात्री अमृतलाल वेगड़, जनसंपर्क प्रमुख और लेखक मनोज श्रीवास्तव, नवदुनिया भोपाल के संपादक गिरीश उपाध्याय, विजयदत्त श्रीधर सहित अनेक पत्रकारों ने संबोधित किया।

उप्पल के जाने का दुःख ..!


उप्पल मैम हमारे लिए एक ग्रन्थ थीं ...हमने जितना उनसे सीखा ,शायद ही कहीं सीखा हो ।

हम सब उस दिन ...बहुत पीड़ा में थे ..

सृजनगाथा सम्मान से सम्मानित हुए संजय सर ..!


संजय सर को मिला एक और सम्मान ...

साहित्यजगत की प्रतिष्ठित मासिक वेबपत्रिका सृजनगाथा डाटकाम (srijangatha.com) ने संजय द्विवेदी को मीडिया क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए सृजनगाथा सम्मान से सम्मानित किया है। उन्हें यह सम्मान सात जून को रायपुर स्थित महंत घासीदास संग्रहालय सभागार में आयोजित एक समारोह में प्रख्यात आलोचक एवं वागर्थ के संपादक डा. विजयबहादुर सिंह ने प्रदान किया।
इस मौके पर सागर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. धनंजय वर्मा, छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक एवं कवि विश्वरंजन, लेखक डा. प्रभात त्रिपाठी मौजूद थे। संजय द्विवेदी इन दिनों माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। संजय की राजनीतिक विश्लेषक एवं मीडिया विशेषज्ञ के तौर पर खास पहचान है। वे दैनिक भास्कर- भोपाल एवं बिलासपुर, हरिभूमि-रायपुर, नवभारत-मुंबई, इंडिया इन्फो डाट काम-मुंबई, स्वदेश-रायपुर एवं भोपाल, न्यूज चैनल – जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ आदि संस्थाओं में स्थानीय संपादक, समाचार संपादक, एडीटर इनपुट एवं एंकर, कंटेट अस्सिटेंट, उप संपादक जैसे महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। संजय रायपुर स्थित कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में रीडर भी रह चुके हैं। अनेक सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठनों से जुड़े संजय की पत्रकारिता की विविध विधाओं पर सात किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। इस अवसर पर नई प्रौद्योगिकी एवं साहित्य की चुनौतियां विषय पर आयोजित संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए संजय द्विवेदी ने कहा कि मुख्यधारा के मीडिया ने जब हिंदी साहित्य को लगभग बहिष्कृत सा कर दिया है तब नई प्रौद्योगिकी ने साहित्य के लिए एक लोकतांत्रिक और उदार मंच उपलब्ध करा दिया है। वह चाहे ब्लाग के रूप में हो या साहित्यिक ई-पत्रिकाओं और वेबसाइट्स के रूप में। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी साहित्य के लिए चुनौती नहीं बल्कि सहयोगी की भूमिका में है।

दविंदर कौर उप्पल का विदाई समारोह ..!



माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग में विभाग की अध्यक्ष दविंदर कौर उप्पल का विदाई समारोह आयोजित किया गया। समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में इंडिया टीवी के कार्यकारी संपादक रविकांत मित्तल उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरूआत विभाग के नवनियुक्त अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने अतिथियों के परिचय से की। इसके बाद विभाग के द्वितीय एवं चतुर्थ सेमेस्टर के विद्यार्थियों ने मैडम उप्पल के साथ बिताये गये पलों को अपने शब्दों में व्यक्त किया।
कार्यक्रम में उपस्थित विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए श्री रविकांत मित्तल ने कहा कि मंदी के इस दौर में नौकरी पाने के लिए छात्रों को अधिक मेहनत की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आजकल युवा मीडिया में नौकरी पाने के लिए शार्टकट रास्ता अपनाना चाहते हैं, लेकिन मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। श्री मित्तल ने मंदी के इस दौर के बारे छात्रों से बातचीत करते हुए कहा जिस तरह से मंदी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं वो सब कुछ ही दिन में खत्म हो जाएंगी। उन्होंने छात्रों से मेहनत करने और लगन के साथ अपने कार्य में लगे रहने की अपील की। मीडिया का जिस तरह सर्वव्यापी विस्तार हो रहा है उसमें अपार संभावनाएं छिपी हुयी हैं।
कार्यक्रम में विभाग के द्वितीय सेमेस्टर के छात्र शिवेन्द्र ने मैडम उप्पल के लिए ‘‘विदा‘‘ नामक कविता का पाठ भी किया। मैडम उप्पल ने विभाग के छात्रों के उज्जवल भविष्य की कामना की और अपने लक्ष्य की प्राप्ति में लगे रहने को कहा।
समारोह में दृश्य-श्रव्य अध्ययन केन्द्र के विभागाध्यक्ष श्रीकांत सिंह, जनसंपर्क विभाग के अध्यक्ष MkW- पवित्र श्रीवास्तव, पुस्तकालय प्रभारी आरती सारंग, अविनाश बाजपेयी, मोनिका वर्मा सहित विभाग के सभी विद्यार्थी उपस्थित थे।