Sunday, November 6, 2011

पश्चिम की पत्रकारिता पूंजी की पत्रकारिताः सिन्हा





भोपाल,5 नवंबर।
इंडिया पालिसी फाउंडेशन के मानद निदेशक राकेश सिन्हा का कहना है कि पश्चिम की पत्रकारिता पूंजी की पत्रकारिता है जबकि भारतीय पत्रकारिता के मूल में पुरूषार्थ निहित है, क्योंकि भारतीय पत्रकारिता देश के स्वतंत्रता आंदोलन से प्रेरणा पाती है। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में प्रख्यात पत्रकार स्व. प्रभाष जोशी की द्वितीय पुण्यतिथि(5 नवंबर,2011) पर उनकी स्मृति में आयोजित ‘मीडया का समाजशास्त्र’ विषय पर व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने की।

दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर श्री सिन्हा ने कहा कि पश्चिमी संस्कृति हमारा आदर्श बन गयी है और हमने अपने गौरवशाली अतीत को बिसरा दिया है। उन्होंने कहा कि अब जरूरत इस बात की है कि वैकल्पिक पत्रकारिता के माध्यम से हम आज के ज्वलंत प्रश्नों के उत्तर तलाशें। यही पत्रकारिता देश के विकास का उद्यम बन सकती है। उनका कहना था कि स्थानीय संवाद को बढ़ाने का प्रयास इसी से सफल होगा और स्थानीय आकांक्षांएं मीडिया में अपनी जगह बना सकेंगीं।

श्री सिन्हा ने कहा कि नई पत्रकार पीढ़ी को चाहिए कि वह राष्ट्रीय प्रश्नों पर सामाजिक सरोकार पैदा करे तथा सामाजिक सरोकारों पर राष्ट्रीय दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए। उनका कहना था कि आज के युग में भ्रम अधिक हैं, जिसके कारण आदर्श की बात करने वाले ज्यादा हैं किंतु आदर्श पर चलने वाले कम हो गए हैं।

कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि वर्तमान पत्रकारिता के दोष और गुणों को देखते अपना ध्येय खुद तय करना होगा। ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता के विकास से ही भारत विश्वशक्ति बनेगा। उनका कहना था कि स्व. प्रभाष जोशी एक ऐसे पत्रकार थे जिन्होंने ताजिंदगी ध्येयनिष्ट पत्रकारिता की, उनकी स्मृति आज के युवा पत्रकारों का संबल बन सकती है। कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया। आरंभ में अतिथियों का स्वागत निदेशक-संबद्ध संस्थाएं दीपक शर्मा एवं मीता उज्जैन ने किया। कार्यक्रम में प्रो. आशीष जोशी, डा. पवित्र श्रीवास्तव, पुष्पेंद्रपाल सिंह, राघवेंद्र सिंह, डा. आरती सारंग मौजूद रहे।

1 comment:

  1. सिन्हा जी ने भारतीय मानस और पश्चिमी मानसिकता का अंतर स्पष्ट किया, यह एक व्यावहारिक अंतर है - जहाँ भारत में माखनलाल जी, महात्मा गाँधी और अन्य महापुरुषों ने पत्रकारिता को राष्ट्र को सशक्त और स्वतन्त्र करने के लिए साधन बनाया वही पश्चिमी देशो ने इसे पूंजी बनाने के साधनों में शामिल कर लिया है.

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