Tuesday, November 15, 2011

गूगल का खौफ: तकनीक को बांधना मुश्किल

-बालेंदु शर्मा दाधीच
सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दुनिया की सबसे तेज बढ़ती कंपनी गूगल ने महज सात साल में जिस तीव्र गति से करोड़ों प्रशंसक बना लिए हैं लगभग उसी रफ्तार से ऐसे प्रतिद्वंद्वियों की जमात भी खड़ी कर ली है जो उसकी विस्मयकारी उड़ान रोकने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। जब तक गूगल एक सर्च इंजन के तौर पर सफलता की गाथाएं लिख रहा था, तब तक उसका मुकाबला सिर्फ याहू, इंकटोमी, लुकस्मार्ट, एल्टाविस्टा और आस्क जीव्स जैसी इंटरनेट.खोज वाली मझौले दर्जे की कंपनियों से था। लेकिन पिछले दो साल में गूगल ने इंटरनेट.खोज के पारंपरिक कारोबार से आगे बढ़कर जिस अद्भुत तेजी से नई गतिविधियों और सेवाओं के क्षेत्र में पांव पसारे हैं उससे आईटी के दिग्गजों के पांवों तले जमीन खिसकने लगी है। इंटरनेट पोर्टल और सेवाओं में नंबर एक मानी जाने वाली 'याहू' और पीसी आपरेटिंग सिस्टम तथा आफिस सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में 90 फीसदी बाजार पर काबिज माइक्रोसॉफ्ट ने इंटरनेट मैसेजिंग सेवाओं के क्षेत्र में अपनी पारंपरिक प्रतिद्वंद्विता को त्याग कर गूगल के खिलाफ एकजुट होने का फैसला किया है।

याहू और माइक्रोसॉफ्ट के बीच हाल ही में हुए समझौते का घोषित उद्देश्य तो उनके इंटरनेट संदेशवाहक सॉफ्टवेयरों. 'एमएसएन मैसेंजर' और 'याहू मैसेंजर' के बीच अंतरसंबंध (इंटरकॉम्पेटिबिलिटी) को सुनिश्चित करना है, लेकिन वास्तव में यह गूगल के विस्तीर्ण होते कारोबार पर अंकुश लगाने के लिए बनाई गई माइक्रोसॉफ्ट की दूरगामी कारोबारी रणनीति का हिस्सा है। इसका एक अन्य उद्देश्य इंटरनेट मैसेजिंग के क्षेत्र में अमेरिका ऑनलाइन के दबदबे (5॰15 करोड़ सदस्य) को चुनौती देना है। गूगल के खिलाफ छेड़े जाने वाले किसी भी युद्ध में याहू एक स्वाभाविक भागीदार है क्योंकि गूगल की कामयाबी से सवरधिक नुकसान उसी को हुआ है। गूगल के आगमन से पहले इंटरनेट.खोज के क्षेत्र में याहू का ही दबदबा था और उसकी आय का एक बड़ा हिस्सा सर्च इंजन से ही आता था। सगेर्ई ब्रिन और लैरी पेज नामक दो युवाओं ने अद्वितीय व्यापारिक व तकनीकी मेधा का परिचय देते हुए गूगल का विकास किया जो अपनी उपयोगिता मात्र के बल पर इतना अधिक लोकप्रिय हो गया कि याहू और अन्य जाने.माने सर्च इंजन उसके सामने 'शौकिया डवलपर्स के बनाए हुए अपरिपक्व उत्पाद' नजर आने लगे। आज गूगल इंटरनेट.खोज का पयरय बन चुका है। वह न सिर्फ अपनी सार्थकता के लिहाज से बल्कि आय के हिसाब से भी अन्य सभी सर्च इंजनों को बहुत पीछे छोड़ चुका है।

गूगल के आने से पहले तक इंटरनेट खोज के क्षेत्र में की.वर्ड (विशेष शब्द) आधारित इन्डेक्सिंग (सूचीकरण) की विधि प्रचलित थी। होता यह था कि लगभग हर वेबसाइट में कुछ शब्द कीवर्ड के रूप में डाल दिए जाते थे जो यह प्रकट करते थे कि इस वेबसाइट में दी गई सामग्री इन विषयों पर आधारित है। याहू और अन्य सर्च इंजनों के स्पाइडर या क्रॉलर (ऐसे सॉफ्टवेयर जो नियमित रूप से वेबसाइटों का भ्रमण कर उनमें दी गई सामग्री पर नजर रखते हैं) इन्हीं कीवड्र्स के आधार पर उन वेबसाइटों को श्रेणियों में विभाजित कर अपने डेटाबेस में डाल देते थे। बाद में पाठकों की तरफ से इन श्रेणियों में जानकारी मांगे जाने पर इन्हीं वेबसाइटों का ब्यौरा दे दिया जाता था। लेकिन समस्या यह थी कि कई वेबसाइटों में गलत कीवर्ड डाल दिए जाते थे और वहीं यह तकनीक मात खा जाती थी। यह एक सरल पद्धति थी जिसमें एल्गोरिद्म (कंप्यूटरीय गणनाएं) की भूमिका बहुत सीमित थी। गूगल के प्रवर्तकों में से एक लैरी पेज ने इस परंपरा से एकदम हटकर 'पेज रैंक' नामक क्रांतिकारी तकनीक विकसित की जिसमें की.वड्र्स की कोई भूमिका नहीं थी। इस तकनीक के तहत वेबसाइट के पूरे पेज में दिए गए शब्दों का विश्लेषण किया जाता था और उसकी लोकप्रियता (पेज रैंक) को भी ध्यान में रखते हुए इन्डेक्सिंग की जाती थी। किसी भी वेबसाइट की लोकप्रियता जांचने के लिए उसके बारे में अन्य वेबसाइटों में दिए गए लिंक्स को आधार बनाया गया था। इस तकनीक में मानवीय हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं थी और इसके बावजूद न सिर्फ खोज के परिणाम सटीक आते थे बल्कि उन्हें उनके महत्व के अनुसार तरतीबवार पेश किया जाता था। गूगल के परिणाम इतने त्रुटिहीन और व्यापक थे कि इंटरनेट पर सर्च करने वालों के लिए यह एक तरह का वरदान प्रतीत हुआ।

गूगल की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी और अन्य सर्च इंजनों की लोकप्रियता में उसी तेजी से गिरावट आई। हालांकि गूगल ने अपनी खोज.पद्धति का राज नहीं खोला लेकिन आज के तकनीकी युग में ऐसी चीजों को बहुत समय तक छिपाकर रखना संभव नहीं है। अंतत: याहू, एमएसएन, एल्टा विस्टा और अन्य सर्च इंजन भी पुराने कोड को छोड़कर गूगल जैसी ही रैंक आधारित तकनीक अपनाने पर मजबूर हुए। याहू ने तो अपना आकार बढ़ाने के लिए 'इंकटोमी' नामक सर्च इंजन कंपनी को खरीद भी लिया। फिर भी इंटरनेट खोज के क्षेत्र में गूगल अपनी सर्वोच्चता बनाए हुए है। इस वत्ति वर्ष की दूसरी तिमाही के नतीजों में इंटरनेट विज्ञापनों के जरिए गूगल को 1॰4 अरब डालर की रकम हासिल हुई जबकि इसी अवधि में याहू ने 1॰1 अरब डालर अर्जित किए।

याहू और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों की समस्या यह है कि गूगल अब सिर्फ सर्च इंजन तक ही सीमित नहीं रह गया है और नए क्षेत्रों में पांव पसार रहा है। पूरी तरह लीक से हटकर सोचने वाली इस कंपनी ने सेवाओं और उत्पादों का विस्फोट सा कर दिया है और सब के सब आश्चयर्जनक रूप से अपनी.अपनी श्रेणियों में श्रेष्ठतम या उच्च कोटि के हैं। कम महत्वपूर्ण क्षेत्रों को छोड़ दें तो याहू का कारोबार मुख्यत: चार क्षेत्रों में फैला हुआ है. सर्च इंजन, ईमेल, इंटरनेट मैसेंजर और इंटरनेट पोर्टल। माइक्रोसॉफ्ट, जो कि मूल रूप से एक सॉफ्टवेयर आधारित कंपनी है, भी इन सभी क्षेत्रों में सक्रिय है, हालांकि याहू की भांति उसके कारोबार का दारोमदार पूरी तरह से इन पर नहीं है। उसका अधिकांश कारोबार विंडोज और ऑफिस जैसे सॉटवेयर आधारित उत्पादों पर निर्भर है।

गूगल ने सर्च इंजन के क्षेत्र में याहू और एमएसएन को पछाड़ने के बाद अब 'जीमेल' के माध्यम से ईमेल के क्षेत्र में भी उन्हें जबरदस्त चुनौती दी है। जीमेल की शुरूआत ही एक धमाके से हुई। न सिर्फ यह तेजी से काम करने वाली और अधिक सुविधाजनक ईमेल सेवा थी बल्कि इसकी शुरूआत में ही एक गीगाबाइट मेल स्पेस मुत दिया जा रहा था। याहू और माइक्रोसॉफ्ट (हॉटमेल) की ईमेल सेवाओं में दिए जा रहे दस.दस मेगाबाइट स्पेस की तुलना में यह लगभग सौ गुना था। जीमेल आते ही लोकप्रिय हो गया और उसका अकाउंट पाना एक किस्म का क्रेज बन गया। गूगल ने जीमेल में भी विज्ञापन दिखाने शुरू किए और अथर्ोपार्जन का एक नया माध्यम खड़ा कर लिया। वह इतने पर ही नहीं रुका और लगभग हर एकाध महीने में एक नया उत्पाद लांच करता चला गया। उसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के होश तो सर्च इंजन और जीमेल ने ही उड़ा दिए थे अब ब्लोग, डेस्कटॉप सर्च, स्कॉलर, गूगल अर्थ, इमेज सर्च, न्यूज जैसे उपयोगी और नवीनतम उत्पादों ने रही सही कसर भी पूरी कर दी। धीरे-धीरे इंटरनेट कंपनियां गूगल की ही नकल करने में व्यस्त हो गईं और ठीक उसके जैसे उत्पाद लांच करने लगीं।

गूगल ने इंटरनेट कारोबार की दिशा बदल दी थी। दो उत्साही युवकों द्वारा स्थापित इस कंपनी ने आईटी के दिग्गजों को अपना अनुसरण करने पर मजबूर कर दिया था।

याहू और माइक्रोसॉफ्ट ने भी अंतत: अपने नए सर्च इंजन, इमेज सर्च सेवा और समाचार सेवाएं शुरू कीं। लेकिन वे थोड़ा सुस्ता सकें इससे पहले ही गूगल ने 'गूगल टॉक' के माध्यम से मैसेंजर कारोबार में कदम रख लिया और इंटरनेट पर संदेशों के आदान प्रदान का ऐसा सॉफ्टवेयर लांच कर दिया जिसमें फोन की ही तरह बात करने की सुविधा भी है! और तो और खबर है कि वह इंटरनेट पोर्टल भी लाने वाला है। यानी अब वह याहू के कारोबार वाले लगभग सभी क्षेत्रों में सक्रिय हो रहा है।

स्वाभाविक ही है कि एक बेहत मजबूत प्रतिद्वंद्वी के मुकाबले अपना कारोबार बचाने के लिए याहू के लिए कोई बड़ा कदम उठाना जरूरी था। माइक्रोसॉफ्ट के साथ समझौते के जरिए उसने यह कदम उठा लिया है। याहू का नजरिया गूगल के प्रति लगातार आक्रामक हो रहा है। इंकटोमी के अधिग्रहण के जरिए याहू ने गूगल पर पहला हमला किया था। पिछले दिनों याहू ने दावा किया कि उसकी इन्डेक्सिंग सर्विस (वेबपेजों के ब्यौरे का डेटाबेस) गूगल की तुलना में दोगुना है। फिर याहू के चेयरमैन टेरी सैमेम ने इंटरनेट संबंधी विषयों पर आयोजित एक सम्मेलन में गूगल की खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि सर्च इंजन के क्षेत्र मंे हो सकता है, उसने काफी उपलब्धि अर्जित कर ली हो लेकिन अगर वह पोर्टल लेकर आता है तो वह चौथे नंबर का पोर्टल होगा। संयोगवश, याहू को इंटरनेट का नंबर वन पोर्टल माना जाता है। सैमेम के इस बयान से गूगल के प्रति उनका भय, निराशा और आक्रामकता तीनों प्रकट होते हैं। उन्होंने कहा कि गूगल याहू की नकल करने की कोशिश कर रहा है और उसके उत्पादों व सेवाओं पर नजर डालें तो यह सिद्ध हो जाता है। लेकिन ये सब हड़बड़ी में उठाए गए कदम ही दिखते हैं। गूगल पर इस दूसरे स्पष्ट हमले के बाद अब याहू ने माइक्रोसॉफ्ट के साथ आकर तीसरा और दूरगामी परिणामों वाला धावा बोल दिया है। (लेखक प्रभासाक्षी डाटकाम के संपादक हैं)

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