- अंकुर विजयवर्गीय
भूली बिसरी चितराई सी
कुछ यादें बाकी हैं अब भी
जाने कब मां को देखा था
जाने उसे कब महसूस किया
पर , हां आज मां ने फिर याद किया ।।।
बचपन में वो मां जैसी लगती थी
मैं कहता था पर वो न समझती थी
वो कहती की तू बच्चा है
जीवन को नहीं समझता है
ये जिंदगी पैसों से चलती है
तेरे लिए ये न रूकती है
मुझे तुझकों बडा बनाना है
सबसे आगे ले जाना है
पर मैं तो प्यार का भूखा था
पैसे की बात न सुनता था
वो कहता थी मैं लडता था
वो जाती थी मैं रोता था
मैं बडा हुआ और चेहरा भूल गया
मां की आंखों से दूर गया
सुनने को उसकी आवाज मै तरस गया
जाने क्यूं उसने मुझको अपने से दूर किया
पर, हां आज मां फिर ने याद किया ।।।
मैं बडा हुआ पैसे लाया
पर मां को पास न मैने पाया
सोचा पैसे से जिंदगी चलती है
वो मां के बिना न रूकती है
पर प्यार नहीं मैंने पाया
पैसे से जीवन न चला पाया
मैंने बोला मां को , अब तू साथ मेरे ही चल
पैसे के अपने जीवन को , थोडा मेरे लिए बदल
मैंने सोचा , अब बचपन का प्यार मुझे मिल जायेगा
पर मां तो मां जैसी ही थी
वो कैसे बदल ही सकती थी
उसको अब भी मेरी चिंता थी
उसने फिर से वही जवाब दिया
की तू अब भी बच्चा है
जीवन को नहीं समझता है
ये जिंदगी पैसों से चलती है
तेरे लिए ये न रूकती है
सोचा कि मैंने अब तो मां को खो ही दिया
पर, हां आज मां ने फिर याद किया ।।।
... bahut sundar ... prasanshaneey rachanaa !!!
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