माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ,भोपाल के जनसंचार विभाग के छात्रों द्वारा संचालित ब्लॉग ..ब्लाग पर व्यक्त विचार लेखकों के हैं। ब्लाग संचालकों की सहमति जरूरी नहीं। हम विचार स्वातंत्र्य का सम्मान करते हैं।
Wednesday, February 2, 2011
हाय रे ये नौकरी………..
2 फरवरी 2011,
साकेत नारायण
MAMC IV SEM
मैने ये कभी नहीं सोचा था कि मैं भी कभी इस विषय पर लिखूंगा, परंतु क्या कहूं परिस्थिति भी इन्सान को क्या-क्या करने पर मजबूर कर देती है। आज मैं एक मैं बनकर नहीं बल्कि हम बनकर लिख रहा हूँ।
परिस्थिति यह है कि आज समय ऐसा आ चुका है कि हम सब एक ऐसी दहलीज पर खड़े हैं, जहाँ से बिल्कुल एक नई दुनिया की शुरुआत होती है। भाईसाहब मास्टर डिग्री पूरी होने वाली है और नौकरी की मार शुरू हो चुकी है। हर दिन एक नया तरीका ईजाद होता है हमारे दिमाग में नौकरी ढूंढना का। कोई अपना फील्ड चेंज कर रहा है तो कोई कुछ भी करने को तैयार है। कुछ पुराने रिश्तों को फिर से जिन्दा कर रहे हैं, तो कुछ लिंक बनाने का एक भी मौका गंवाने को तैयार नहीं है।
वैसे ये नौकरी की मार अब एक त्रासदी और माहमारी की तरह फैल चुकी है। हर जगह हर बैठक में चर्चा का मुद्दा बस एक ही है-क्या होगा हमारा यार, कैसे मिलेगी नौकरी पर इन सबके बीच में भी कुछ तीसमारखाँ हैं जो इस संवेदनशील बहस के बीच में खुद की शेखी बखाने से बाज नहीं आते और बातें तो ऐसी करते हैं जैसे कि मानो कि कितने सारे ऑफर लेटर अभी से ही उनकी जेब में रखे पड़े हैं। क्या कहें हर जगह हर वैरायटी के नमूने होते है।
अब इसे नौकरी की मार का प्रकोप ही कहें ना कि लोग नौकरी ढूंढना छोड़कर खुद को इन्टरप्रयोनर या सरल शबदो में कहें तो खुद का बिजनेस करने जैसा बड़ा और भयावह फैसला ले रहे हैं। इस पूरे प्रकरण में मुझे, अरे सॉरी हमें जो डॉयलॉग सबसे सही और सटीक लग रहा है वो थ्री इडियट का डॉयलॉग है- अगर दोस्त फेल कर जाए तो दुःख होता है, पर अगर दोस्त टॉप कर जाए तो ज्यादा दुःख होता है। पर ये दुःख ऐसा होता है कि इसे आप दिखा नहीं सकते। अब अगर दोस्त की नौकरी लग रही हो तो ऐसी कुछ परिस्थिति बन जाती है।
कुल मिलाकर बात बस यह है कि समय बहुत तेज रफ्तार से बीत रहा है और देखते-देखते कब यह बचे 5 महीन बीत जाएंगे और हम सबकी स्नातकत्तोर(सुनने में काफी भारी भरकम लगा ना, अब क्या करें कम से कम इन शब्दों का प्रयोग ही करके खुद को सांत्वना देते हैं कि इतनी भारी भरकम पढ़ाई तो की है हमने कम से कम) की पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी, पर इन सबके बीच आज जो सबसे बड़ा प्रश्न है वह यह है कि क्या हमें नौकरी मिलेगी…? अंग्रेजी में कहें तो क्या हम सैटल कर पायेंगे…..? यह प्रश्न आज हमारे जीवन पर भी एक प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं और हमारे दिल और दिमाग से बस एक ही आवाज आ रही है- हाय रे ये नौकरी......
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प्रिय साकेत,
ReplyDeleteआपके इन भावों को पढ़कर ये तो नहीं कहूंगा कि मजा आ गया या फिर मुझे दुख हो रहा है। लेकिन आपसे कुछ बात करना चाहूंगा। हालांकि, मुझे आपसे ये बात इस तरह सार्वजनिक रूप में नहीं करनी चाहिए लेकिन आपने जब आपने अपनी नौकरी का सवाल सार्वजनिक कर ही दिया है तो फिर कैसी शर्म।
सबसे पहले तो ये कि आप नौकरी के लिए परेशान न हो। देर सवेर नौकरी सभी को मिल जाती है। हां अगर आप फिल्मों के डायलॉग लिखकर कुछ देर के लिए अपना गम भुलाना चाहें तो कोई बात नहीं। वैसे ये कोई गम भी नहीं है। अगर आपके किसी दोस्त को आपसे पहले नौकरी मिल जाती है तो उसका उत्साहवर्धन करे, न कि फिल्मों के डायलॉग को याद करें।
दूसरा जो आपने लिखा है कि "हर दिन एक नया तरीका ईजाद होता है हमारे दिमाग में नौकरी ढूंढना का। कोई अपना फील्ड चेंज कर रहा है तो कोई कुछ भी करने को तैयार है। कुछ पुराने रिश्तों को फिर से जिन्दा कर रहे हैं, तो कुछ लिंक बनाने का एक भी मौका गंवाने को तैयार नहीं है"
दोस्त मीडिया में लिंक हमेशा जिन्दा रखे जाते हैं। खबरों के लिए भी और नौकरी के लिए भी। हम लोग भी इसी विभाग के छात्र रहे हैं और अपने गुरूओं की शिक्षा और सीख की बदौलत आज अच्छे मुकाम है। अपने शिक्षकों और उनकी शिक्षा पर भरोसा रखें।
अंत में आपसे यही कहना चाहूंगा कि इस हताशा की भावना को अपने से दूर भगाएं और एक नए जोश और लगन के साथ मीडिया में उतरने की तैयारी करें। फिर देखिए ये मीडिया भी आपका तहे दिल से स्वागत करेगा। और वैसे भी---
हिम्मत करने वाले की कभी हार नहीं होती मेरे दोस्त...
सादर
अंकुर विजय
हिन्दुस्तान टाइम्स
देहली
Thanks for the comment. But i would like to clarify that until and unless you are not correctly knowing the intension of the writer please don't self interpret the content. One should leave behind his prejudice before commenting on other. And about me getting the job then i know where and in which field i have to go. Anyways thanks once again............
ReplyDeleteप्रिय साकेत,
ReplyDeleteलगता है तुम मेरी बातों का बुरा मान गए। चलो कोई नहीं मैं माफी मांग लेता हूं । लेकिन मेरे भाई कहने और लिखने के लिए जिंदगी में ओर भी बहुत कुछ है। तुम ये तो नहीं कह सकते कि मैं तुम्हारी या तुम्हारे साथियों की भावनाओं को मैं नहीं समझ पा रहा हूं क्यूंकि जहां आज तम खड़े हो वहां कुछ साल पहले हम भी खड़े थे। इसलिए जिंदगी को जोश, जुनून और जज्बे के साथ जियो न यार। इस तरह की फर्जी टाइप की हताश करने वाली बाते क्यूं लिखते हो। क्यूंकि तमने ही कहा कि तम ये सब मैं नहीं हम बनकर लिख रहे हो। लेकिन अपने साथियों को अपनी इस भावना में शामिल मत करो मेरे भाई।
तुम्हारे उज्जवल भविष्य की कामना के साथ
अंकुर विजय