माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ,भोपाल के जनसंचार विभाग के छात्रों द्वारा संचालित ब्लॉग ..ब्लाग पर व्यक्त विचार लेखकों के हैं। ब्लाग संचालकों की सहमति जरूरी नहीं। हम विचार स्वातंत्र्य का सम्मान करते हैं।
Friday, April 8, 2011
आज माँ ने फिर याद किया
-अंकुर विजय
भूली बिसरी चितराई सी
कुछ यादें बाकी हैं अब भी
जाने कब माँ को देखा था
जाने उसे कब महसूस किया
पर , हाँ आज माँ ने फिर याद किया ।।।
बचपन में वो माँ जैसी लगती थी
मैं कहता था पर वो न समझती थी
वो कहती की तू बच्चा है
जीवन को नहीं समझता है
ये जिंदगी पैसों से चलती है
तेरे लिए ये न रूकती है
मुझे तुझकों बडा बनाना है
सबसे आगे ले जाना है
पर मैं तो प्यार का भूखा था
पैसे की बात न सुनता था
वो कहता थी मैं लडता था
वो जाती थी मैं रोता था
मैं बडा हुआ और चेहरा भूल गया
माँ की आंखों से दूर गया
सुनने को उसकी आवाज मै तरस गया
जाने क्यूं उसने मुझको अपने से दूर किया
पर, हाँ आज माँ फिर ने याद किया ।।।
मैं बडा हुआ पैसे लाया
पर माँ को पास न मैने पाया
सोचा पैसे से जिंदगी चलती है
वो माँ के बिना न रूकती है
पर प्यार नहीं मैंने पाया
पैसे से जीवन न चला पाया
मैंने बोला माँ को , अब तू साथ मेरे ही चल
पैसे के अपने जीवन को , थोडा मेरे लिए बदल
मैंने सोचा , अब बचपन का प्यार मुझे मिल जायेगा
पर माँ तो माँ जैसी ही थी
वो कैसे बदल ही सकती थी
उसको अब भी मेरी चिंता थी
उसने फिर से वही जवाब दिया
की तू अब भी बच्चा है
जीवन को नहीं समझता है
ये जिंदगी पैसों से चलती है
तेरे लिए ये न रूकती है
सोचा कि मैंने अब तो माँ को खो ही दिया
पर, हाँ आज माँ ने फिर याद किया ।।।
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