Wednesday, March 9, 2011

‘छत्तीसगढ़ के विकास में मीडिया की भूमिका’ विषय पर संगोष्ठी


मीडिया विमर्श के आयोजन में बोले दिग्गज पत्रकार और राजनेता
राज्य गठन के बाद अपनी भूमिका से चूकी पत्रकारिताः तिवारी

रायपुर। वरिष्ठ पत्रकार बसंतकुमार तिवारी का कहना है कि छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े इलाके में जागरूकता और विकास के काम दरअसल पत्रकारिता के सक्रिय हस्तक्षेप से ही संभव हो पाए। यहां तक कि राज्य निर्माण के लिए कोई प्रभावी आंदोलन न होने के बावजूद भी यह राज्य बना तो इसका श्रेय भी यहां के स्थानीय पत्रकारों और अखबारों को है। वे मीडिया विमर्श (जनसंचार के सरोकारों पर केंद्रित त्रैमासिक पत्रिका) द्वारा आयोजित संगोष्ठी ‘छत्तीसगढ़ के विकास में मीडिया की भूमिका’ विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन रायपुर प्रेस क्लब के सभागार में किया गया था।
श्री तिवारी ने कहा कि मैने अपने जीवन में पत्रकारिता के साठ साल पूरे कर लिए हैं और उस अनुभव के आधार पर यह कह सकता हूं कि जब मैने पत्रकारिता शुरू की तब रायपुर में अकेला दैनिक महाकौशल निकलता था। वे काफी संघर्ष के दिन थे, किंतु इससे होकर ही छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता ने एक मुकाम हासिल किया है। पत्रकारिता और छत्तीसगढ़ क्षेत्र दोनों का विकास एक दूसरे से जुड़ा हुआ है।
उन्होंने कहा छत्तीसगढ़ की आरंभिक पत्रकारिता ने मुद्दों को पहचानने, जानने और जनाकांक्षाओं को स्वर देने का काम किया था। उन्होंने साफ कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य किसी आंदोलन से नहीं बना, जैसा कि झारखंड या उत्तराखंड में हुआ। इस राज्य के गठन का श्रेय सबसे ज्यादा किसी को है तो यहां की पत्रकारिता को, जिसने इस भूगोल के सवालों को यहां की अस्मिता और विकास से जोड़ दिया। किंतु राज्य के गठन के बाद पत्रकारिता को जैसी भूमिका इस राज्य के निर्माण में अदा करनी चाहिए, उसे वह नहीं निभा पा रही है।
कृषि और उद्योग का संतुलन जरूरीः
देशबंधु के संपादक रहे वयोवृद्ध पत्रकार श्री तिवारी ने कहा कि छत्तीसगढ़ आदर्श राज्य तभी बनेगा जब कृषि और उद्योग का संतुलन बनेगा। खनिजों और वनसंपदा का नियंत्रित दोहन होगा और भूमि विकास के लिए तेज काम होगा। उनका सुझाव था कि अब राज्य में निजी उद्योगों को आने से रोका जाना चाहिए और केवल सार्वजनिक उद्योगों को ही राज्य में आने की अनुमति दी जानी चाहिए। मीडिया को संतुलित विकास के लिए शासन और उद्योगों पर दबाव बनाना होगा। वरना आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगीं।
संसाधनों का हो सही इस्तेमालः
कार्यक्रम के मुख्यवक्ता बख्शी सृजनपीठ के अध्यक्ष बबनप्रसाद मिश्र ने कहा कि भ्रष्टाचार से ही हर योजना असफल होती है। विकास, नेतृत्व की मानसिकता और कर्तव्यनिष्ठा से जुड़ा सवाल है। संसाधनों का सही इस्तेमाल और नियोजन समय की आवश्यक्ता है। इन दस सालों में बहुत कुछ होना था जो नहीं हो पाया। आज भी छत्तीसगढ़ में दो-तीन फसलें लेने की परंपरा नहीं बन पा रही है। लोग बीमारियों से मर रहे हैं। उनका सुझाव था देश का 42 प्रतिशत वन क्षेत्र हमारे पास है, इसे देखते हुए वनोपजों पर आधारित लघु उद्योगों का विकास होना चाहिए। जिससे स्थानीय जनों को काम मिल सके। कोसा से लेकर आदिवासी शिल्प, बस्तर आर्ट और कलाओं का एक वैश्विक बाजार है जिसे इस तरह से विकसित किया जाए कि सीधा लाभ आम आदमी को मिले। नवभारत के प्रबंध संपादक रहे श्री मिश्र ने साफ कहा कि पत्रकारिता पुलिस का रोजनामचा नहीं है। जनता के दुख-दर्द की अभिव्यक्ति बनने में ही उसकी मुक्ति है। कलम की शक्ति का रचनात्मक उपयोग जरूरी है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ पावर हब तो बन गया है, परंतु जलसंरक्षण के लिए हमारा कर्तव्य शेष है। श्री मिश्र ने कहा कि तेजी से खुलती शराब दुकानें नौजवानों को नष्ट कर रही हैं। जो क्षेत्र वनौषधियों का क्षेत्र होने के कारण आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण का केंद्र बन सकता है वह नकली दवाओं के लिए मशहूर हो रहा है।
आज भी मीडिया पर भरोसा कायमः
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि छत्तीसगढ़ बालअधिकार आयोग के अध्यक्ष यशवंत जैन का कहना था कि राज्य को बनाने और इस क्षेत्र को विकसित बनाने की आकाक्षाएं निश्चित ही मीडिया ने जगाई हैं। अब जरूरत इस बात की है मीडिया राज्य के विकास और नवनिर्माण में एक सजग प्रहरी की तरह काम करे। समय का सच लोगों के सामने आना चाहिए। युवा इस राज्य की ताकत हैं पर वे नशाखोरी से खराब हो रहे हैं। मीडिया के सामाजिक सरोकार ही इस राज्य को एक आदर्श राज्य बना सकते हैं। क्योंकि राज्य में आज भी लोग मीडिया पर भरोसा करते हैं।
विकास में मीडिया की भूमिका स्वयंसिद्धः
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे छत्तीसगढ़ बीज एवं कृषि विकास निगम के अध्यक्ष श्याम बैस ने कहा कि किसी भी क्षेत्र के विकास में मीडिया की भूमिका स्वयंसिद्ध है। वह जनता और शासन दोनों के बीच सेतु ही नहीं बल्कि मार्गदर्शक की भूमिका में है। सकारात्मक और प्रेरणा देने वाले तमाम काम भी समाज जीवन में हो रहे हैं, मीडिया के द्वारा उन्हें सामने लाया जा सकता है। इससे समाज में एक सही वातावरण बनेगा। सब कुछ खत्म नहीं हुआ है यह भाव भी लोगों में पैदा होगा। समाज की शक्ति के जागरण से ही छत्तीसगढ़ की तकदीर और तस्वीर बदली जा सकती है।
शासन की कमियां बताए मीडियाः
मुख्यअतिथि छत्तीसगढ़ शासन में वनमंत्री और आदिवासी नेता विक्रम उसेंडी ने कहा कि यह जरूरी है मीडिया शासन की कमियों की तरफ इशारा करे। इससे सुधार और विकास की संभावनाएं बढ़ती हैं। नए बने तीनों राज्यों (झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़) में छत्तीसगढ़ सबसे आगे है। यह आशाएं जगाता है। बावजूद इसके बहुत कुछ करने की जरूरत है। राज्य के तमाम दूरस्थ इलाकों की खबरें मीडिया के माध्यम से ही सामने आती हैं। तमाम इलाकों से जब ये खबरें आती हैं तो शासन भी सक्रिय होता है और समस्या का समाधान भी होता है। उन्होंने कहा कि वामपंथी उग्रवाद एक बड़ी समस्या है उसके समाधान के बाद छत्तीसगढ निश्चय ही सबसे शांत, सुंदर और समृध्द राज्य बन जाएगा।
पत्रकारों का सम्मानः
इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के तीन वरिष्ठ पत्रकारों सर्वश्री बसंतकुमार तिवारी, बबनप्रसाद मिश्र और उदंती पत्रिका की संपादक डा. रत्ना वर्मा का शाल, श्रीफल और प्रतीक चिन्ह देकर वनमंत्री विक्रम उसेंडी ने सम्मान किया। साथ ही मीडिया विमर्श के ताजा अंक (घोटालों का गणतंत्र) का विमोचन भी किया गया।
अर्जुन सिंह को श्रद्धांजलिः
संगोष्ठी प्रारंभ करने से पूर्व मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं दिग्गज कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह, शिवकुमार शास्त्री, बिलासपुर के पत्रकार सुशील पाठक और महासमुंद के पत्रकार उमेश राजपूत को दो मिनट मौन रहकर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गयी।
आरंभ में स्वागत भाषण पत्रिका के प्रबंध संपादक प्रभात मिश्र ने किया एवं आभार प्रदर्शन हेमंत पाणिग्राही ने किया। संचालन छत्तीसगगढ़ कालेज में हिंदी की प्रोफेसर डा. सुभद्रा राठौर ने किया। कार्यक्रम के अंत में अतिथियों को स्मृति चिन्ह प्रख्यात लेखिका जया जादवानी ने भेंट किए।
कार्यक्रम में रायपुर के अनेक प्रबुद्ध नागरिक, साहित्यकार एवं पत्रकार उपस्थित थे जिनमें प्रमुख रूप से छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक-कवि विश्वरंजन, मीडिया विमर्श के कार्यकारी संपादक संजय द्विवेदी, छत्तीसगढ़ हज कमेटी के अध्यक्ष डा. सलीम राज, छत्तीसगढ़ हिंदी ग्रंथ अकादमी के निदेशक रमेश नैयर, दीपकमल के संपादक पंकज झा, सृजनगाथा डाटकाम के संपादक जयप्रकाश मानस, फिल्मकार तपेश जैन, महानदी वार्ता के संपादक अनुराग जैन, कार्टून वाच के संपादक त्र्यंबक शर्मा, भाजपा नेता और पार्षद सुभाष तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार जागेश्वर साहू, डा. राजेश दुबे, नागेंद्र दुबे, शास्वत शुक्ला, अनिल तिवारी, सुनील पाल, बबलू तिवारी, प्रदीप साहू, किशन लोखंडे के नाम उल्लेखनीय हैं।

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