माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ,भोपाल के जनसंचार विभाग के छात्रों द्वारा संचालित ब्लॉग ..ब्लाग पर व्यक्त विचार लेखकों के हैं। ब्लाग संचालकों की सहमति जरूरी नहीं। हम विचार स्वातंत्र्य का सम्मान करते हैं।
Wednesday, January 12, 2011
मन का श्रृंगार
12 जनवरी 2011
अंकुर विजयवर्गीय, पू्र्व छात्र(जनसंचार विभाग)
काश ।
एक कोरा केनवास ही रहता
मन… ।
न होती कामनाओं की पौध
न होते रिश्तों के फूल
सिर्फ सफेद कोरा केनवास होता
मन… ।
न होती भावनाओं के वेग में
ले जाती उन्मुक्त हवा
न होती अनुभूतियों की
गहराईयों में ले जाती निशा ।
सोचता हूं,
अगर वाकई ऐसा होता मन
तो मन मन नहीं होता
तन तन नहीं होता
जीवन जीवन नहीं होता… ।
तो सिर्फ पौधा एक पौधा होता
फूल सिर्फ एक फूल होता
फूल पौधों का उपवन नहीं होता… ।
हवा सिर्फ हवा होती
निशा सिर्फ निशा होती
कोई खूशबू नहीं होती
कोई उषा नहीं होती… ।
जीवन की संजीवनी है भाव
रिश्तों का प्राण है प्यार
मन और तन दोनों का
यही तो है
शाश्वत श्रृंगार
एक मात्र मूल आधार... ।
वर्तमान में,
वरिष्ठ कॉपी संपादक,
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ankur bhiya man ka sirangar wo sringar hota hai jisko sajane ke liye buitu parlar ki zarurat nahi hoti hai .............. is ko to bas xicharo ki zarurat hoti hai
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