माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ,भोपाल के जनसंचार विभाग के छात्रों द्वारा संचालित ब्लॉग ..ब्लाग पर व्यक्त विचार लेखकों के हैं। ब्लाग संचालकों की सहमति जरूरी नहीं। हम विचार स्वातंत्र्य का सम्मान करते हैं।
Monday, November 1, 2010
कॉमनवेल्थ में छाई स्वर्णिम शतकीय दबंगाई
संजय शर्मा
MAMC III SEM
भोपाल 1 नवंबर,2010
दिल्ली में चल रहा कॉमनवेल्थ फीवर रंगारंग समापन के साथ ख़त्म हुआ! २०१४ में होने वाले कॉमनवेल्थ के लिए ग्लासगो (स्कॉट्लैंड ) के प्रतिनिधियों को ध्वज प्रदान करके औपचारिक पूर्ति की गई! खेलों के इस अर्द्ध कुम्भ ने भारतीय खेल पटल पर एक नया अध्याय सकुशल पूरा किया! १९८२ में दिल्ली में हुए एशियाड के बाद २८ साल के बाद यह हमारे देश में खेलों का अब तक का सबसे बड़ा आयोजन था! कॉमनवेल्थ खेलों में हो रहे भ्रष्टाचार की परत खुल जाने से यह मुद्दा ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटिश मीडिया में लगातार छाया रहा! खेलों के दौरान अर्थात खेलों से पहले कलमाड़ी का भ्रष्टाचार में दबंग और खेलों के अंत तक हमारे देश के खिलाड़ी अपने सुनहरे पदकों का दबंग दिखाते नजर आए। हमारे देश के लिए यह पहला मौका था जब हम विश्व के ७१ देशों के ८००० से अधिक खिलाड़ियों के इस अर्द्ध कुम्भ का आयोजन करने में जुटे थे! खिलाड़ियों के ठहरने के लिए खेल गाँव को दुल्हन की तरह सजाया गया लेकिन फिर भी खेल शुरू होने से पहले हम खेलगांव की आलोचनाओं के शिकार
हुए! ब्रिटिश मीडिया ने तो इसे खेलों का सबसे नकारात्मक पहलु बताया जबकि ब्रिटिश मीडिया या अन्य देशों का मीडिया यह भूल गया की वर्ष २००२ में मेनचेस्टर कॉमनवेल्थ में हमारे देश की कई खेलों की टीमो को खेलगांव के दर्शन तक नही हुए! खैर यह खेलों की आलोचनात्मक दास्ताँ थी जो वक़्त के साथ गुजर चुकी है! दिल्ली कॉमनवेल्थ में हमे वो सब कुछ मिला जिसके लिए हम अब तक सोच रहे थे! इन खेलों में हमने ३८ स्वर्ण सहित १०१ पदक हासिल करके पदकों का शतक लगाया! २००६ मेलबोर्न में हुए कॉमनवेल्थ में हम चोथे स्थान पर थे लेकिन यहाँ हमने दूसरा स्थान पाया! यह पहला मौका था जब हमने पदकों का शतक लगाकर मेनचेस्टर कॉमनवेल्थ में जीते ६९ पदकों का रिकॉर्ड तोडा! भारोत्तोलक सोनिया चानू ने रजत पदक जीतकर अभियान की शुरुआत पहले दिन ही कर दी थी अब इस अभियान में सुनहरी चमक बिखरने का समय था जिसे पूरा किया ओलंपिक स्वर्ण विजेता अभिनव बिंद्रा और गगन नारंग की स्टार जोड़ी ने! जिन्होंने २५ मीटर युगल निशानेबाजी में भारत को पहला सोना दिला सुनहरी सफलता का अहसास कराया! बिंद्रा- नारंग के द्वारा जीते सोने की सुनहरी महक ने भारत के रणबांकुरों में सोना पाने की लालसा को दुगना कर दिया जिससे भारत कॉमनवेल्थ खेलों में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहा! १९वें कॉमनवेल्थ खेलों में जहाँ हमारे देश के रणबांकुरों ने कई खेलों में रिकॉर्ड कायम किये वही कई खेलों ने हमें आशा के अनुरूप परिणाम नही दिए! डिस्कस थ्रोअर कृष्णा पुनिया ने ट्रेक एवं फिल्ड एथलीट प्रतिस्पर्धा में जहाँ हमे ५२ साल बाद स्वर्ण दिलाया वही बीजिंग ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता विजेंद्र से स्वर्ण की आस लगाये प्रशंसकों को उस समय निराशा मिली
जब वो इन उम्मीदों पर खरा नही उतरे और मुकाबले से बाहर हो गए! क्रिकेट की लोकप्रियता के साए में जी रहे भारतीय दर्शकों को इन खेलों ने अपने साए में भरने की कोशिश तो भरपूर की लेकिन फिर भी कुश्ती, निशानेबाजी,
बोक्सिंग, हॉकी को छोड़ कर अधिकतर खेल दर्शकों के लिए तरसते रहे! १९वें कॉमनवेल्थ खेलों में कुल मिलाकर ७५ रिकॉर्ड नए बने जिनमे कुछ रिकॉर्ड भारतीय खिलाडियों के हिस्से में भी आये! तीरंदाजी में झारखंड के एक ऑटो चालक की लाडली बेटी ने व्यक्तिगत व टीम स्पर्धा में दोहरी स्वर्णिम कामयाबी हासिल की! १७ साल की दीपिका ने इतनी छोटी उम्र में स्वर्णिम निशाना लगा कर कॉमनवेल्थ खेलों में तीरंदाजी का स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव हासिल किया! उनकी इस स्वर्णिम दास्ताँ ने उन्हें एक ही दिन में तीरंदाजी का नया स्टार बना दिया! कॉमनवेल्थ खेलों में हॉकी की चमक एक बार फिर देखने को मिली जब राजपाल सिंह के नेतृत्व में टीम इंडिया ने पाक को ७-४ से हराकर बाहर का रास्ता दिखाया! चक दे इंडिया की गूंज अब हर तरफ गूंजने लगी थी ऐसा लग रहा था मानो टीम इंडिया के स्वर्णिम दिन फिर लौट आये है! टीम इंडिया को सेमी फ़ाइनल का टिकट कटाने के लिए बस एक और जीत की दरकार थी लेकिन इस बार मुकाबला अंग्रेजों से होने वाला था मैच के शुरू होने से लेकर अंत तक दोनों ही टीमों के खिलाड़ी एक दूसरे पर हावी रहे नतीजा मैच ट्राई बेकर पर आ टिका और इस समय अंतिम गोल करने का दारोमदार टीम इंडिया के फॉरवर्ड खिलाड़ी शिवेंद्र सिंह पर था लेकिन शिवेंद्र ने भरोसे को हकीकत में तब्दील करके अपनी स्टिक से अंतिम समय में गोल करके फ़ाइनल में टीम इंडिया को प्रवेश कराया लेकिन जो चमक टीम इंडिया की हॉकी में अब तक नजर आ रही थी मानो ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ फ़ाइनल में वो चमक कही खो सी गई थी नतीजा हमे ८-० से अब तक की सबसे बड़ी हार झेलनी पड़ी! खैर गुमनामी के साए में डूब रहा हमारा राष्ट्रीय खेल कुछ चमक छोड़ने में तो कामयाब रहा ही साथ ही साथ हमे कॉमनवेल्थ में पहला पदक भी मिला! इन खेलों ने भारतीय नारी सब पर भारी जुमले को भी सच्चाई प्रदान की! महिलाओं ने अपनी शक्ति का परचम दिखाते हुए १०१ पदकों में से ३६ पदकों पर अपना दाव लगाया! खेलों के अंत तक एक खुली चुनौती भी देखने को मिली जब ऑस्ट्रेलिया की डिस्कस थ्रोअर में विश्व चैम्पियन रह चुकी डैनी सेमुअल्स ने कॉमनवेल्थ स्वर्ण पदक विजेता कृष्णा पुनिया को ये कहकर अपनी प्रतिक्रिया जताई की कृष्णा पुनिया ने मेरी अनुपस्थिति में स्वर्ण जीता है यदि मैं इन खेलों में प्रतियोगी होती तो मुकाबला टक्कर का होता! विश्व चैम्पियन ने कृष्णा को इस सम्बन्ध में ये कहकर पल्ला झाड दिया की मैं किसी कारणवश इन खेलों में नही आ सकी लेकिन हमारे पास अभी मौका है, कृष्णा अगर मेरी चुनौती को स्वीकार करती है तो ये मुकाबला फिर हो सकता है! खैर कृष्णा इस चुनौती का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है और संभवत ये मुकाबला फरवरी में हो सकता है! डैनी सेमुअल्स और कृष्णा पहले भी कई बार आमने सामने हो चुकी है जिसमे कृष्णा ने विश्व चैम्पियन को एक बार हराया भी है! कॉमनवेल्थ में मिली इन उपलब्धियों ने एशियाड में हमारी पदक जीतने की सम्भवनाएं बढ़ाई है जो अगले माह चीन के ग्वागंझू शहर में होने वाला है।
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shayad ab cricket ki tarah hi baki khelo par dhyan diya jayega
ReplyDeletein khelo ke aayojan se cricket ke alawa bhi baki khiladio ka utna hi samman hoga jatna hona chahiye
Ab shayad wo din bit gaye jab in khiladio ko suvidha nahi milti thi,cwg ke baad ab aur adhik aur vishv istriy suvidha in khiladio ko milegi aisi ummid jatayi ja sakti hai
ab is desh ki maati se aur adhik abhinav bindra, sushil kumar nikalenge
ab,2010 Asian Games aur London 2012 Olympic ka intjar rahega
is khel ke aayojan ses dilhi ki surat badal gayi hai aur ummid ki ja skti hai ki yah surst bani rahe