अंकुर विजयवर्गीय
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पाकिस्तान में लोकतंत्र समर्थक आतंकवादियों को पनाह मिलती है, लेकिन सरकार और संविधान को चुनौती देने वाले आतंकवादियों के विरुद्ध सख्त रुख अपनाने पर विचार हो रहा है, जिससे आतंकवाद पर नवाज शरीफ सरकार के दोहरे चेहरे से परदा उठता है। पाकिस्तान में जो भी सरकार होती है, उसी परंपरा को निभाते हुए नवाज सरकार भी एक आईएसआई और जम्हूरियत का समर्थन करने वाले आतंकवादी गुटों को पनाह दे रही है। लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और अन्य आतंकवादी संगठन शासन पोषित हैं और सभी खुफिया एजेंसी के इशारों पर काम करते हैं, इसलिए उन्हें सरकार का संरक्षण हासिल है, लेकिन सरकार के वजूद के लिए चुनौती बन रहे तालिबान जैसे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है।
हाल ही में सरकार ने तालिबान के खिलाफ कड़ा कदम उठाने से पहले उसकी वार्ता की पेशकश को स्वीकार कर लिया है। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने तालिबान से समझौता वार्ता के लिए चार सदस्यीय दल भी नियुक्त कर दिया है। उन्होंने नेशनल असेम्बली में कहा है कि बातचीत की तालिबान की पेशकश स्वीकार कर ली गई है और इसके लिए समिति बनाई गई है और वह स्वयं समिति के काम की निगरानी करेंगे। हालांकि अमन और सुलह की बातचीत को लेकर फैली गलतफहमियां पेशावर के लोगों के लिए पुरानी बातें हो गई हैं, क्योंकि हाल के धमाकों ने उनके मकानों को खंडहर बना दिया है और उनके कई अपनों को उनसे छीन लिया है। कुछ दिनों पहले एक सिनेमा हॉल में तीन धमाके हुए, जिनमें 13 लोगों की मौत हो गई। इन आतंकी करतूतों से लगने लगा है कि अमन-सुलह की बातचीत से लोगों का भरोसा उठ जाएगा। अभी इस बातचीत का महज आगाज हुआ है। ऐसे में, हुकूमत और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ही जवाब दे सकते हैं कि क्यों दहशतगर्दी जारी है?
हुकूमत ने यह दावा किया है कि ये धमाके दरअसल टीटीपी से बातचीत को रोकने की कोशिश हैं। मगर ऐसे गोलमोल जवाब काफी नहीं होते। अगर वे जानते हैं कि इन धमाकों के पीछे कौन है, तो उन्हें यह बात अवाम को बतानी चाहिए। बलूचिस्तान मामले में बाहरी हाथों के शामिल होने की बात हुकूमत बार-बार कहती है, तो फिर इस मामले पर खामोशी किसलिए? जब तक माकूल जवाब नहीं मिलता, तब तक यही नतीजा निकलता है कि हुकूमत-ए-पाकिस्तान नहीं जानती कि इन धमाकों के पीछे कौन है? या फिर वह सोचती है कि इन धमाकों के पीछे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का ही हाथ है, मगर वह बातचीत को रोकना नहीं चाहती। यह भी गौरतलब है कि टीटीपी किसी भी तरह की दहशतगर्दी की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने से इनकार नहीं करता, मगर इस बार उसने कहा कि इन धमाकों से उसका कोई वास्ता नहीं। इस सूरत में एक राय यह बनती है कि टीटीपी के अंदर ही कुछ ऐसे लोग हैं, जो नहीं चाहते कि हुकूमत के साथ किसी तरह का करार हो। लेकिन इस संगठन के वार्ताकार मौलाना समी-उल-हक कहते हैं कि हर कोई बातचीत के प्रति प्रतिबद्ध है। निस्संदेह, प्रशासनिक अमलों को अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है। उन्हें यह भी जानना चाहिए कि इन धमाकों के पीछे कौन है, क्योंकि इससे बातचीत की तकदीर जुड़ी हुई है।
पश्चिम एशिया नीति संबंधी मामलों पर काम करने वाले शबन सेंटर ने करीब पांच साल पहले प्रकाशित एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में कहा था कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले दुनिया का सबसे अधिक सक्रिय देश है। वहां सरकार से पोषित आतंकवाद से सिर्फ भारत जैसे कुछ पड़ोसी देशों को ही खतरा नहीं है, बल्कि अमेरिका भी उसके पालतू आतंकवादियों के सीधे निशाने पर है। संयुक्त राष्ट्र ने सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान से कहा है कि वह अपने यहां आतंकवाद को पनपने से रोकने में असफल साबित हो रहा है। उसका कहना है कि वह अफगानिस्तान सीमा पर सक्रिय तालिबान को भी नहीं रोक पा रहा है और शायद इसी दबाव में आकर नवाज सरकार ने तालिबान के खिलाफ सख्त कदम उठाने की तैयारी कर ली है, लेकिन असली सवाल है कि वह जिन आतंकवादियों को बढ़ावा दे रहा है और जो भारत में वांछित हैं, उनको शह देने की वजह क्या है।
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पाकिस्तान में लोकतंत्र समर्थक आतंकवादियों को पनाह मिलती है, लेकिन सरकार और संविधान को चुनौती देने वाले आतंकवादियों के विरुद्ध सख्त रुख अपनाने पर विचार हो रहा है, जिससे आतंकवाद पर नवाज शरीफ सरकार के दोहरे चेहरे से परदा उठता है। पाकिस्तान में जो भी सरकार होती है, उसी परंपरा को निभाते हुए नवाज सरकार भी एक आईएसआई और जम्हूरियत का समर्थन करने वाले आतंकवादी गुटों को पनाह दे रही है। लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और अन्य आतंकवादी संगठन शासन पोषित हैं और सभी खुफिया एजेंसी के इशारों पर काम करते हैं, इसलिए उन्हें सरकार का संरक्षण हासिल है, लेकिन सरकार के वजूद के लिए चुनौती बन रहे तालिबान जैसे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है।
हाल ही में सरकार ने तालिबान के खिलाफ कड़ा कदम उठाने से पहले उसकी वार्ता की पेशकश को स्वीकार कर लिया है। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने तालिबान से समझौता वार्ता के लिए चार सदस्यीय दल भी नियुक्त कर दिया है। उन्होंने नेशनल असेम्बली में कहा है कि बातचीत की तालिबान की पेशकश स्वीकार कर ली गई है और इसके लिए समिति बनाई गई है और वह स्वयं समिति के काम की निगरानी करेंगे। हालांकि अमन और सुलह की बातचीत को लेकर फैली गलतफहमियां पेशावर के लोगों के लिए पुरानी बातें हो गई हैं, क्योंकि हाल के धमाकों ने उनके मकानों को खंडहर बना दिया है और उनके कई अपनों को उनसे छीन लिया है। कुछ दिनों पहले एक सिनेमा हॉल में तीन धमाके हुए, जिनमें 13 लोगों की मौत हो गई। इन आतंकी करतूतों से लगने लगा है कि अमन-सुलह की बातचीत से लोगों का भरोसा उठ जाएगा। अभी इस बातचीत का महज आगाज हुआ है। ऐसे में, हुकूमत और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ही जवाब दे सकते हैं कि क्यों दहशतगर्दी जारी है?
हुकूमत ने यह दावा किया है कि ये धमाके दरअसल टीटीपी से बातचीत को रोकने की कोशिश हैं। मगर ऐसे गोलमोल जवाब काफी नहीं होते। अगर वे जानते हैं कि इन धमाकों के पीछे कौन है, तो उन्हें यह बात अवाम को बतानी चाहिए। बलूचिस्तान मामले में बाहरी हाथों के शामिल होने की बात हुकूमत बार-बार कहती है, तो फिर इस मामले पर खामोशी किसलिए? जब तक माकूल जवाब नहीं मिलता, तब तक यही नतीजा निकलता है कि हुकूमत-ए-पाकिस्तान नहीं जानती कि इन धमाकों के पीछे कौन है? या फिर वह सोचती है कि इन धमाकों के पीछे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का ही हाथ है, मगर वह बातचीत को रोकना नहीं चाहती। यह भी गौरतलब है कि टीटीपी किसी भी तरह की दहशतगर्दी की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने से इनकार नहीं करता, मगर इस बार उसने कहा कि इन धमाकों से उसका कोई वास्ता नहीं। इस सूरत में एक राय यह बनती है कि टीटीपी के अंदर ही कुछ ऐसे लोग हैं, जो नहीं चाहते कि हुकूमत के साथ किसी तरह का करार हो। लेकिन इस संगठन के वार्ताकार मौलाना समी-उल-हक कहते हैं कि हर कोई बातचीत के प्रति प्रतिबद्ध है। निस्संदेह, प्रशासनिक अमलों को अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है। उन्हें यह भी जानना चाहिए कि इन धमाकों के पीछे कौन है, क्योंकि इससे बातचीत की तकदीर जुड़ी हुई है।
पश्चिम एशिया नीति संबंधी मामलों पर काम करने वाले शबन सेंटर ने करीब पांच साल पहले प्रकाशित एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में कहा था कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले दुनिया का सबसे अधिक सक्रिय देश है। वहां सरकार से पोषित आतंकवाद से सिर्फ भारत जैसे कुछ पड़ोसी देशों को ही खतरा नहीं है, बल्कि अमेरिका भी उसके पालतू आतंकवादियों के सीधे निशाने पर है। संयुक्त राष्ट्र ने सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान से कहा है कि वह अपने यहां आतंकवाद को पनपने से रोकने में असफल साबित हो रहा है। उसका कहना है कि वह अफगानिस्तान सीमा पर सक्रिय तालिबान को भी नहीं रोक पा रहा है और शायद इसी दबाव में आकर नवाज सरकार ने तालिबान के खिलाफ सख्त कदम उठाने की तैयारी कर ली है, लेकिन असली सवाल है कि वह जिन आतंकवादियों को बढ़ावा दे रहा है और जो भारत में वांछित हैं, उनको शह देने की वजह क्या है।
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