माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ,भोपाल के जनसंचार विभाग के छात्रों द्वारा संचालित ब्लॉग ..ब्लाग पर व्यक्त विचार लेखकों के हैं। ब्लाग संचालकों की सहमति जरूरी नहीं। हम विचार स्वातंत्र्य का सम्मान करते हैं।
Saturday, June 23, 2012
जनजाति समाज का मूल्यबोध कायमः जुएल उरांव
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वेदों की संस्कृति को जीता है जनजाति समाजः नंदकुमार साय
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Monday, June 18, 2012
जनजातियों की उपेक्षा कर विश्वशक्ति कैसे बनेगा भारतः प्रो. कुठियाला
जनजातियों के सामने अस्मिता व पहचान के सवाल सबसे अहम
भोपाल,18 जून। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बृजकिशोर कुठियाला का कहना है कि देश की लगभग 10 करोड़ जनसंख्या वाला जनजातीय समाज भारत में स्वतंत्रता से पूर्व से उपेक्षित रहा है। परन्तु पिछले 65 वर्षों में भी इस समाज को मुख्यधारा से समरस करने में सफलता प्राप्त नहीं हुई है। वे यहां पत्रकारिता विश्वविद्यालय, वन्या,आदिम जाति अनुसंधान एवं विकास संस्थान और वन साहित्य अकादमी की ओर से “जनजाति समाज एवं जनसंचार माध्यमः प्रतिमा और वास्तविकता” विषय पर रवींद्र भवन में आयोजित तीन दिवसीय संगोष्ठी में अध्यक्ष की आसंदी से बोल रहे थे। इस आयोजन में 22 प्रांतों से आए जनजातीय समाज के लगभग 140 लोग सहभागी हैं तथा विविध विषयों पर संगोष्ठी में लगभग 105 शोध पत्र पढ़े जाएंगें। उन्होंने सवाल किया कि क्या भारत इस 10 प्रतिशत जनसंख्या की उपेक्षा करके विश्वशक्ति बन सकता है?
प्रो. कुठियाला ने कहा कि पूरी दुनिया को एक रंग में रंग देने की अधिनायकवादी मानसिकता रखने वाली विचारधारा ने ही यह स्थापित करने का प्रयास किया कि ‘धर्म’ वही है जो उनका ‘धर्म’ है। ‘विश्वास’ वही है जो उनका ‘विश्वास’ है। इसी अवधारणा से उन्होंने अपनी आस्था से पहले व्यापारिक शक्ति बढ़ाई फिर राजनीतिक और प्रशासनिक शक्ति हासिल की। यह एक ऐसा षडयंत्र था जिसका पर्दाफाश होना जरूरी है। हमें अपनी संस्कृति को देखने के लिए पश्चिम की आंखें नहीं चाहिए बल्कि अपनी आंखों से हमें अपने गौरवशाली इतिहास को देखना होगा। जनजातीय समाज की जैसी छवि पश्चिम के बुद्धिजीवियों द्वारा बनाई गयी वह एक विकृत छवि है। जबकि हमें जनजातियों से शेष समाज के रिश्तों को पुनः पारिभाषित करने की जरूरत है। जब संवाद बनेगा तो बहुत सारे संकट स्वतः हल होते नजर आएंगें। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज को लेकर मीडिया को एक अभियान चलाना चाहिए जिसमें जनजातीय समाज के प्रश्नों पर सार्थक संवाद हो सके और उनकी समस्याओं व विशेषताओं पर विमर्श हो। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारतीय समाज में जनजातीय समाज का बहुत आदर था, सहसंबंध थे, सुसंवाद था और वे शेष समाज से सदा समरस रहे हैं, लेकिन आधुनिक ज्ञान-विज्ञान व विदेशी विचारों ने हमें भटकाव भरे रास्ते पर डाल दिया है।
कार्यक्रम के मुख्यअतिथि लेखक एवं मुख्यमंत्रीःमप्र सरकार के विशेष सचिव मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि हमें यह याद करने की जरूरत है कि आजादी की पहली लड़ाईयां तो आदिवासी संतों ने लड़ीं। यह लड़ाईयां सही मायने में स्वाभिमान, पहचान, और आत्मछवि के लिए लड़ी गयीं। एक शांतिप्रिय समाज अपनी स्वायत्तता और पहचान के बचाए और बनाए रखने के लिए ही विद्रोह करता है। मिशनरियों द्वारा थोपे जा रहे विचारों के प्रतिरोध में ये सारे संधर्ष हुए। हम ध्यान से देखें तो पूरा उपनिवेशवाद मतांतरण की एक प्रक्रिया ही था जिसके नाते जगह-जगह आदिवासी संतों ने प्रतिरोध किया। क्योंकि उन्हें यह बताने की कोशिशें हो रहीं थीं कि तुम्हारा कोई धर्म नहीं है। भारत की विशेषता रही विविधताओं को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा किया गया और उनमें संघर्ष खड़ा करने की कोशिशें हुयीं। उनका कहना था कि हम संघर्ष के सबक व जरूरी पाठ भूल गए हैं। मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि आज की मीडिया कवरेज से जनजातियां बाहर हैं, अगर हैं तो उन्हें कौतुक व कौतुहल जगाने के लिए ही दिखाया व बताया जाता है। सही मायने में वे हमारी प्राथमिकताओं से भी बाहर हैं क्योंकि मीडिया एक ‘नया जनजातिवाद’ रच रहा है जिसमें वास्तविक आदिवासी लगभग निर्वासित हो चुके हैं।
कार्यक्रम के मुख्यवक्ता वनवासी कल्याण आश्रम के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदेव राम उरांव
ने कहा कि पुराने संदर्भों के आधार पर धारणाएं बनी हैं। भारतीय समाज आपस में जुड़ा हुआ है, उसकी एकांतिक पहचान नहीं बन सकती। संवाद व सहकार की धाराएं आपस में बनी हुयी हैं। जड़ों से कटना कठिन है। यही अस्मिताबोध है। बांटने की कोशिशों के खिलाफ खड़ा होना होगा। मुक्तिवादी चिंतन ठीक नहीं है, हम कहां-कहां तक मुक्त होंगें। उनका कहना था विविधताएं ही हमारी संस्कृति का आकर्षण हैं, इसे अलगाव मानना भारी भूल है।
कार्यक्रम का विषय प्रवर्तन करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता विष्णुकांत ने कहा कि जनजातियों की स्थापित छवि को बदलने की जरूरत है। मीडिया को उनकी वास्तविक छवि और समस्याओं को उठाना चाहिए। छवि निर्माण क्योंकि मीडिया का काम है इसलिए उसे जनजातियों की श्रेष्ठ परंपराओं, प्रकृति-पर्यावरण के साथ उनके रिश्तों को बताना चाहिए। जनजातियों को लेकर पुर्नलेखन,पुर्नव्याख्या, पुर्नमूल्यांकन की जरूरत है जो जनजातीय समाज के लोगों के साथ मिलकर होना चाहिए। हमें ध्यान देना होगा कि आज जनजातियों के सामने उनकी अस्मिता व पहचान के सवाल ही महत्वपूर्ण हैं।
संचालन प्रो.रामदेव भारद्वाज ने किया तथा आभार दीपक शर्मा ने व्यक्त किया। कार्यक्रम के आरंभ में श्रीराम तिवारी,लक्ष्मीनारायण पयोधि ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम में हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल न्यायमूर्ति विष्णु सदाशिव कोकजे, अनुसूचित जाति एवं अनूसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष दिलीप सिंह भूरिया, मप्र भाजपा के पूर्व अध्यक्ष एवं राज्यसभा के सदस्य नंदकुमार साय, विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी की उपाध्यक्ष निवेदिता भिड़े, पत्रकार जगदीश उपासने, राजकुमार भारद्वाज सहित अनेक प्रमुख लोग सहभागी हैं। आयोजन का समापन 20 जून को दोपहर 2.30 बजे होगा। समापन समारोह के मुख्यअतिथि प्रदेश के उच्चशिक्षा एवं जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा होंगें तथा मुख्यवक्ता के रूप में पूर्व केंद्रीय मंत्री जुएल उरांव उपस्थित रहेंगें।
Thursday, June 7, 2012
“वो जो बाजार के खिलाड़ी हैं तेरा हर ख्वाब बेच डालेंगें”
पत्रकारिता विश्वविद्यालय में गूंजी तहसीन मुनव्वर की शायरी
भोपाल, 7 जून।
देश के जाने माने शायर, वरिष्ठ पत्रकार एवं एंकर तहसीन मुनव्वर गुरूवार को माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सुने गए। इस अवसर पर कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने तहसीन मुनव्वर को शाल-श्रीफल देकर उनका सम्मान भी किया। अपने अंदाजे बयां, शेरो-शायरी और गजलों से तहसीन ने ऐसा समां बांधा कि लोग वाह- वाह कर उठे। तहसीन मुनव्वर ने वर्तमान समय पर कुछ इस तरह टिप्पणी की-
वो जो बाजार के खिलाड़ी हैं
तेरा हर ख्वाब बेच डालेंगें।
उन्होंने एक अन्य टिप्पणी इस तरह की-
ये किसने आग सी भर दी है मेरे सीने में
मैं कुछ भी लिखता हूं तहरीर जलने लगती है।
अपनी रचना प्रक्रिया और लेखन के प्रति अपने नजरिये को जाहिर करते हुए उन्होंने पढ़ा-
लोग तो सेब से गालों पे गजल लिखते हैं
और हम सूखे निवालों पे गजल कहते हैं।
इस अवसर पर उन्होंने युवा मन के प्रेम, मां, कृष्ण, देशभक्ति पर भी रोचक पंक्तियां पढ़कर श्रोताओं की दाद ली। अखबार और समाज से उसके रिश्तों पर उन्होंने कहा-
अब क्या खबरें रोकेगा
अब खुद ही अखबार हैं लोग।
इस अवसर साहित्यकार डा. विजयबहादुर सिंह ने तहसीन की रचना प्रक्रिया पर टिप्पणी करते हुए कहा कि कोई भी शायर जाति, मजहब या किसी भी राजनीति से प्रेरित हो वह हमेशा मनुष्यता की बात करता है। उसकी शायरी लोगों के दर्द और इंसानियत के साथ खड़ी मिलती है। उनका कहना था आज संघर्ष आदमियत और राजनीति के बीच में है, जहां तहसीन की शायरी आम आदमी के साथ खडी दिखती है। उनकी शायरी में सादगी और गहराई है जो आदमी को आदमी के करीब लाती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बृजकिशोर कुठियाला ने की। आयोजन में मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के रीडर एहतेशाम अहमद, भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व रजिस्ट्रार जेड् यू हक, वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा, रामभुवन सिंह कुशवाह, सुरेश शर्मा, डा. महेश परिमल, अजय त्रिपाठी, मनोज कुमार, अक्षत शर्मा, विजयमनोहर तिवारी, डा. मेहताब आलम, वेदव्रत गिरी, अजीत सिंह, राजू कुमार, अतुल पाठक, कला समीक्षक विनय उपाध्याय, सीके सरदाना, प्रकाश साकल्ले, जीके छिब्बर सहित पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्राध्यापक एवं विद्यार्थी मौजूद थे। अतिथियों का स्वागत रजिस्ट्रार डा. चंदर सोनाने ने किया। संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया।
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