Monday, August 24, 2009

पत्रकारिता की कक्षा से

शिशिर सिंह जनसंचार सेमेस्टर-I

पत्रकारिता की कक्षाओं को शुरु हुए एक महीने हो चुका है। पत्रकारिता की कक्षाओं में एक बहुत ही सामान्य प्रश्न पूछा जाता है कि आप ने पत्रकारिता को क्यों चुना? यह प्रश्न दिखने में जितना सहज और सरल दिखता है इसका उत्तर देना उतना ही कठिन है खासकर विकासशील पत्रकारों के लिए। विकासशील पत्रकार, पत्रकारों की वह प्रजाति है जो आने वाले समय के लिए तैयार की जाती है। एक तो यह प्रश्न इसलिए भी कठिन है क्योंकि हमारे दिमाग अभी इतने विकसित नही हुए हैं कि हम इनके साथ किए जाने वाले तर्कों (कभी-कभी कुतर्कों) के भी उत्तर दे पायें। उदाहरण के लिए अगर हमारे किसी साथी ने कहा कि वह इस क्षेत्र में इसलिए आया क्योंकि वह औरों से कुछ हटकर काम करना चाहता था तो उससे यह पूछा जाता है कि तुम सेना में क्यों नहीं गए?

समाज सेवा कहता है तो उसे फिर यह पूछा जाता है कि तुमने एनजीओ क्यों नहीं ज्वांइन किया आदि-आदि। इस तरह के सवाल जबाबों और तर्कों कि सूची काफी लम्बी है।

यह देखने में आता है कि पत्रकारिता में आने वाले अधिकतर छात्रों की प्रथम वरीयता पत्रकारिता नहीं रहती।

सच्चाई की बात की जाए तो पत्रकारिता विशेषकर हिंदी पत्रकारिता अभी भी उस धब्बे से पूरी तरह मुक्त नहीं हुई है जिसके बारे में कहा जाता है कि कोई व्यक्ति अगर कोई काम नहीं कर सकता तो उसके लिए पत्रकारिता ही उपयुक्त है। बस समय के साथ थोड़े कारण बदल गए हैं। जिन्हें कुछ करने को नहीं मिला वह या जिन्हें अपने भविष्य के बारे में कुछ समझ नहीं आया उन्होंने पत्रकारिता का कोर्स कर लिया।

भारतीय जनसंचार संस्थान में पढ़ने वाले मेरे एक साथी ने बताया कि संस्थान में आने वाले अधिकतरह छात्रों का ध्येय पत्रकारिता में आना नहीं बल्कि मात्र उसकी डिग्री हासिल करनी है। इनमें से अधिकतर वह छात्र रहते हैं जो पीसीएस या अन्य किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते हैं। कहने का सार यह है कि पत्रकरिता के स्तरीय संस्थानों को इस की तरफ ध्यान देना चाहिए कि वह संस्थानों में आने वाले छात्रों की योग्यता के साथ-साथ उनकी जर्नलस्टिक अप्रोच भी जांचे ताकि बेहतर पत्रकार सामने आये।


कुछ हल्का फुल्का....

पत्रकारिता के नए छात्रों के लिए एक नए गाने की कुछ लाइनें जो उम्मीद है कि हम पर आने वाले समय में सटीक बैठें ...

“रास्ते वहीं राही नये, रातें वहीं सपने नए, जो चल पड़े चलते गए यारों छू लेंगे हम आसमां”

Wednesday, August 19, 2009

आजाद अभिव्यक्ति का माध्यम है ब्लागः रतलामी


ब्लाग की दसवीं सालगिरह पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग में एक समारोह का आयोजन किया गया। इस मौके पर प्रख्यात ब्लागर रवि रतलामी के मुख्यआतिथ्य़ में केक काटकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री रतलामी ने कहा कि ब्लाग आजाद अभिव्यक्ति का एक ऐसा माध्यम है। ब्लागर इसके जरिए न सिर्फ अपनी बात कह सकते हैं वरन इसे पूर्णकालिक रोजगार के रूप में भी अपना सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह ऐसा माध्यम है जिसके मालिक आप खुद हैं और इससे आप अपनी बात को न सिर्फ लोगों तक पहुंचा सकते हैं वरन त्वरित फीडबैक भी पा सकते हैं।

समारोह के अध्यक्ष पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष पुष्पेंद्रपाल सिंह ने कहा कि आज भले ही इस माध्यम में कई कमजोरियां नजर आ रही हैं पर समय के साथ यह अभिव्यक्ति के गंभीर माध्यम में बदल जाएगा। कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया। संचालन कृष्णकुमार तिवारी ने तथा आभार प्रदर्शन देवाशीष मिश्रा ने किया। इस मौके पर प्रवक्ता मोनिका वर्मा, शलभ श्रीवास्तव एवं विभाग के छात्र- छात्राएं मौजूद थे।

मूल्यहीनता का सबसे बेहतर समय

-संजय द्विवेदी
आज का समय बीती हुई तमाम सदियों के सबसे कठिन समय में से है। जहाँ मनुष्य की सनातन परंपराएँ, उसके मूल्य और उसका अपना जीवन ऐसे संघर्षों के बीच घिरा है, जहाँ से निकल पाने की कोई राह आसान नहीं दिखती। भारत जैसे बेहद परंपरावादी, सांस्कृतिक वैभव से भरे-पूरे और जीवंत समाज के सामने भी आज का यह समय बहत कठिन चुनौतियों के साथ खड़ा है। आज के समय में शत्रु और मित्र पकड़ में नहीं आते। बहुत चमकती हुई चीज़े सिर्फ धोखा साबित होती हैं। बाजार और उसके उपादानों ने मनुष्य के शाश्वत विवेक का अपहरण कर लिया है। जीवन कभी जो बहुत सहज हुआ करता था, आज के समय में अगर बहुत जटिल नज़र आ रहा है, तो इसके पीछे आज के युग का बदला हुआ दर्शन है।

भारतीय परंपराएं आज के समय में बेहद सकुचाई हुई सी नज़र आती हैं। हमारी उज्ज्वल परंपरा, जीवन मूल्य, विविध विषयों पर लिखा गया बेहद श्रेष्ठ साहित्य, आदर्श, सब कुछ होने के बावजूद हम अपने आपको कहीं न कहीं कमजोर पाते हैं। यह समय हमारी आत्मविश्वासहीनता का भी समय है। इस समय ने हमे प्रगति के अनेक अवसर दिए हैं, अनेक ग्रहों को नापतीं मनुष्य की आकांक्षाएं चाँद पर घर बक्सा, विशाल होते भवन, कारों के नए माडल, ये सारी चीज़े भी हमे कोई ताकत नहीं दे पातीं। विकास के पथ पर दौड़ती नई पीढ़ी जैसे जड़ों से उखड़ती जा रही है। इक्कीसवीं सदी में घुस आई यह जमात जल्दी और ज़्यादा पाना चाहती है और इसके लिए उसे किसी भी मूल्य को शीर्षासन कराना पड़े, तो कोई हिचक नहीं । यह समय इसीलिए मूल्यहीनता के सबसे बेहतर समय के लिए जाना जाएगा । यह समय सपनों के टूटने और बिखरने का भी समय है। यह समय उन सपनों के गढऩे का समय है, जो सपने पूरे तो होते हैं, लेकिन उसके पीछ तमाम लोगों के सपने दफ़्न हो जाते हैं। ये समय सेज का समय है, निवेश का समय है, लोगों को उनके गाँवों, जंगलों, घरों और पहाड़ों से भगाने का समय है। ये भागे हुए लोग शहर आकर नौकर बन जाते हैं। इनकी अपनी दुनिया जहाँ ये ‘मालिक’ की तरह रहते थे, आज के समय को रास नहीं आती। ये समय उजड़ते लोगों का समय है। गाँव के गाँव लुप्त हो जाने का समय है। ये समय ऐसा समय है, जिसने बांधों के बनते समय हजारों गाँवों को डूब में जाते हुए देखा है। यह समय ‘हरसूद’ को रचने का समय है । खाली होते गाँव,ठूँठ होते पेड़, उदास होती चिड़िया, पालीथिन के ग्रास खाती गाय, फार्म हाउस में बदलते खेत, बिकती हुई नदी, धुँआ उगलती चिमनियाँ, काला होता धान ये कुछ ऐसे प्रतीक हैं, जो हमे इसी समय ने दिए हैं। यह समय इसीलिए बहुत बर्बर हैं। बहुत निर्मम और कई अर्थों में बहुत असभ्य भी।

यह समय आँसुओं के सूख जाने का समय है । यह समय पड़ोसी से रूठ जाने का समय है। यह समय परमाणु बम बनाने का समय है। यह समय हिरोशिमा और नागासाकी रचने का समय है। यह समय गांधी को भूल जाने का समय है। यह समय राम को भूल जाने का समय है। यह समय रामसेतु को तोड़ने का समय है। उन प्रतीकों से मुँह मोड़ लेने का समय है, जो हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं। यह जड़ों से उखड़े लोग का समय है और हमारे परोकारों को भोथरा बना देने का समय है। यह समय प्रेमपत्र लिखने का नहीं, चैटिंग करने का समय है। इस समय ने हमें प्रेम के पाठ नहीं, वेलेंटाइन के मंत्र दिए हैं। यह समय मेगा मॉल्स में अपनी गाढ़ी कमाई को फूँक देने का समय है। यह समय पीकर परमहंस होने का समय है।

इस समय ने हमें ऐसे युवा के दर्शन कराए हैं, जो बदहवास है। वह एक ऐसी दौड़ में है, जिसकी कोई मंज़िल नहीं है। उसकी प्रेरणा और आदर्श बदल गए हैं। नए ज़माने के धनपतियों और धनकुबेरों ने यह जगह ले ली है। शिकागों के विवेकानंद, दक्षिम अफ्रीका के महात्मा गांधी अब उनकी प्रेरणा नहीं रहे। उनकी जगह बिल गेट्स, लक्ष्मीनिवास मित्तल और अनिक अंबानी ने ले ली है। समय ने अपने नायकों को कभी इतना बेबस नहीं देखा। नायक प्रेरणा भरते थे और ज़माना उनके पीछे चलता था। आज का समय नायकविहीनता का समय है। डिस्कों थेक, पब, साइबर कैफ़े में मौजूद नौजवानी के लक्ष्य पकड़ में नहीं आते । उनकी दिशा भी पहचानी नहीं जाती । यह रास्ता आज के समय से और बदतर समय की तरफ जाता है। बेहतर करने की आकांक्षाएं इस चमकीली दुनिया में दम तोड़ देती हैं। ‘हर चमकती चीज़ सोना नहीं’ होती लेकिन दौड़ इस चमकीली चीज़ तक पहुँचने की है। आज की शिक्षा ने नई पीढ़ी को सरोकार, संस्कार और समय किसी की समझ नहीं दी है। यह शिक्षा मूल्यहीनता को बढ़ाने वाली साबित हुई है। अपनी चीज़ों को कमतर कर देखना और बाहर सुखों की तलाश करना इस समय को और विकृत करता है। परिवार और उसके दायित्व से टूटता सरोकार भी आज के ही समय का मूल्य है। सामूहिक परिवारों की ध्वस्त होती अवधारणा, फ्लैट्स में सिकुड़ते परिवार, प्यार को तरसते बच्चे, अनाथ माता-पिता, नौकरों, बाइयों और ड्राइवरों के सहारे जवान होती नई पीढ़ी । यह समय बिखरते परिवारों का भी समय है। इस समय ने अपनी नई पीढ़ी को अकेला होते और बुजुर्गों को अकेला करते भी देखा। यह ऐसा जादूगर समय है, जो सबको अकेला करता है। यह समय पड़ोसियों से मुँह मोड़ने, परिवार से रिश्ते तोड़ने और ‘साइबर फ्रेंड’ बनाने का समय है। यह समय व्यक्ति को समाज से तोड़ने, सरोकारों से अलग करने और ‘विश्व मानव’ बनाने का समय है।

यह समय भाषाओं और बोलियों की मृत्यु का समय है। दुनिया को एक रंग में रंग देने का समय है। यह समय अपनी भाषा को अँग्रेज़ी में बोलने का समय है। यह समय पिताओं से मुक्ति का समय है। यह समय माताओं से मुक्ति का समय है। इस समय ने हजारों हजार शब्द, हजारों हजार बोलियाँ निगल जाने की ठानी है। यह समय भाषाओं को एक भाषा में मिला देने का समय है। यह समय चमकीले विज्ञापनों का समय है। इस समय ने हमारे साहित्य को, हमारी कविताओं को, हमारे धार्मिक ग्रंथों को पुस्तकालयों में अकेला छोड़ दिया है, जहाँ ये किताबें अपने पाठकों के इंतजार में समय को कोस रही हैं। इस समय ने साहित्य की चर्चा को, रंगमंच के नाद को, संगीत की सरसता को, धर्म की सहिष्णुता को निगल लेने की ठानी है। यह समय शायद इसलिए भी अब तक देखे गए सभी समयों में सबसे कठिन है, क्योंकि शब्द किसी भी दौर में इतने बेचारे नहीं हुए नहीं थे। शब्द की हत्या इस समय का एक सबसे बड़ा सच है। यह समय शब्द को सत्ता की हिंसा से बचाने का भी समय है। यहि शब्द नहीं बचेंगे, तो मनुष्य की मुक्ति कैसे होगी ? उसका आर्तनाद, उसकी संवेदनाएं, उसका विलाप, उसका संघर्ष उसका दैन्य, उसके जीवन की विद्रूपदाएं, उसकी खुशियाँ, उसकी हँसी उसका गान, उसका सौंदर्यबोध कौन व्यक्त करेगा। शायद इसीलिए हमें इस समय की चुनौती को स्वीकारना होगा। यह समय हमारी मनुष्यता को पराजित करने के लिए आया है। हर दौर में हर समय से मनुष्यता को पराजित करने के लिए आया है। हर दौर में हर समय से मनुष्यता जीतती आई है। हर समय ने अपने नायक तलाशे हैं और उन नायकों ने हमारी मानवता को मुक्ति दिलाई है। यह समय भी अपने नायक से पराजित होगा। यह समय भी मनुष्य की मुक्ति में अवरोधक नहीं बन सकता। हमारे आसपास खड़े बौने, आदमकद की तलाश को रोक नहीं सकते। वह आदमकद कौन होगा वह विचार भी हो सकता है और विचारों का अनुगामी कोई व्यक्ति भी। कोई भी समाज अपने समय के सवालों से मुठभेड़ करता हुआ ही आगे बढ़ता है। सवालों से मुँह चुराने वाला समाज कभी भी मुक्तिकामी नहीं हो सकता। यह समय हमें चुनौती दे रहा है कि हम अपनी जड़ों पर खड़े होकर एक बार फिर भारत को विश्वगुरू बनाने का स्वप्न देखें। हमारे युवा एक बार फिर विवेकानंद के संकल्पों को साध लेने की हिम्मत जुटाएं। भारतीयता के पास आज भी आज के समय के सभी सवालों का जवाब है। हम इस कठिन सदी के, कठिन समय की हर पीड़ा का समाधान पा सकते हैं। हम इस कठिन सदी के, कठिन समय की हर पीड़ा का समाधान पा सकते हैं, बशर्तें आत्मविश्वास से भरकर हमें उन बीते हुए समयों की तरफ देखना होगा जब भारतीयता ने पूरे विश्व को अपने दर्शन से एक नई चेतना दी थी। वह चेतना भारतीय जीवन मूल्यों के आधार पर एक नया समाज गढ़ने की चेतना है । वह भारतीय मनीषा के महान चिंतकों, संतों और साधकों के जीवन का निकष है। वह चेतना हर समय में मनुष्य को जीवंत रखने, हौसला न हारने, नए-नए अवसरों को प्राप्त करने, आधुनिकता के साथ परंपरा के तालमेल की एक ऐसी विधा है, जिसके आधार पर हम अपने देश का भविष्य गढ़ सकते हैं।

आज का विश्वग्राम, भारतीय परंपरा के वसुधैव कुटुंबकम् का विकल्प नहीं है। आज का विश्वग्राम पूरे विश्व को एक बाजार में बदलने की पूँजीवादी कवायद है, तो ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का मंत्र पूरे विश्व को एक परिवार मानने की भारतीय मनीषा की उपज है। दोनों के लक्ष्य और संधान अलग-अलग हैं। भारतीय मनीषा हमारे समय को सहज बनाकर हमारी जीवनशैली को सहज बनाते हुए मुक्ति के लिए प्रेरित करती है, जबकि पाश्चात्य की चेतना मनुष्य को देने की बजाय उलझाती ज़्यादा है। ‘देह और भोग’ के सिद्धांतों पर चलकर मुक्ति की तलाश भी बेमानी है। भारतीय चेतना में मनुष्य अपने समय से संवाद करता हुआ आने वाले समय को बेहतर बनाने की चेष्टा करता है। वह पीढ़ियों का चिंतन करता है, आने वाले समय को बेहतर बनाने के लिए सचेतन प्रयास करता है। जबकि बाजार का चिंतन सिर्फ आज का विचार करता है। इसके चलते आने वाला समय बेहद कठिन और दुरूह नज़र आने लगता है। कोई भी समाज अपने समय के सरोकारों के साथ ही जीवंत होता है। भारतीय मनीषा इसी चेतना का नाम है, जो हमें अपने समाज से सरोकारी बनाते हुए हमारे समय को सहज बनाती है। क्या आप और हम इसके लिए तैयार हैं ?

अध्य़क्षः जनसंचार विभाग माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, प्रेस काम्पलेक्स, एमपी नगर, भोपाल (मप्र)
मोबाइलः 098935-98888 e-mail- 123dwivedi@gmail.com

Monday, August 17, 2009

दुर्गानाथ बने योजना के संपादक


दिल्ली। एनडीटीवी के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय सूचना सेवा से बतौर सीनियर ग्रेड गज़ेटेड ऑफिसर जुड़े दुर्गानाथ स्वर्णकार को अब पहली नियुक्ति मिल गई है। उन्हें प्रकाशन विभाग की ओर से प्रकाशित योजना आयोग की अग्रणी पत्रिका 'योजना (हिंदी)' के संपादक पद का दायित्व सौंपा गया है। योजना (हिंदी) पत्रिका के वरिष्ठ संपादक और साहित्यकार राकेश रेणु हैं और संपादक रेमी कुमारी हैं। दुर्गानाथ भी अब संपादक के रूप में इस पत्रिका के हिस्से हो गए हैं।
देश के विकास कार्यक्रमों और सरकार की नीतियों पर आधारित यह सामयिक पत्रिका प्रतियोगी परीक्षाओं खासकर केंद्रीय और राज्य प्रशासनिक सेवाओं के लिये अनिवार्य विषय सामग्री के तौर पर प्रतिष्ठित है। पत्रिका का कार्यालय संसद मार्ग स्थित योजना भवन में है। दुर्गानाथ फरवरी में घोषित संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के आईआईएस (ग्रुप-बी) परीक्षा के नतीजों में शीर्ष स्थान पर रहे। भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के छात्र रहे दुर्गानाथ इससे पहले एनडीटीवी में इनपुट एडीटर थे। अपने नौ साल के करियर में वे ज़ी न्यूज़, सहारा समय और दैनिक जागरण में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।

31 खबरिया चैनलों को अनुमति मिलने का इंतज़ार


अनिल अंबानी सबसे अधिक चैनलों के मालिक होंगे
मुंबई। आने वाले समय में अनिल अंबानी की बिग इंटरटेनमेंट देश में सबसे अधिक चैनलों के स्वामित्व वाली सबसे बड़ी मीडिया कंपनी हो जायेगी. भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बिग इंटरटेनमेंट को अभी 18 चैनलों के लिए अनुमति दी है. ये चैनल हिंदी, अंग्रेजी, मराठी और पंजाबी भाषाओँ के क्षेत्रीय चैनल हैं. इनमें से सिर्फ एक चैनल न्यूज़ का है जिसका नाम बिग 365 है. सभी चैनलों को बिग ब्रांड के बैनर तले शुरू किया जायेगा. लेकिन 31 ऐसे चैनल हैं जिन्हें अनुमति मिलना अभी बाकी है. खास बात है कि ये सभी समाचार चैनल हैं. अनुमति मिलने के बाद सभी समाचार चैनलों को बिग न्यूज़ ब्रांड के तले लाया जायेगा. यह सभी चैनल अलग - अलग क्षेत्रों के लिए होगा. सूत्रों के अनुसार कुछ चैनलों के नाम इस तरह से हो सकते हैं : बिग न्यूज़ सोशल इश्यू, बिग न्यूज़ रुरल, बिग न्यूज़ क्राईम, बिग न्यूज़ हिंदी, बिग न्यूज़ इंग्लिश, बिग न्यूज़ भोजपुरी, बिग न्यूज़ बिजनेस - हिंदी, बिग न्यूज़ बिजनेस - इंग्लिश।
( मीडिया खबर डाट काम से साभार)

मंजरी को सम्मान

नवभारत टाइम्स, दिल्ली के सप्लीमेंट हेलो दिल्ली की एडिटर मंजरी चतुर्वेदी को 'शांताबाई परांजपे पुरस्कार' के लिए चुना गया है। यह पुरस्कार 'राष्ट्रीय पत्रकारिता कल्याण न्यास' की तरफ से दिया जाता है। न्यास हर साल पत्रकारिता क्षेत्र में कई पुरस्कार प्रदान करता है। वर्ष 2009 के वार्षिक पुरस्कारों का ऐलान किया जा चुका है। एक कन्नड़ अखबार के संपादक डीजी लक्ष्मणन को 'एनबी लेले पुरस्कार' से सम्मानित किया जाएगा। यह पुरस्कार पिछले साल 'रांची एक्सप्रेस' के संपादक बलबीर दत्त को दिया गया था। फोटोग्राफी के लिए इस साल का 'दादा साहेब आप्टे पुरस्कार' बिजनेस इंडिया के फोटोग्राफर जाधव को दिया जाएगा।
न्यास द्वारा स्थापित 'शांताबाई परांजपे पुरस्कार' के लिए नवभारत टाइम्स, दिल्ली में कार्यरत मंजरी चतुर्वेदी का चयन किया गया है। मंजरी ने पत्रकारिता की शुरुआत 1989 में टाइम्स ग्रुप की 'वामा' पत्रिका से की। मंजरी ने अभी हाल में ही अंग्रेजी की बेस्ट सेलर किताब `When You Are Sinking Become a Submarine' का हिंदी अनुवाद किया। मंजरी मलेशिया, चीन, जापान, सीरिया कई देशों की यात्राएं कर चुकी हैं।

सबसे आगे हैं हिंदी के अखबार


दिल्ली। देश के शीर्ष दस अखबारों के पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर पर हिन्दी के अखबार हैं. इंडियन रीडरशिप सर्वे के अनुसार देश के दस बड़े अखबारों में पांच हिन्दी भाषा के अखबार हैं जिसमें दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, अमर उजाला, हिन्दुस्तान और राजस्थान पत्रिका शामिल है. हालांकि आईआरएस के आंकड़े बताते हैं कि हिन्दुस्तान और राजस्थान पत्रिका को छोड़कर शीर्ष के सभी अखबारों के पाठकों की संख्या में कमी आयी है. आश्चर्यजनक रूप से देश के शीर्ष दस अखबारों में अंग्रेजी का एक भी अखबार अभी भी अपनी जगह नहीं बना पाया है.

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इंडियन रीडरशिप सर्वे के पहले दौर के सर्वे का डाटा रिलीज हो गया है. पहले दौर के सर्वे के बाद जो आंकड़े निकलकर सामने आये हैं उसमें दैनिक जागरण लगातार पहले स्थान पर बना हुआ है. हिन्दी के अखबार दैनिक जागरण की कुल पाठक संख्या 5.45 करोड़ बतायी गयी है. हालांकि पिछले साल आईआरएस (इंडियन रीडरशिप सर्वे) के मुकाबले दैनिक जागरण के पाठकों की संख्या में 21 लाख की गिरावट आयी है फिर भी वह देश का नंबर अखबार बना हुआ है.
दूसरे नंबर है दैनिक भास्कर. दैनिक भास्कर की पाठक संख्या में भी 2.8 लाख की गिरावट दर्ज हुई है लेकिन 3.19 करोड़ पाठकों के साथ वह देश का दूसरा सबसे बड़ा अखबार बना हुआ है. दैनिक भास्कर डीबी कार्प का उद्यम है.
तीसरे नंबर पर भी हिन्दी का एक और अखबार है - अमर उजाला. आईआरएस के पहले राउण्ड के आंकड़ें बताते हैं कि अमर उजाला के पाठकों की संख्या में भी 7 लाख की कमी आयी है. आईआरएस के पहले राउण्ड में अमर उजाला के पाठकों की संख्या 2.87 करोड़ बतायी गयी है.जबकि इसी कालावधि में पिछले साल जारी आंकड़ों के हिसाब से अमर उजाला के पास 2.94 करोड़ पाठक थे.
इंडियन रीडरशिप सर्वे-2009
चौथे नंबर पर भी हिन्दी का ही एक और अखबार दैनिक हिन्दुस्तान है. हिन्दुस्तान हिन्दुस्तान टाईम्स समूह का अखबार है. हिन्दुस्तान हिन्दी का अकेला ऐसा अखबार है जिसके पाठकों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी जारी है. आईआरएस - 2009 के पहले दौर में जब सभी अखबारों के पाठकों की संख्या में कमी आ रही है तब भी हिन्दुस्तान ने बढ़त जारी रखी है. आईआरएस के आंकड़े बताते हैं कि ताजा दौर के सर्वे में हिन्दुस्तान के पाठकों की संख्या में 1.36 लाख की बढ़ोत्तरी हुई है और उसकी कुल पाठक संख्या 2.67 करोड़ पहुंच गयी है.
पांचवे नंबर पर आश्चर्यनजक रूप से एक मराठी दैनिक ने अपना दावा ठोंक दिया है. डेली थंती को छठे नंबर पर धकेलते हुए पांचवे स्थान पर मराठी दैनिक लोकमत काबिज हो गया है. लोकमत के पाठकों की संख्या में 7.19 लाख की बढ़ोत्तरी हुई है और उसके कुल पाठकों की संख्या 2.06 करोड़ पहुंच गयी है. मराठी दैनिक लोकमत पहले भी पांचवे स्थान पर रह चुका है.
देश के लगभग सभी बड़े अखबार के पाठकों की संख्या में गिरावट दर्ज हो रही है
अंग्रेजी का सबसे बड़ा अखबार देश के शीर्ष दस अखबारों में शामिल नहीं है
हिन्दुस्तान टाईम्स समूह का अखबार हिन्दुस्तान अकेला अखबार जिसके पाठकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है
राजस्थान पत्रिका के पाठकों की संख्या में भी आंशिक बढ़ोत्तरी
तमिल दैनिक डेली थंथी को लगातार दूसरी बार नुकसान
जबकि पांचवे नंबर से खिसकर छठे नंबर पर पहुंचे तमिल अखबार डेली थंथी के पाठकों की संख्या 2.04 करोड़ पर पहुंच गयी है. उसके पाठकों की संख्या में 1.19 करोड़ की कमी आयी है. पिछले लगातार तीन दौर के सर्वे में डेली थंथी को पाठकों की संख्या का नुकसान उठाना पड़ा है. और उसके पाठकों की संख्या 2.08 करोड़ से गिरकर 2.04 करोड़ पर आ गयी है.
सातवें नंबर भी एक तमिल दैनिक दिनकरन है. दिनकरण के पाठकों की संख्या में भी 1.92 करोड़ का नुकसान हुआ है और उसके कुल पाठकों की संख्या ताजा सर्वे के अनुसार 1.7 करोड़ से घटकर 1.68 करोड़ हो गयी है.
आठवें स्थान पर पश्चिम बंगाल का बांग्ला दैनिक आनंद बाजार पत्रिका है. आनंद बाजार पत्रिका के पाठकों की संख्या 1.55 करोड़ है. ताजा दौर के सर्वे बताते हैं कि आनंद बाजार पत्रिका को भी 1.76 लाख पाठकों का नुकसान हुआ है.
नौंवे स्थान पर हिन्दी अखबार राजस्थान पत्रिका है. राजस्थान पत्रिका के कुल 1.4 करोड़ पाठक हैं. अन्य अखबारों की तुलना में राजस्थान पत्रिका के पाठकों की संख्या में 52,000 की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है, जबकि इसके पहले के दौर के सर्वे में राजस्थान पत्रिका को 3.42 लाख पाठकों का नुकसान हुआ था. पिछले दौर के आईआरएस सर्वे में राजस्थान पत्रिका ईनाडु से पीछे था. इस दौर के सर्वे में वह ईनाडु को पीछे धकेल नौवें नंबर पर आ गया है.
तमिल दैनिक इनाडु दसवें नंबर पर है. ईनाडु के पाठकों की संख्या 1.39 करोड़ है. उसे 4.2 लाख पाठकों का नुकसान हुआ है. यह दूसरा दौर है जब लगातार ईनाडु के पाठकों में कमी आ रही है. पिछले दो दौर के सर्वे में ईनाडु को लगभग 7 लाख पाठकों का नुकसान हुआ है.
अंग्रेजी के शीर्ष दस
भारत के शीर्ष दस अखबारों में अंग्रेजी का एक भी अखबार शामिल नहीं है. अंग्रेजी के सबसे बड़े अखबार टाईम्स आफ इंडिया के पाठकों की संख्या 1.33 करोड़ है, जबकि दूसरे नंबर के अंग्रेजी के सबसे बड़े अखबार हिन्दुस्तान टाईम्स के पाठकों की संख्या 63.4 लाख है. हिन्दू तीसरे नंबर पर है और उसके पाठकों की संख्या 53.73 लाख है. 28.18 लाख पाठकों के साथ द टेलीग्राफ चौथे नंबर पर है. 27.68 लाख पाठकों के साथ डेक्कन क्रानिकल पांचवे नंबर पर है. छठे नंबर पर टाईम्स समूह के व्यावसायिक अखबार द इकोनामिक टाईम्स को जगह मिली है. उसके कुल पाठकों की संख्या 19.17 लाख है. मुंबई से निकलनेवाला टैबलाइड मिड डे सातवें नंबर पर है. मिड-डे के पाठकों की संख्या 15.83 लाख है. आठवें नंबर पर द न्यू इंडियन एक्सप्रेस है जिसके पाठकों की संख्या 15.66 लाख है. मुंबई मिरर के पाठकों की संख्या 15.57 लाख है और वह नौवें नंबर पर है जबकि दसवें नंबर पर डीएनए है और उसके पाठकों की कुल संख्या 14.89 लाख है.

पत्रकारिता एक धंधा हो गयी हैः कुलदीप नैयर


वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर का कहना है कि पत्रकारिता एक धंधा हो गयी है और पत्रकार इस धंधे के दलाल की तरह काम कर रहे हैं. नैयर ने वर्तमान संदर्भों का हवाला देते हुए कहा कि पत्रकारिता एक वैश्यावृत्ति की तरह नजर आ रही है.


तिरुअनन्तपुरम में द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के दिवंगत पत्रकार एन नरेन्द्रन की स्मृति में स्थानीय प्रेस क्लब में आयोजित आठवें मेमोरियल लेक्चर में बोलते हुए कुलदीप नैयर ने कहा कि हाल में ही संपन्न लोकसभा चुनावों के दौरान बहुत सारे अखबारों और टीवी चैनलों ने खुलेआम बड़ी पार्टियों से पैकेज का खेल किया और खबरों के साथ खिलवाड़ किया. उन्होंने इस पत्रकारिता पर दुख जताते हुए कहा कि पैसे लेकर पत्रकार जनता को गुमराह कर रहे हैं. हालांकि उन्होंने इस बात पर संतोष जताया कि प्रेस काउंसिल आफ इंडिया इस पूरे मसले पर कार्रवाई करने के लिए तैयार हो गयी है. हाल में ही प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष जीएन रे ने दिल्ली में कहा था कि वे चुनाव में पैसा लेकर खबर छापनेवाले मामलों की जांच कर रहे हैं और साबित होने पर वे अखबारों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे.
नैयर ने पत्रकारों की वर्तमान दशा के बारे में कहा कि "ऐसा लगता है कि पत्रकार कैदी हो गये हैं जो अपनी नौकरी बचाने के लिए कोई भी काम करने को तैयार हो जाते हैं. ऐसा लगता है कि पत्रकार भी अब व्यवस्था का हिस्सा बन गया है. अब सवाल यह है कि अगर पत्रकार भी दलाली और धंधे पर उतर आयेगा तो दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र की क्या दशा होगी?" उन्होंने कहा कि हिंसा और दमन के खिलाफ पत्रकारों को आवाज उठाना ही चाहिए लेकिन आज आप देखिए पत्रकार भी व्यवस्था का हिस्सा होकर काम कर रहा है.
उन्होने कहा कि सरकार एसईजेड के नाम पर लाखों आदिवासियों और किसानों को उनकी जमीनों से बेदखल कर रही है लेकिन पूरे मीडिया में मानवाधिकार के इस मूलभूत मुद्दे पर भी कोई चर्चा नहीं हो रही है. इस मौके पर एन नरेन्द्रन के नाम पर एक वेबसाईट भी जारी की गयी. कार्यक्रम का आयोजन एन नरेन्द्रन के मित्रों और शुभचिंतकों ने किया था.

Friday, August 7, 2009

टेक्नालाजी में कैद हो रही है भाषाः डा. विश्वनाथप्रसाद तिवारी


हिंदी के प्रख्यात कवि-आलोचक एवं दस्तावेज पत्रिका के संपादक डा. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का कहना है कि आने वाले समय में भाषा, टेक्नालाजी में कैद हो जाएगी और दुनिया के तमाम लोग अपनी भाषा खो बैठेगें। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग द्वारा मीडिया की हिंदी और हिंदी का मीडिया विषय पर छात्रों से संवाद कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि हम भाषा के महत्व को समझ रहे होते तो हालात ऐसे न होते। भाषा में ही हमारे सारे क्रियाकलाप संपन्न होते हैं। मीडिया भी भाषा के संसार का एक हिस्सा है। हम जनता से ही भाषा लेते हैं और उसे ज्यादा ताकतवर और पैना बनाकर समाज को वापस करते हैं। इस मायने में मीडियाकर्मी की भूमिका साहित्यकारों से ज्यादा महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यह साधारण नहीं है कि आज भी लोगों का छपे हुए शब्दों पर भरोसा बचा हुआ है। किंतु क्षरण यदि थोड़ी मात्रा में भी हो तो उसे रोका जाना चाहिए। श्री तिवारी ने कहा कि साहित्य की तरह मीडिया का भी एक धर्म है, एक फर्ज है। सच तो यह है कि हिंदी गद्य की शुरूआत ही पत्रकारिता से हुयी है। इसलिए मीडिया को भी अपनी भाषा के संस्कार, पैनापन और शालीनता को बचाकर रखना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि यदि भाषा सक्षम है तो उसमें जबरिया दूसरी भाषा के शब्दों का घालमेल ठीक नहीं है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति अच्युतानंद मिश्र ने कहा कि भाषा को लेकर पूरी दुनिया अनेक संघर्षों की गवाह है, किंतु यह दौर बहुत कठिन है जिसमें तमाम भाषाएं और बोलियां लुप्त होने के कगार पर हैं। ऐसे में हिंदी मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह अपनी बोलियों और देश की तमाम भाषाओं के संकट में उनके साथ खड़ी हो। श्री मिश्र ने कहा कि भाषा को जानबूझकर भ्रष्ट नहीं बनाया जाना चाहिए। इसके पूर्व कुलपति श्री मिश्र ने शाल और श्रीफल से डा. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का सम्मान किया।

कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया तथा आभार प्रदर्शन मोनिका वर्मा ने किया। इस मौके पर पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष पुष्पेंद्रपाल सिंह, जनसंपर्क विभाग के अध्यक्ष डा. पवित्र श्रीवास्तव, मीता उज्जैन, संजीव गुप्ता, डा. अविनाश वाजपेयी, शलभ श्रीवास्तव तथा विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं मौजूद थे।

Tuesday, August 4, 2009

कारपोरेट कम्युनिकेशन संभावनाओं से भरी दुनिया


भोपाल, 4 अगस्त। कारपोरेट कम्युनिकेशन संभावनाओं से भरी दुनिया है जिसके लिए नए विचारों से भरे युवाओं की जरूरत है। ये विचार चीन में निकाई ग्रुप आफ कंपनीज के सीनियर मैनेजर डा. अभिषेक गर्ग ने व्यक्त किए। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग में आयोजित एक कार्यक्रम छात्रों से संवाद कर रहे थे।
श्री गर्ग ने कहा कारपोरेट के कामकाज के तरीकों की जानकारी देते हुए विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे बदलती दुनिया और बदलते कारपोरेट के मद्देनजर खुद को तैयार करें। उन्होंने चीन की बाजार व्यवस्था की तमाम विशेषताओं का जिक्र करते हुए कहा कि अब दुनिया की तमाम कंपनियां भारत और चीन जैसे देशों के बड़े बाजार की ओर आकर्षित हो रही हैं और वे इन देशों के ग्रामीण बाजार में अपनी संभावनाएं तलाश रही हैं। उन्होंने कहा कि भारत जैसे विशाल, बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश में कारपोरेट कम्युनिकेशन का महत्व बहुत बढ़ जाता है कि क्योंकि इतने विविध स्तरीय समाज को एक साथ संबोधित करना आसान नहीं होता। ऐसे में भारतीय बाजार की संभावनाएं अभी पूरी तरह से प्रकट नहीं हुयी हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में एडवरटाइजिंग, कम्युनिकेशन और पब्लिसिटी के तमाम नए तरीकों पर संवाद जरूरी है। नए लोग, नए विचारों के साथ आगे आते हैं और नए विचार ही नए ग्राहक को संबोधित कर सकते हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जनसंपर्क विभाग के अध्यक्ष डा. पवित्र श्रीवास्तव ने कहा कि कम्युनिकेशन की किसी भी विधा में काम करने के लिए जरूरी यह है कि आप खुद को अपने परिवेश, दुनिया-जहान के संदर्भों पर अपडेट रखें, क्योंकि यही संदर्भ किसी भी कम्युनिकेटर को महत्वपूर्ण बनाते हैं। प्रारंभ में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने अतिथियों का स्वागत किया। आभार प्रदर्शन जनसंचार की व्याख्याता मोनिका वर्मा ने तथा संचालन छात्रा ऐनी अंकिता ने किया। इस मौके पर जनसंपर्क विभाग की प्रवक्ता मीता उज्जैन, जया सुरजानी, शलभ श्रीवास्तव और जनसंचार तथा जनसंपर्क विभाग के छात्र-छात्राएं मौजूद थे।

नंदिता दास बनीं बालफिल्म समिति की अध्यक्ष


अभिनेत्री और निर्देशक नंदिता दास को भारतीय बाल फिल्म समिति (सीएफएसआई) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। नंदिता दास का कार्यकाल तीन वर्ष को होगा या फिर अगले आदेश तक वह इस पद पर बनीं रहेंगी। 39 वर्षीय नंदिता को ‘फायर’ और ‘अर्थ’ जैसी बेहतरीन फिल्मों में अभिनय के लिए जाना जाता है।
इससे पहले इस पद पर अभिनेत्री और सामाजिक कार्यकर्ता नफीसा अली थीं। नफीसा अली ने लखनऊ से समाजवादी पार्टी के टिकट पर इस बार का लोकसभा चुनाव लड़ा था और हार गई थी।

विद्रोह ही युवा की पहचान - राजेंद्र यादव






हंसाक्षर ट्रस्ट की ओर से पहले की तरह ही इस बार मुंशी प्रेमचंद जयंती पर हंस पत्रिका की २४ वीं वार्षिक गोष्ठी का आयोजन हुआ. इस बार की गोष्ठी का 'युवा रचनाशीलता और नैतिक मूल्य' विषय पर आयोजित की गयी थी. हंस की यह संगोष्ठी साहित्य और साहित्येतर विषयों पर गम्भीर हस्तक्षेप करती रही हैं. भागीदारी के लिहाज से भी यह दिल्ली वालों के लिए महत्वपूर्ण होती है.इस मौके पर कथाकार मैत्रयी पुष्पा को सुधा साहित्य सम्मान - २००९ से प्रख्यात समालोचक नामवर सिंह ने सम्मानित किया. यह पुरस्कार लेखक शिवकुमार शिव द्वारा अपनी पुत्रवधू की याद में दिया जाता है.

नई दिल्ली के ऐवान-ए-ग़ालिब सभागार में गोष्ठी की शुरुआत में राजेंद्र यादव ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों से विद्रोह करना ही युवा होने की पहचान है. उन्होंने कहा कि दरअसल युवा अतीत के बोझ से मुक्त होने का नाम है. युवा पहले से बने बनाये मूल्यों से लड़ता भी है. अगर मूल्यों से चिपके रहते हैं तो आगे नहीं बढ़ सकते.

गोष्ठी की शुरुआत में पहले वक्ता और दलित युवा कथाकार अजय नावरिया ने कहा कि नैतिकता एक सापेक्ष और गतिशील अवधारणा है जो लगातार बदलती रहती है. उन्होंने समाज की ब्राहमणवादी व्यवस्था पर जमकर चोट करते हुए समाज के चार पुरुषार्थों धर्म, काम और मोक्ष को कटघरे में खड़ा किया. इस व्यवस्था में दलितों और स्त्रियों के लिए कोई जगह नहीं है. उन्होंने कहा कि आर्थिक अनैतिकता और कदाचार को भारतीय समाज में पूरी स्वीकृति मिल चुकी है. उन्होंने भारतीय समाज के नैतिक मूल्यों को हिन्दू धर्म का नैतिक मूल्य बताया. उन्होंने कहा कि साहित्य समाज के अंतिम पायदान पर खड़े आदमी का पक्ष लेता है. युवा रचनाशीलता का मूल्य प्रजातान्त्रिक होना चाहिए. उन्होंने कहा कि पुराने नैतिक मूल्यों को अब विदा करने का समय आ गया है. युवा आलोचक वैभव सिंह ने नैतिकता के साथ कट्टरता के सम्बन्ध को लेकर चिंता जताई.उन्होंने कहा कि आखिर यह कैसी नैतिकता है. हमारे यहाँ आठवीं सदी का समाज विद्यमान है. नैतिकता के अन्दर भी अनैतिकता छिपी रहती है. आज उसको पहचानने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि नई नैतिकता का समबन्ध नए सपने से होना चाहिए. समाज में जो परिवर्तन हो रहे हैं उससे हमारे मूल्य बदल रहे हैं.

युवा कथाकार अल्पना मिश्र ने साहित्य में युवा रचनाशीलता की बन रही जमीन की पड़ताल की. उन्होंने कहा आज के रचनाकार की रचनाओं का दायरा पहले से काफी व्यापक हुआ है. आज कथा साहित्य में विधाओं की हदबंदी टूट रही है. जीवन को समेटने के प्रयास में कथा साहित्य हर विधा में जा रहा है. एक और सच तो यह है कि साहित्य में जहाँ नयापन आ रहा है वही यथार्थ छूटता जा रहा है. एक ओर वैश्विक पूंजीवाद है तो दूसरी ओर समाज के एक बड़े तबके या यों कहे कि आदिवासियों पर बात करने वाला कोई नहीं है. यह समय मानव विरोधी है. यह समय युवा पीढी को दिग्भ्रमित कर रहा है और इसी को जीवन का सच मान लेने का प्रयास जारी है. हमारा युवा व्यवस्था का प्रतिरोध नहीं कर पा रहा है. अल्पना मिश्र ने कहा कि आज का रचनाकार हड़बड़ी में है और वह सतही यथार्थ, भाषा की कारीगिरी से लोगों को भरमा रहा है. आज फार्मूला कहानियों का चलन बढ़ता जा रहा है.

प्रख्यात कवि और आलोचक अशोक वाजपेयी ने कहा यह अराजक समय है. यह बहुलता का समय है. यह शायद और कुछ नहीं के बीच फंसी रचनाशीलता का समय है. वाजपेयी के अनुसार स्वतंत्रता समता और न्याय के नैतिक मूल्य एक लम्बे समय से हमारे समाज में विद्यमान है और ये समाज के नैतिक मूल्यों को परिभाषित करने की सच्ची कसौटी हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि साहित्य में बहुत सारे परिवर्तन युवाओं ने ही किये है. 'कामायनी', अँधेरे में, सूरज का सातवाँ घोड़ा, अँधा युग, परख, सन्नाटा और शेखर एक जीवनी जैसी कालजयी रचनाओं के समय लेखक युवावस्था में ही थे. अब के दौर युवा रचनाकरों की भी भाषा, शिल्प , कथ्य और नजरिये में फर्क दिख रहा है. हालाँकि उन्होंने कहा कि युवा प्रतिभाओं की जितनी सक्रियता ललित कला के क्षेत्र में है उतनी साहित्य के क्षेत्र में नहीं है.

सुप्रसिद्ध लेखिका अरुंधती राय ने कहा कि समाज में नैतिकता जान ग्रे के शब्दों में कपड़ों की तरह बदलती रहती है. उन्होंने कहा कि अतीत में विश्व में जितने भी नरसंहार हुए वे सब नैतिकता के नाम पर हुए. लेखा का मूल काम सोंच और लेखन के बीच की दूरी को बांटना है. न्याय का अर्थ मानवाधिकार तक और लोकतंत्र का अर्थ चुनाव सीमित कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि संवाद के लिए भाषा बेहद जरूरी है. इसको सीखे बिना आदमी अपने हक की लड़ाई नहीं लड़ सकता है.

गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह ने कहा कि आज हंस संस्थापक मुंशी प्रेमचंद की जयंती भी है लेकिन किसी वक्ता ने उनका जिक्र तक नहीं किया. यह बहुत खेद की बात है. उन्होंने अजय नावरिया के संपादन में निकले 'नयी नज़र का नया नजरिया' विशेषांक की जमकर धज्जियाँ उड़ाई. उन्होंने कहा कि हमें राजनीति की तर्ज़ पर साहित्य में चालू किस्म के नारों से परहेज करना चाहिए. महज युवा होना नैतिकता की जमीन पर सुरक्षित नहीं करता है. युवा रचनाशीलता के नाम पर किसी का वरण करने से पहले इस बात की पड़ताल आवश्यक है कि रचनाकार में भाषा की तमीज है या नहीं है? हिंदी में हर दशक के बाद एक नई पीढी आती रही है. पर उसके नैतिक रूप से सही होने का निर्णय देने से पहले हमें प्रेमचंद के सूत्र वाक्य हम किसके साथ खड़े हैं को ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि बाहर से युवा दिखने वालों में कई 'एचोड़ पाका' होते हैं जिनके भीतर पोंगापंथी और सडांध होती है. कार्यक्रम में आबुधाबी से आये कथाकार कृष्ण बिहारी ने निकट पत्रिका का नया अंक राजेंद्र यादव को भेंट किया. कार्यक्रम का सफल संचालन संजीव कुमार ने किया. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रबुद्धजनों की उपस्थिति रही.
- अशोक मिश्र की रिपोर्ट

राधिका ने स्टार न्यूज छोड़ा





स्टार न्यूज़ की सीनियर एंकर राधिका चतुर्वेदी ने स्टार न्यूज़ को छोड़ दिया है. उनका इस्तीफा मैनेजमेंट ने स्वीकार कर लिया है. सूत्रों की माने तो उन्होंने अपना इस्तीफा तक़रीबन एक हफ्ते पहले ही दे दिया था. कहा जा रहा है कि वे मुंबई जाना चाहती थी जिसकी इजाजत स्टार न्यूज़ के तरफ से नहीं मिल रही थी. इसी वजह से उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
राधिका चतुर्वेदी स्टार न्यूज़ की प्रमुख एंकरों में से एक थी और सिटी ६० जैसे कार्यक्रमों से उन्होंने दर्शकों के बीच अच्छी-खासी लोकप्रियता भी हासिल की थी. स्टार न्यूज़ के लॉन्च होने के समय से ही वह चैनल से जुडी हुई थी. अब वह कहाँ ज्वाइन करेंगी इस बारे में पता नहीं चल पाया है.

Monday, August 3, 2009

समान शिक्षा की गारंटी से ही बचेगा देश


प्रख्यात शिक्षाविद प्रो. अनिल सदगोपाल का कहना है कि संसद में पेश बच्चों को अनिवार्य शिक्षा विधेयक-2008 दरअसल शिक्षा के अधिकार को छीननेवाला विधेयक है। सोमवार को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग द्वारा शिक्षा का अधिकार और भारत का भविष्य विषय पर आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रो. सदगोपाल ने विधेयक की तमाम खामियों की तरफ इशारा किया। उन्होंने साफ कहा कि एक समान प्राथमिक शिक्षा की गारंटी से ही देश को बचाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि इस गैरसंवैधानिक, बालविरोधी और निजीकरण-बाजारीकरण के सर्मथक विधेयक से एक बार फिर प्राथमिक शिक्षा गर्त में चली जाएगी। उन्होंने साफ कहा कि समान शिक्षा प्रणाली के बिना इस देश के सवाल नहीं किए जा सकते और गैरबराबरी बढ़ती चली जाएगी। उन्होंने कहा कि यह सरकारी स्कूल शिक्षा को ध्वस्त करने और निजी स्कूलों को बढ़ावा देनी की साजिश है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विवि के इलेक्ट्रानिक मीडिया विभाग के अध्यक्ष डा. श्रीकांत सिंह ने कहा कि दोहरी शिक्षा प्रणाली के चलते देश में इंडिया और भारत का विभाजन बहुत साफ दिखने लगा है। इसके चलते समाज में अनेक समस्याएं पैदा हो रही हैं। कार्यक्रम का संचालन विभाग के छात्र अंशुतोष शर्मा ने किया और आभार प्रर्दशन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया। इस मौके पर जनसंपर्क विभाग की प्रवक्ता मीता उज्जैन, मोनिका वर्मा, शलभ श्रीवास्तव और विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।